सावधान! मई अंत महामारी की मियाद, सुधरेंगे हालात
कोरोना महामारी की दूसरी लहर भारत के लिए विभीषिका बन चुकी है। सत्ता विरोधी ताकतें और अव्यवस्था पर सिर पीटने वाले जिम्मेदारी से जुड़े प्रश्नों के चक्रव्यूह में कौरवों की भूमिका ले चुके हैं जिसमें केंद्र सरकार उस अभिमन्यु के किरदार में है, जिसने चक्रव्यूह तो भेदा है, मगर लोकतांत्रिक मूल्यों वाली मर्यादा के दायरे में चक्रव्यूह को ध्वस्त करने में नाकाम है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर |
फिर भी एक प्राणघातक विषाणु के विरु द्ध महायुद्ध लड़ने का साहस दिखाया जा रहा है। यक्ष प्रश्न किसी की कामयाबी या नाकामी का नहीं है, बल्कि प्रश्न है कि, कोरोना की दूसरी लहर ने जो त्रासदी दिखाई है, वह लहर थमेगी कब? कोरोना महामारी के संक्रमण की रफ्तार पर रोक लगेगी कैसे?
कोरोना महामारी के दौर में भारत जैसे विशाल जन समूह वाले देश में इस तरह के हालात का अनुमान तभी लगाया जा चुका था, जब देश में पहला केस दर्ज किया गया था। यह दीगर बात है कि, सरकार के सख्त कदमों के कारण उस समय अर्थव्यवस्था की बलिवेदी पर हालात को काबू में करने की कोशिश हुई। लेकिन सख्तियों से आजिज आ चुकी देश की जनता को जिस सख्ती को भविष्य के लिए सीख के तौर पर लेना चाहिए था, उसे जंजीरों की जकड़ के रूप में महसूस किया। नतीजतन, सारी कवायद और परिश्रम पर धीरे-धीरे पानी फिरता रहा और वर्तमान का सत्ता विरोधी बौद्धिक पक्ष धृतराष्ट्र की तरह सिर्फ पुतलियां घुमाता रहा। एहतियात के साथ ढील की अनुमति को एक ऐसी स्वतंत्रता माना गया जो सदियों से छीन ली गई हो। घोर लापरवाही हुई और कोरोना विस्फोट के साथ दूसरी लहर को आमंतण्रमिला। बावजूद इसके अब भी इन हालात के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार मानकर उस व्यवस्था पर विलाप किया जा रहा है, जो 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में न तो कभी पुख्ता थी, न ही भविष्य में कभी होगी। जबकि विचार करने योग्य तथ्य यह है कि, हाहाकारी स्थिति नाकामी है भी या सिर्फ लापरवाही का परिणाम है? उत्तर अंतरआत्मा से पूछिए,
जिसने लापरवाही वाली नश्तर जैसी स्मृतियों को करीने से सजा रखा है। अब उन्हीं स्मृतियों की पृष्ठभूमि से वर्तमान के धरातल का आकलन कीजिए और ख़्ाुद से सवाल पूछिए कि, क्या ऐसे हालात में दुनिया का कोई भी सिस्टम या सरकारी तंत्र पूर्वानुमान से भविष्य की व्यवस्था कर सकता था?
संक्रमण के भिन्न स्तर
वैचारिक धाराओं में मूल्यांकन का आधार संक्रमण के अलग-अलग स्तर हो सकते हैं, लेकिन शुरु आत से आकलन न करना और पहली लहर के आंकड़ों के ढलान को वि में स्थायी संकट लाने वाली महामारी के संदर्भ में अंत मान लेना सबसे बड़ा अन्याय होगा। वह भी उस काल में जब वैचारिक घटनाक्रम के लिए अपर्याप्त स्थान है। इसलिए वैचारिक बुद्धि की खपत दोषारोपण में करने की बजाय भविष्य के अनुमान में खर्च करना ही बुद्धिमत्ता होगी। सरकार के प्रयासों से भविष्य के प्रभाव को देखने के लिए दूरदृष्टि लानी होगी। उन सकारात्मक संकेतों को ‘संजयदृष्टि’ से चुन-चुनकर सार्वजनिक करना होगा, जिससे देश में मनोवैज्ञानिक नकारात्मकता का अंत हो, और डरे-सहमे देशवासियों को सकारात्मक वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिले।
प्रश्न अगर यह है कि देश के लिए सदी के सबसे बड़े संकट की इस घड़ी में क्या केंद्र सरकार अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह कर रही है? तो उत्तर है ‘हां’। पहली लहर के बाद व्यवस्था की गाड़ी पटरी पर आ ही रही थी कि, केंद्र सरकार ने हालात पर नियंतण्रकी बागडोर राज्य सरकारों के सुपुर्द करके भविष्य के संकट से निपटने की तैयारी शुरू की। वैक्सीन का भारी मात्रा में उत्पादन शुरू किया, वि का सबसे बड़ा कोरोना टीकाकरण अभियान भी शुरू कर दिया। सीमित संसाधनों में 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी को बचाने की क्षमता का विकास किया। लेकिन राज्य सरकारों की चूक की वजह से दूसरी लहर विस्फोटक रूप में आई और राज्य सरकारों ने ही हाथ खड़े कर दिए। दूसरी लहर में केंद्र सरकार को उस समय कमान सौंपी गई, जब कोरोना महामारी के कारण राज्यों की व्यवस्था चौपट हो गई। इसमें चौंकाने वाला तथ्य यह है कि, जब राज्य सरकारों को व्यवस्था बनाने के लिए लंबा समय मिला तब उन्होंने उस दिशा में काम नहीं किया और अंत में केंद्र की शरण में आए। हालांकि दायित्व केंद्र सरकार का भी है, इसलिए केंद्र सरकार ने नये सिरे से कोरोना के खिलाफ कमर कसी। अस्पताल और वैकल्पिक व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों को करने को कहा और ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्रवाई हुई। 9 तरह के जरूरी उद्योगों को छोड़कर सबकी ऑक्सीजन सप्लाई रोकी गई, उद्योगों से ऑक्सीजन मंगाकर जरूरतमंद राज्यों तक भेजी गई। ऑक्सीजन सप्लाई को प्राथमिकता देकर ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए, ऑक्सीजन टैंकर को न रोकने का आदेश दिया गया, रेल मार्ग पर ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाई गई, वायु सेना के मालवाहक विमान का उपयोग भी देश और विदेश से ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए किया गया। गंभीर संक्रमण को रोकने के लिए 18 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगों के टीकाकरण की युद्ध स्तर पर शुरु आत की घोषणा हुई। इसके अलावा मेडिकल उपकरण का उत्पादन बढ़ाने के साथ विदेशों से आयात करने का भी आसान रास्ता बनाया गया।
प्रयासों में कोई कमी नहीं
सरकार के प्रयासों में न तो कभी कोई कमी थी, न ही अब है। क्योंकि इन प्रयासों के परिणाम अभी दिख नहीं रहे हैं, लेकिन तय है कि भविष्य में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। हालांकि धीरे-धीरे बन रही व्यवस्था फौरी तौर पर संकेत दे रही है कि जिस गति से संक्रमित दर्ज हो रहे हैं, उसी गति में अब मरीजों के स्वस्थ होने की दर लौट रही है। औसतन प्रति दिन के संक्रमितों में आधे या उससे ज्यादा ही लोग कोरोना वायरस से मुक्त भी हो रहे हैं। हालांकि यह आंकड़ों के आधार पर निकाली गई दर है, लेकिन कानपुर और हैदराबाद आईआईटी के वैज्ञानिकों ने इसे गणित के मॉडल में बैठाकर सिद्ध भी किया है। इस मॉडल में बताया गया है कि 11 से 15 मई के बीच देश में दूसरी लहर पीक पर होगी, जिसमें 33 से 35 लाख के बीच मरीजों को उपचार की जरूरत होगी। लेकिन इसके बाद मई के अंत तक नाटकीय रूप से इस संख्या में कमी दर्ज होगी, क्योंकि बनाई जा रही व्यवस्था में 15 मई के बाद ठीक होने वाले मरीजों की संख्या संक्रमितों से ज्यादा दर्ज होगी।
महामारी के इस संकट काल में सकारात्मक परिणाम की संभावना इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि अब भारत में कोरोना के खिलाफ सिर्फ भारत सरकार नहीं लड़ रही है, बल्कि वि के वे देश भी सहयोग देने आगे आ चुके हैं, जिन्हें कोरोना महामारी की शुरु आत में भारत ने दवा मुहैया कर सहायता दी थी। इसमें सबसे अच्छी बात यह भी है कि, जो अमेरिका आज भी संक्रमितों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर है, उसने भारत की मदद के लिए अपनी नीति में ही बदलाव कर दिया। शुरु आत में अमेरिका ने नेशन फस्र्ट पॉलिसी के तहत भारत को वैक्सीन का कच्चा माल देने से मना कर दिया था, लेकिन भारत से जुड़े उसके हित जब देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अमेरिकी एनएसए को याद दिलाए, तो बाइडेन प्रशासन का रु ख बदल गया। न सिर्फ वैक्सीन का कच्चा माल देने पर अमेरिका ने हामी भरी, बल्कि ऑक्सीजन के सिलेंडर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, मास्क, रैपिड टेस्ट किट और मेडिकल उपकरण मदद के रूप में भेजने की भी तैयारी कर ली। ठीक इसी तरह दुनिया के 40 से भी ज्यादा देशों ने भारत की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया, जिनमें सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लग्जमबर्ग, पुर्तगाल और स्वीडन अहम भागीदार बने। इन देशों से न सिर्फ ऑक्सीजन आ रही है, बल्कि वेंटिलेटर, क्रायोजेनिक कंटेनर और रेमडेसिविर की बड़ी खेप भी भारत के लिए रवाना कर दी गई है।
अब प्रश्न यह भी है कि, जब दूसरी लहर पर नियंतण के चौतरफा सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं, तो क्या भविष्य में तीसरी और चौथी लहर का सामना भी करना पड़ सकता है? इस प्रश्न का उत्तर ‘हां’ और ‘न’ दोनों हैं। इसलिए कि कोरोना वायरस से जनित बीमारी दुनिया से पूरी तरह खत्म नहीं होगी। इसलिए परिस्थिति में बदलाव नहीं हुआ, लापरवाही का दौर जारी रहा, तो फिर तीसरी और चौथी लहर का आना तय है। लेकिन यह भी तय है कि, अब सरकार सख्ती में जरा भी ढील नहीं बरतेगी, जिससे हालात काबू में रहेंगे। वैक्सीनेशन की तैयारी को देखते हुए भविष्य में स्थिति गंभीर होने की आशंका भी कम है। इसलिए व्यवस्था को कोसने की बजाय खुद को सख्त दायरे में बांधिए, जो कोरोना के खिलाफ जंग में सबसे बड़ी और कुशल नीति होगी।
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