पांच साल, कैसे बदला बंगाल?

Last Updated 04 Apr 2021 12:01:37 AM IST

विकासवादी अध्यात्म की जमीन, जिसे विश्व कल्याण के भावों का उर्वरक दिया गया, जिसे सतत विकासशीलता के जल से सींचकर उपजाऊ बनाया गया, उसी गौरवशाली परंपरा की भूमि पर पहले साम्यवाद का विचार पल्लवित हुआ और फिर वैचारिक वैतरणी की मध्य धारा का विकास हुआ।


पांच साल, कैसे बदला बंगाल?

इस दौर में राजनीतिक कौतूहल, हलचल, भूकंप और हड़कंप सब था, लेकिन वैचारिक धारा के एक तीर पर खामोशी थी। 2016 तक देश के पूर्वी किनारे के सबसे बड़े सूबे की सियासत को लेकर शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा कि भदल्रोक कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में ऐसा तूफान आकार ले रहा है, जो देश की आने वाली राजनीति की दशा और दिशा का फैसला करेगा। अब यही तूफान अपनी असीमित रफ्तार के साथ पश्चिम बंगाल के कोने-कोने तक पहुंच चुका है।

‘लाल सलाम’, ‘बांग्ला मानुष’, ‘जय बांग्ला’ के गंतव्यों से राजनीति की रेलगाड़ी आगे बढ़कर हिंदुत्व के चिर उत्साह वाली पटरी पर दौड़ रही है। नवीन गंतव्य ‘जय मां काली’, ‘जय मां दुर्गा’, ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ हैं। लेकिन सवाल यह है कि अचानक पश्चिम बंगाल की ऐतिहासिक भूमि पर ऐसा क्या हुआ, जो सब कुछ बदला-बदला सा महसूस होने लगा है? जवाब है कि 2016 तक बीजेपी की सियासत के लिए जिस पश्चिम बंगाल की सियासी जमीन ऊसर समान थी, पूर्व के उसी किनारे पर भगवा परचम आहिस्ता-आहिस्ता बुलंद होता गया।

ममता बनर्जी ने सिंगूर की लड़ाई जीतकर वामपंथ का करीब साढ़े तीन दशक पुराना सियासी किला ध्वस्त किया, नंदीग्राम की लड़ाई जीतकर तृणमूल कांग्रेस के दुर्ग के लिए बेहद मजबूत जमीन तैयार की, लेकिन उन्हें भनक भी नहीं लगी और एक कैडर आधारित पार्टी ने उस दुर्ग की बुनियाद को खोखला कर दिया। पश्चिम बंगाल चुनाव में पहले दो चरणों में 80 फीसदी से ज्यादा मतदान, बीजेपी की सभाओं में भारी भीड़, चुनाव से पहले वामपंथियों और टीएमसी के नेताओं का बीजेपी में शामिल होना, यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ है, बल्कि यह वर्षो के परिश्रम का नतीजा है, जिसकी शुरु आत दो दशक से पहले हो गई थी। हालांकि उस दौर में दक्षिणपंथ के प्रभाव का रास्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बनाना शुरू किया था, लेकिन ममता बनर्जी के सत्तासीन होने के बाद इस राह को आसान बनाया बीजेपी के उस अध्यक्ष ने जिसने पार्टी में कैडर को सर्वोपरि माना और उसको ध्यान में रखते हुए लक्ष्य निर्धारित किया।

2014 में अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, जिसके बाद उन्होंने पार्टी कैडर पर अपना ध्यान केंद्रित किया। नतीजतन, जिस पार्टी को कभी देश के हिंदीभाषी बेल्ट की पार्टी कहा जाता था, उसने कश्मीर से केरल और कच्छ से कामरूप तक कामयाबी के सोपान तय किए, लेकिन पूर्वी और दक्षिणी छोर आधार की अल्पता में छूटता रहा। इसलिए कामयाबी के शिखर की तरफ बढ़ने के लिए अमित शाह के नेतृत्व में पहला लक्ष्य पूर्वी छोर बना। यहां बीजेपी के सामने जो चुनौती आई, वह थी बांग्ला संस्कृति और बांग्ला मानुष का मिज़ाज और अक्खड़पन जिसमें धीरे-धीरे बदलाव लाकर एक बिंदु पर बीजेपी ने अपना एजेंडा संस्कृति और धर्म के खांचे में बैठा दिया। इसमें दशकों से जमीनी स्तर पर वैचारिक बदलाव लाने की भूमिका संघ ने अदा की। वह संघ जिसने 90 के दशक में पश्चिम बंगाल में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई, सामाजिक और धार्मिंक कार्यों के जरिए गांव-गांव तक पकड़ बनाई। 1998 में 10 शाखाओं के जरिए शुरू हुआ काम 2016 तक 1 हजार 688 शाखाओं के विस्तार से कोने-कोने तक फैल गया और मौजूदा समय में यह संख्या 2 हजार से कहीं ज्यादा हो गई। संघ परिवार के क्षेत्र विस्तार का फायदा बीजेपी को मिला। अपने अध्यक्ष काल में अमित शाह ने कैलाश विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल भेजा, जो संघ और पार्टी के बीच एक पुल बने और फिर कैडर आधारित पार्टी की वैचारिक क्रांति का सूत्रपात हुआ, जो बाद में भाई-भतीजावाद और तुष्टिकरण की राजनीति पर हावी हुआ।

अमित शाह के कदम पश्चिम बंगाल में बिल्कुल सही दिशा में उठे थे, इसलिए नये अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी उन्हीं के पदचिह्नों पर चलना शुरू किया। हिंदुत्व का एजेंडा संस्कृति के सांचे में अमित शाह ने फिट किया, तो जेपी नड्डा ने ममता के मुस्लिम तुष्टिकरण के हथियार की धार बेदम करने के लिए एक ऐसे समुदाय को साधा जो टीएमसी के सियासी एजेंडे पर भारी पड़ा और यह समुदाय है मतुआ, जो पश्चिम बंगाल की 70 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। मतुआ बिरादरी ममता बनर्जी का पारंपरिक वोट बैंक मानी जाती है लेकिन संकेत तो इस बात के मिल रहे हैं कि इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश दौरे में मतुआ समुदाय के तीर्थ में जाने से न सिर्फ  इस समुदाय के वोट बीजेपी ने अपने पक्ष में किए बल्कि ममता बनर्जी के वोट भी काट लिए। पश्चिम बंगाल में पहले दो दौर के चुनाव में बढ़े मतदान के प्रतिशत को मतुआ फैक्टर से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

अमूमन मतदान का प्रतिशत तब बढ़ता है, जब सत्ता विरोधी लहर हो या जनता बदलाव का मन बना चुकी हो। पश्चिम बंगाल में करीब ढाई दशक तक कांग्रेस, 34 साल तक लेफ्ट और एक दशक से ममता बनर्जी की सरकार रही है। इससे यह बात साफ होती है कि बंगाल में सत्ता तभी बदलती है, जब बंगाल का वोटर तय कर ले। इसलिए संकेत मजबूत हैं कि टीएमसी विरोधी लहर बीजेपी के रुख के साथ है। इसे पश्चिम बंगाल के ही एक उदाहरण से समझिए-2011 के चुनाव में सीएम बुद्धदेब भट्टाचार्य के खिलाफ लहर में 84 फीसदी के करीब मतदान हुआ था जिसके बाद ममता बनर्जी को सत्ता मिली। लेकिन 2016 में मतदान का प्रतिशत करीब 82 फीसदी ही रहा और ममता बनर्जी दोबारा सत्ता में आई। पर अब चरण दर चरण मतदान का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। बीजेपी खेमा जहां इसे अपने पक्ष में बता रहा है वहीं सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस इसे ममता सरकार की लोकप्रियता से जोड़कर देख रही है।

पश्चिम बंगाल में दो प्रतिद्वंद्वियों के जबर्दस्त संग्राम के बीच चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका ने भी एक अलग तरह का माहौल दिया है। 8 चरणों में मतदान के फैसले पर सत्तासीन टीएमसी ने सवाल तो उठाए लेकिन हकीकत यही है कि यह फैसला पिछले कुछ सालों में मतदान के समय बढ़ी हिंसक घटनाओं को ध्यान में रखकर लिया गया है, जिसका फायदा मतदाताओं को मिला। एक खुले वातावरण में शांतिपूर्ण तरीके से दो चरण के चुनाव बीत गए और आगे भी ऐसी ही स्थिति बनी रही तो मतदान का प्रतिशत पुराने सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर सकता है, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत होंगे।

शुरुआती दौर के बाद से ही जिस तरह टीएमसी और बीजेपी के बीच घमासान चरम पर पहुंच गया है, उसे देखकर तो यही लगता है कि एक कैडर आधारित पार्टी की वर्षो की तपस्या का रंग पश्चिम बंगाल पर चढ़ने लगा है। चुनाव के नतीजे तो दो मई को आएंगे लेकिन उससे पहले बीजेपी के हौसले दावों की शक्ल में बुलंद होते दिख रहे हैं। तो क्या 2016 में महज 3 सीट जीतने वाली पार्टी की कल्पना पश्चिम बंगाल में सही मायने में साकार होती दिख रही है? वो कल्पना जो बीजेपी के दिग्गज नेता प्रमोद महाजन ने भी की थी। उन्होंने 2004 के लोक सभा चुनाव में श्रीगंगानगर संसदीय क्षेत्र में कहा था कि, ‘विकास की लक्ष्मी न तो पंजे पर बैठकर आती है, न ही साइकिल और हाथी पर, वो कमल के फूल पर विराजमान होती है।’ शायद पश्चिम बंगाल विकास की लक्ष्मी की कल्पना इसी रूप में कर रहा है।

उपेन्द्र राय


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