एंटीबायोटिक का असर न होने से 2022 में दुनिया भर में 30 लाख से अधिक बच्चों की मौत : अध्ययन

Last Updated 13 Apr 2025 04:31:18 PM IST

एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, साल 2022 में दुनिया भर में 30 लाख से अधिक बच्चों की मौत ऐसे संक्रमणों के कारण हुई जिन पर एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं कर पाईं। इस स्थिति को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) कहा जाता है।


एंटीबायोटिक दवाएं का असर

यह अध्ययन ऑस्ट्रिया के वियना शहर में ‘ईएससीएमआईडी ग्लोबल 2025’ कार्यक्रम के दौरान पेश किया गया। इसमें दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका जैसे इलाकों में बच्चों के इलाज में इस गंभीर समस्या को लेकर चिंता जताई गई।

जब शरीर में संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं पर प्रतिक्रिया करना बंद कर देते हैं, तब उस स्थिति को एएमआर कहा जाता है। यह बच्चों के लिए खासतौर पर खतरनाक है क्योंकि उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और उनके लिए नई दवाएं भी जल्दी उपलब्ध नहीं हो पातीं।

2022 में अकेले दक्षिण-पूर्व एशिया में 7.5 लाख और अफ्रीका में करीब 6.6 लाख बच्चों की मौत एएमआर से जुड़ी जटिलताओं के कारण हुई।

शोधकर्ताओं का कहना है कि 'वॉच एंड रिज़र्व' वाली एंटीबायोटिक दवाएँ शुरुआती इलाज के लिए नहीं हैं।

बहुत से मामलों में 'वॉच' और 'रिजर्व' श्रेणी की एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया गया, जो कि आमतौर पर गंभीर और विशेष मामलों के लिए रखी जाती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, इन्हें शुरुआत में इलाज के लिए नहीं दिया जाना चाहिए। इनका इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए होना चाहिए जिन्हें सच में इनकी जरूरत है, ताकि ये दवाएं असरदार बनी रहें और बैक्टीरिया में इनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता न बढ़े।

इसके विपरीत,  'एक्सेस' वाली एंटीबायोटिक दवाएं आसानी से मिल जाती हैं और आम संक्रमणों के इलाज के लिए इस्तेमाल होती हैं क्योंकि इनसे बैक्टीरिया में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का खतरा कम होता है।

 2019 से 2021 के बीच 'वॉच' दवाओं का इस्तेमाल दक्षिण-पूर्व एशिया में 160% और अफ्रीका में 126% तक बढ़ गया। इसी दौरान 'रिजर्व' दवाओं का उपयोग भी क्रमशः 45% और 125% बढ़ा।

दुनिया भर में, 30 लाख बच्चों की मौतों में से 20 लाख मौतें इन दो तरह की दवाओं के इस्तेमाल से जुड़ी रहीं।

प्रोफेसर जोसेफ हारवेल, जो इस अध्ययन में सह-लेखक हैं, कहते हैं – “इन दवाओं का अधिक इस्तेमाल, विशेष रूप से बिना सही निगरानी के, भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। अगर बैक्टीरिया इन दवाओं पर भी असर करना बंद कर दें, तो हमारे पास इलाज के बहुत ही कम विकल्प बचेंगे।”

गरीब और विकासशील देशों में यह समस्या और भी ज्यादा है क्योंकि वहाँ अस्पतालों में भीड़, साफ-सफाई की कमी, और संक्रमण को रोकने के उपायों की कमी से बैक्टीरिया आसानी से फैल जाते हैं। इसके अलावा, इन देशों में दवाओं के असर की निगरानी और उनके इस्तेमाल को नियंत्रित करने की व्यवस्था भी बहुत कमजोर है।

इस समस्या से निपटने के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर मिलकर तेजी से काम करने की जरूरत है, नहीं तो इलाज असफल होने और मौतों की संख्या बढ़ने की आशंका है।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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