मानसिक स्वच्छता
मन की चाल दोमुंही है। जिस प्रकार दोमुंही सांप कभी आगे, कभी पीछे चलता है, उसी प्रकार मन में दो परस्पर विरोधी वृत्तियां काम करती रहती हैं।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
उनमें से किसे प्रोत्साहन दिया जाए और किसे रोका जाए, यह कार्य विवेक बुद्धि का है। हमें बारीकी के साथ यह देखना होगा कि इस समय हमारे मन की गति किस दिशा में है? यदि सही दिशा में प्रगति हो रही हैं, तो उसे प्रोत्साहन दिया जाए और यदि दिशा गलत है, तो उसे पूरी शक्ति के साथ रोका जाए, इसी में बुद्धिमत्ता है।
क्योंकि सही दिशा में चलता हुआ मन जहां हमारे लिए श्रेयस्कर परिस्थितियां उत्पन्न कर सकता है, वहां कुमार्ग पर चलते रहने से एक दिन दु:खदायी दुर्दिन का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए समय रहते चेत जाना ही उचित है। उचित दिशा में चलता हुआ मन आशावादी, दूरदर्शी, पुरुषार्थी और सुधारवादी होता है। इसके विपरीत पतनोन्मुख मन सदा निराश रहने वाला, तुरन्त की बात सोचने वाला, भाग्यवादी, कठिनाइयों की बात सोच-सोचकर खिन्न रहने वाला होता है। वह परिस्थितियों के निर्माण में अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार नहीं करता।
मन पत्थर या कांच का बना नहीं होता जो बदला न जा सके। प्रयत्न करने पर मन को सुधारा और बदला जा सकता है। समाज निर्माण का प्रमुख सुधार यह मानसिक परिवर्तन ही है। हमारा मन यदि अग्रगामी पथ पर बढ़ने की दिशा पकड़ ले, तो जीवन के सुख-शान्ति और भविष्य के उज्ज्वल बनने में कोई संदेह नहीं रह जाता। जिनने आशा और उत्साह का स्वभाव बना लिया है, वे उज्ज्वल भविष्य के उदीयमान सूर्य पर विश्वास करते हैं। ठीक है, कभी-कभी कोई बदली भी आ जाती है और धूप कुछ देर के लिए रु क भी जाती है।
पर बादलों के कारण सूर्य सदा के लिए अस्त नहीं हो सकता है। असफलताएं और बाधाएं आते रहना स्वाभाविक है। कठिनाइयां मनुष्य के पुरुषार्थ को जगाने और आगे बढ़ने की चेतावनी देने आती हैं। आज यदि सफलता मिली है, प्रतिकूलता उपस्थित है, संकट का सामना करना पड़ रहा है, तो कल उस स्थिति में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। आशावादी व्यक्ति छोटी-छोटी असफलताओं की परवाह नहीं करते। वे रास्ता खोजते हैं और धैर्य, साहस, विवेक एवं पुरुषार्थ को मजबूती के साथ पकड़े रहते हैं, क्योंकि आपत्ति के समय में यही चार सच्चे मित्र बताए गए हैं।
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