उम्मीदों के महल में कश्मीर की ‘दीवार’
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की गाड़ी क्या पटरी पर चढ़ने से पहले उतर गई है? भारत से बढ़े दोस्ती के हाथ पर कदम पीछे खींच कर किस खेल की तैयारी कर रहा है पाकिस्तान? क्या कश्मीर में शांति बहाली का वादा कर फिर कोहराम मचाने की साजिश रच रहा है पाकिस्तान? यह भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों का ‘कमाल’ ही है, कि वक्त के किसी भी दौर में ऐसे सवाल अप्रासंगिक नहीं हुए हैं।
![]() उम्मीदों के महल में कश्मीर की ‘दीवार’ |
पिछले दो महीनों के घटनाक्रम के बाद इसमें बदलाव की जो उम्मीद बंधी थी, पाकिस्तान ने उसे भी महज 24 घंटे में एक फैसला बदल कर फासलों को एक नई ‘लाइफलाइन’ दे दी है। इसलिए कपास और चीनी के आयात पर पाकिस्तान के यू-टर्न में कुछ भी असामान्य नहीं है। हाल के दिनों में दोनों ओर से मिठास भरे बयानों ने उम्मीदों का जो महल खड़ा किया था, उसमें कश्मीर की ‘दीवार’ खड़ी कर पाकिस्तान ने अपना वही पुराना राग अलापा है। इन बयानों से जब भी रिश्तों की बर्फ पिघलने का जिक्र आया, उसके साथ यह सवाल हमेशा जुड़ा रहा कि ‘रातों-रात’ शुरू हुई यह ‘दोस्ती’ कितने दिनों का ‘सूरज’ देख पाएगी?
बैक-डोर डिप्लोमेसी
शायद इसीलिए 25 फरवरी को जो कुछ हुआ, उसने आपसी संबंध सुधारने के लिए चल रही बैक-डोर डिप्लोमेसी से जुड़े लोगों के अलावा हर किसी को हैरान कर दिया। दोनों देशों के डीजीएमओ के अचानक आए संयुक्त बयान में 18 साल पुराने सीजफायर को फिर से जमीन पर उतारने और पिछले पांच साल से सर्द चल रहे राजनयिक संबंधों को दोबारा रिश्तों की आंच में पिघलाने का इरादा नुमाया हुआ। करीब तीन हफ्ते बाद जनरल बाजवा ने इससे भी आगे जाते हुए वो ख्याल जाहिर कर दिया, जो अब से पहले शायद किसी पाकिस्तानी सेना प्रमुख के सपने में भी नहीं आया होगा। पाकिस्तानी सेना प्रमुख का अतीत को भूल कर आगे बढ़ने, हथियार की होड़ के बजाय आर्थिक दौड़, कश्मीर पर बिना शर्त लादे शांतिपूर्ण समाधान जैसी बातें करना बेशक, कई लोगों को नागवार गुजरा हो, लेकिन इससे अचानक दोनों देशों के बीच माहौल के खुशगवार होने की खुशबू जरूर आने लगी। वो इसलिए भी क्योंकि एक दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी इसी तरह की बातें कर चुके थे।
एक ही जुबान
पाकिस्तान में सेना और सरकार एक ही जुबान बोलें तो फिर आम तौर पर विरोधाभास की ज्यादा गुंजाइश नहीं रह जाती। लिहाजा, भारत ने भी इस पेशकश का जबाव दोस्ती का पैगाम भेजकर दिया। पाकिस्तान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को शुभकामनाएं भेजीं और दोनों देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ने की शुभेच्छा जताई। पीएम मोदी ने इमरान खान के कोरोना पीड़ित होने पर उनका हालचाल पूछा और भारत ने भी वैक्सीन डिप्लोमेसी में पाकिस्तान को शामिल करने को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया। जवाब में आई इमरान खान की पाती में हालांकि कश्मीर अपने शात रूप में मौजूद रहा, लेकिन बड़ी पिक्चर यही निकली कि पाकिस्तान भी अब दोस्ती के बदले दोस्ती की राह पर बढ़ना चाहता है। इस बीच एलओसी पर तोपें खामोश हो गई, दोनों ओर से बारूदी बयान आने थम गए और डिप्लोमेसी को रफ्तार देने के मकसद से सिंधु नदी जल बंटवारे के स्थायी आयोग की बैठक के लिए बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान से कोई प्रतिनिधिमंडल पहली बार भारत भी आया। दोनों देशों में क्रिकेट से लेकर साझा युद्धाभ्यास जैसी तमाम बातें तक होने लगीं।
जमीनी हालात
शक की कोई गुंजाइश भी नहीं दिख रही थी। पाकिस्तान के जमीनी हालात उसे भारत के साथ वो सब कुछ करने के लिए तैयार होने को मजबूर कर रहे थे, जो उसने आज तक नहीं किया था। आर्थिक दिवालिएपन की कगार पर खड़े पाकिस्तान ने पिछले कुछ दिनों में तेजी से दोस्त भी गंवाए हैं। अब तक मुस्लिम देश होने की वजह से पाकिस्तान का साथ निभा रहे विदेशी मुद्रा के उसके दो सबसे बड़े स्रेत सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी अब मोदी सरकार की डिप्लोमेसी के मुरीद होकर भारत के ज्यादा करीब हैं। खाड़ी के देशों से पाकिस्तान के रिश्ते इतने बिगड़ चुके हैं कि हाल ही में सऊदी अरब ने सॉफ्ट लोन के रूप में दिए गए तीन बिलियन डॉलर की वापसी के लिए उसे चीन से कर्ज लेने के लिए मजबूर कर दिया। संयुक्त अरब अमीरात ने भी कोविड-19 का हवाला देते हुए पाकिस्तानी कामगारों की अपने यहां एंट्री बैन कर दी है, जबकि भारत में कोरोना संक्रमण के ज्यादा मामलों के बावजूद उसने भारतीय मजदूरों पर ऐसी कोई बंदिश नहीं लगाई है।
चीनपरस्त छवि बनने से नये अमेरिकी प्रशासन में भी उसकी कोई खास सुनवाई नहीं हो रही है। रहा सवाल चीन का, तो वो भी अब पाकिस्तान से ज्यादा ईरान को तवज्जो देने लगा है। लद्दाख में चीन को भारत से मिले मुंहतोड़ जवाब ने भी पाकिस्तान के हौसले पस्त किए हैं यानी पाकिस्तान के लिए पड़ोस से लेकर खाड़ी और पश्चिम तक की जियोपॉलिटिक्स में कुछ हद तक चीन को छोड़कर ऐसा कोई देश नहीं बचा है, जिसका वो मुसीबत पड़ने पर हाथ थाम सके। इसलिए विदेशी दबाव से लेकर खुद पाकिस्तान के अंदरूनी हालात में आया बदलाव इस बात को आधार दे रहा था कि क्यों वो बंदूक की गोली को पीछे छोड़कर अमन की बोली बोल रहा है।
मिसाल बांग्लादेश
इसका एक पक्ष और भी है। आजादी के बाद से भारत के साथ समानता का विचार पाकिस्तान की विचारधारा का हिस्सा रहा है। लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। आर्थिक रूप से पाकिस्तान लगभग कंगाल हो चुका है। उसकी 280 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हमारी 2.8 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी का दसवां हिस्सा बैठती है। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलगाव ने भारत के मुकाबले पाकिस्तान के इस ‘पिछड़ेपन’ को इतना तेज कर दिया कि अब वो बांग्लादेश से भी मुकाबले की हालत में नहीं रह गया है। कुल जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के मामले में बांग्लादेश ने उसे पछाड़ दिया है। हकीकत तो यह है कि आज पाकिस्तान अगर बांगलादेश को ही मिसाल बना ले, तो उसकी कई समस्याएं दूर हो सकती हैं। कोरोना की आपदा को अवसर में बदलते हुए बांग्लादेश आज दुनिया का टेक्सटाइल कैपिटल बन गया है। इसके लिए उसने पड़ोसियों के साथ सरहद के विवादों में उलझने के बजाय अपनी खुद की लक्ष्मण रेखा खींची और महज पचास साल के सफर में वो एक तरक्कीपसंद और खुशहाल देश बन गया है।
नफरिस्तान
यह पाकिस्तान के लिए समझने का मौका है कि भारत के अंध विरोध और अपनी धरती को ‘नफरिस्तान’ बना देने से नुकसान सिर्फ उसी का हुआ है। बेशक, कश्मीर को ठंडे बस्ते में डालना उसके लिए आसान नहीं, लेकिन विपक्ष या फिर सरकार से लेकर सेना में बैठे चंद लोगों के दबाव में कश्मीर को ढाल बनाकर पाकिस्तान ने जिस तरह अपना स्टैंड एक बार फिर बदला है, उससे साफ है कि वो अपने नुकसान का दायरा और भी बढ़ा रहा है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि 5 अगस्त, 2019 के बाद जमीन पर बहुत कुछ बदल गया है, और अब इसे बदला नहीं जा सकता। चाहे अनुच्छेद 370 का हटना हो या 35-ए या डोमिसाइल र्सटििफकेट, यह सब भारत के आंतरिक मामले हैं, और इसमें पाकिस्तान की दखलंदाजी की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। अगर पाकिस्तान को तरक्की और अमन की राह पर आगे जाना है, तो भारत के साथ अब उसे इसी सच के साथ आगे बढ़ना होगा।
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