मन
किसी व्यक्ति को, अपनी मान्यताओं द्वारा बनाई गई मानसिकता के परे जा कर देखने और यह स्वीकार करने के लिए कि जीवन के मूल पहलुओं के बारे में भी वह कुछ नहीं जानता, अत्यधिक साहस की आवश्यकता होती है।
![]() जग्गी वासुदेव |
क्या आप मानते हैं कि आप के पास दो हाथ हैं? या फिर, आप जानते हैं कि आप के पास दो हाथ हैं? आप अगर अपनी आंखों से उन्हें ना भी देखें, तो भी आप जानते हैं कि आप के पास दो हाथ हैं। यह बात आपको आपके अनुभव से पता है पर जब बात ईश्वर की आती है तो आप को बताया गया है कि आप विश्वास कर लें। किसी ने भी आप को यह नहीं कहा है कि आप को दैविकता की खोज कर के पता लगाना चाहिए! किसी चीज में विश्वास कर लेना आप में कभी कोई परिवर्तन नहीं ला सकता पर यदि आप उसका अनुभव कर लेते हैं, तो फिर यह आप को पूरी तरह से परिवर्तित कर देगा। कोई अनुभव हुए बिना, आप कुछ भी विश्वास कर लें तो उसका कोई अर्थ नहीं है।
मान लीजिए, आप के जन्म के समय से ही अगर मैं आप को लगातार यह बताता रहूं कि मेरी छोटी उंगली ही ईश्वर है, तो जब भी मैं आप को अपनी छोटी उंगली दिखाऊंगा, आप दैवीय भाव से भर जाएंगे। और अगर, आप के जन्म के समय से ही, मैं आप को सिखाता रहूं कि मेरी छोटी उंगली शैतान है, तो जब भी मैं आप को अपनी छोटी उंगली दिखाऊंगा, आप आतंकित हो जाएंगे। यही आप के मन की प्रकृति है। आप अपने मन में कुछ भी सोचें, उसका कोई महत्त्व नहीं है।
एक साधन की तरह यह ठीक है पर आखिरकार, इसका कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि यह आज एक रूप में होता है और कल दूसरे रूप में। मन अत्यंत तरल है, आप इससे कुछ भी बना सकते हैं। यह कैसे बनता है, वो इस बात पर आधारित है कि उस पर कैसे प्रभाव पड़ते हैं? अगर आप गहराई से देखें तो आप जिसे ‘अपना मन’ कहते हैं, वो एक ऐसी चीज है जिसे आप ने अपने आसपास के हजारों लोगों से उधार ले कर बनाया है। आप ने अपने इस मन को छोटे-छोटे टुकड़ों और हिस्सों में इकट्ठा किया है। आप का मन बस आप की पृष्ठभूमि है-इस बात पर आधारित है कि आप किस तरह के परिवार से आते हैं, आप का शिक्षण एवं धर्म, देश या समाज जहां से आप हैं और वो दुनिया जिसमें आप रहते हैं।
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