आत्म विवेचन
आत्म विश्लेषण का अर्थ है प्रवृत्तियों के मूल कारण की तलाश करना अर्थात द्वेषपूर्ण भावनाएं जिस आधार पर उठीं, उस आधार को ढूंढ़ना और उसे नष्ट करना।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है कि जिस वस्तु को चाहता है उसे किसी न किसी भूमिका के साथ टिका देता है। इसी को विचार और कार्यों का पक्षपात कहते हैं। जैसे बीड़ी, सिगरेट, या अन्य कोई मादक पदार्थ सेवन करने वालों की हमेशा दलील रहती है कि उनसे उन्हें शान्ति मिलती है या मानसिक तनाव दूर होता है।
कई तो यहां तक कहते हैं कि बीड़ी-सिगरेट न पिएं तो पाचन क्रिया ठीक प्रकार से काम नहीं करती पर कठोरतापूर्वक विचार करें तो स्पष्ट दिखाई देता है कि शराब, सिगरेट के पक्ष में जो दलीलें हैं, वे सर्वथा निस्सार हैं। ये तो मन बहलाव के लिए गढ़ी बातें हैं। वस्तुत: उनसे मानसिक परेशानियां तथा स्वास्थ्य और पाचन प्रणाली में शिथिलता ही आती है। अपने गुण-दोष देखने में जब तक हम ईमानदारी और सच्चा दृष्टिकोण नहीं अपनाते संस्कार परिवर्तन में तभी तक परेशानी रहती है। मनुष्य आत्म दुर्बल तभी तक रहता है जब तक वह आत्म विवेचन का सच्चा स्वरूप ग्रहण नहीं करता।
झूठे प्रदशर्नों और स्वार्थपूर्ण आचरण के कारण ही जीवन में परेशानियां आती हैं। सच्चाई की मस्ती ही अनुपम है। उसकी एक बार जो क्षणिक अनुभूति कर लेता है वह उसे जीवनपर्यन्त छोड़ता नहीं। सत्य मनुष्य को ऊंचा उठाता है, परमात्मा के समीप पहुंचा देता है। सत संस्कारों का बल, कुसंस्कारों की अपेक्षा अनंत गुना अधिक होता है किन्तु कुसंस्कारों में जो क्षणिक सुख और तृप्ति दिखाई देती है उसी के कारण लोग दुष्कर्मो की ओर बड़ी जल्दी खिंच जाते हैं। अतएव जब कभी ऐसे अनिष्टकारी विचार मस्तिष्क में उठें तब उनसे भागने का शीघ्र प्रयत्न करना चाहिए।
किसी बुराई से डरने या भागने से वह जीवन का अंग बन जाती है किन्तु जब विचारों में मौलिक परिवर्तन करते हैं, बुराई की गहराई तक छानबीन करते हैं तो अन्त:करण की दिव्य ज्योति के समक्ष सच और झूठ की स्वत: अभिव्यक्ति हो जाती है। आत्मनिरीक्षण के साथ विचार पद्धति शुभ संस्कार बढ़ाने का दूसरा उपाय है। जरूरी है कि जो भी व्यवसाय करें पहले उस पर अथ से इति तक विचार कर लें। उपयोगी दिखाई दे तो उसे प्रयत्नपूर्वक अपने जीवन में धारण करें, अन्यथा उसे त्याग दें।
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