महाराष्ट्र के मंदिरों में शालीन कपड़े पहनने का दिशा-निर्देश जारी
महाराष्ट्र के सभी मंदिरों में दिशा-निर्देश जारी कर भक्तों से शालीन कपड़े पहनने का आग्रह किया जा रहा है। मंदिरों के न्यासियों का मानना है, धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाये रखने के लिए ड्रेस कोड यानी वस्त्र संहिता जरूरी है।
![]() आस्था में शिष्टाचार |
पुणे के मोरगांव और थेउर, अहिल्यानगर में सिद्धटेक और पिंपरी चिंचवाड़ मोरया गोसावी और रायगढ में खार नारंगी आदि के प्रबंधकों ने श्रद्धालुओं से उचित पोशाक पहनने का अनुरोध किया है। यह स्पष्ट किया गया है कि यह अनिवार्य नहीं है, मगर शिष्टाचार बनाये रखने के लिए सम्मानजनक अपील भर है।
इसी साल के शुरुआत में मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धविनायक मंदिर में भी ड्रेस कोड की घोषणा की थी। कुछ अन्य मंदिरों ने जींस, स्कर्ट, शार्ट्स, देह दर्शाना पोशाक पर सख्त पाबंदी लगाई है। यह प्रतिबंध समूचे महाराष्ट्र में लागू करने के प्रयास हैं। शनि शिगणापुर व अहिल्यानगर जिले के शिरडी में भी यह ड्रेस कोड लागू करने की अपील की गई है। कुछ साल पहले नागपुरके चार मंदिरों में ड्रेस कोड जारी किया था, जिसमें गोपालकृष्ण मंदिर, संकटमोचन पंचमुखी हनुमान, बृहस्पति मंदिर व दुर्गामाता मंदिर शामिल हैं।
देशभर के विभिन्न बड़े मंदिरों में तेजी से ड्रेसकोड लागू होते जा रहे हैं। इसका बड़ा कारण यह भी है कि युवाओं में छोटे या बदन उघाड़ू कपड़े पहनने का फैशन चल पड़ा है। वास्तव में अन्य धार्मिक स्थलों मसलन गुरुद्वारों, चर्च व मजारों में इस तरह के ड्रेस कोड हमेशा से चले आ रहे हैं। कुछ धार्मिक स्थलों में सिर ढककर ही प्रवेश की आज्ञा होती है। हालांकि हिन्दू धर्म इन सब को लेकर बेहद सहिष्णु रहा है।
तार्किक तौर पर तो बड़े मंदिरों में गर्भगृह में देवताओं की पूजा-अर्चना करने वाले महंत/पुरोहित/पुजारी हमेशा से केवल कमर के नीचे का भाग ढकते हैं। उनकी छाती हमेशा खुली होती है। मंदिर प्रांगण में जाने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा में खलल न हो, न ही उनकी आस्था पर प्रहार हो; यह ख्याल रखना मंदिर प्रबंधन का जिम्मा है।
जिन धर्मस्थलों में वस्त्र-संहिता नहीं लागू है, वहां भी पहनावे के प्रति श्रद्धालुओं को सतर्क रहना सीखना चाहिए। आस्थावान होने का तात्पर्य है, भक्तों का प्रयास हो कि उनके कृत्य से किसी अन्य की भावनाएं न आहत हों। न ही वे खुद अपमानित होने वाले कदम उठाएं।
Tweet![]() |