कलह
इस झगड़े का एकमात्र हल यह है कि स्त्री, पुरुष को और पुरुष, स्त्री को अपने मन की अधिकाधिक उदार भावना से बरतें।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
झगड़ा करने से पहले आपसी विचार-विनिमय के सब प्रयोगों को अनेक बार कर लेना चाहिए। संसार में रहने का यही तरीका है कि एक दूसरे के सामने थोड़ा-थोड़ा झुका जाए।
समझौते की नीति से काम लिया जाए। महात्मा गांधी, उच्च कोटि के आदशर्वादी और संत थे, पर उनके ऐसे भी अनेकों सच्चे मित्र थे जो उनके विचार और कार्योंसे मतभेद ही नहीं, विरोध भी रखते थे। ये मतभेद उनकी मित्रता में बाधक न होते थे। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि साथी में दोष-दुर्गुण हों तो उनकी उपेक्षा की जाए और उन बुराइयों को अबाध रीति से बढ़ने दिया जाए।
ऐसा करना तो भारी अनर्थ होगा। जो पक्ष अधिक बुद्धिमान, विचारशील एवं अनुभवी है उसे अपने साथी को सुसंस्कृत, समुन्नत, सुणी बनाने के लिए भरसक प्रयत्न करना चाहिए। स्वयं को भी ऐसा मधुरभाषी, उदार, सहनशील एवं निर्दोष बनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए कि साथी पर अपना समुचित प्रभाव पड़ सके। जो स्वयं अनेक बुराइयों में फंसा हुआ है, वह अपने साथी को सुधारने में सफल कैसे हो सकता है?
सती सीता परमसाध्वी, उच्च कोटि की पतिव्रता थीं, पर उनके पतिव्रता होने का एक कारण यह भी था कि एकपत्नी व्रतधारी अनेक सुणों से संपन्न राम की धर्मपत्नी थीं। रावण स्वयं दुराचारी था, उसकी स्त्री मन्दोदरी सर्वगुणसंपन्न एवं परम बुद्धिमान होते हुए भी पतिव्रता न रह सकी। रावण के मरते ही उसने विभीषण से पुनर्विवाह कर लिया। जीवन की सफलता, शांति, सुव्यवस्था इस बात पर निर्भर है कि हमारा दाम्पत्य जीवन सुखी और संतुष्ट हो। इसके लिए आरंभ में ही बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए और गुण-कर्म की समानता के आधार पर लड़के-लड़कियों के जोड़े चुने जाने चाहिए।
अच्छा चुनाव होने पर भी पूर्ण समता तो हो नहीं सकती, इसलिए हर एक स्त्री-पुरु ष के लिए इस नीति को अपनाना आवश्यक है कि अपनी बुराइयों को कम करे, साथी के साथ मधुरता, उदारता और सहनशीलता का आत्मीयतामय व्यवहार करे, साथ ही उसकी बुराइयों को कम करने के लिए धैर्य, दृढ़ता और चतुरता के साथ प्रयत्नशील रहे। इस मार्ग परं चलने से असंतुष्ट दाम्पत्य-जीवन में संतोष की मात्रा बढ़ेगी और संतुष्ट दंपती स्वर्गीय जीवन का आनंद उपलब्ध करेंगे।
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