महिला दिवस : ललक से पदक तक पहुंचीं बेटियां
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2004-05 में बिहार की ग्रामीण महिलाओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया कि राज्य में ग्रामीण महिलाओं का शिक्षा के लिए प्रवेश लेने का अनुपात मात्र 1.21 प्रतिशत (पूरे देश में सबसे निचला स्थान) था। शहरों में भी कमोबेश स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
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यह रिपोर्ट उस दौर के शासनकाल के उस स्याह पक्ष की तरफ इशारा करती हैं जब लड़कियों के लिए घर की दहलीज लांघना असभंव था। पढ़ाई के सपने जंगलराज के आतंक के आगे चकनाचूर हो जाते थे। खेलों में भाग लेने की चाहत मन के किसी कोने में दम तोड़ देती थी, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद नीतीश कुमार ने आधी आबादी के आर्थिक, सामाजिक मजबूती सुनिश्चित की। नीतीश सरकार ने एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिए जिससे न केवल शिक्षा में भागीदारी बढ़ी, बल्कि खेलों में भी दमखम दिखाया। आमिर खान की फिल्म दंगल का मशहूर संवाद है.. ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम है कै’ आज बिहार पूरे गर्व के साथ कह सकता है कि लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं। थाईलैंड में आयोजित पैरा एथलेटिक्स चैंपियनिशप में गोल्ड मेडल जीतकर नालंदा समेत पूरे बिहार को गर्व से भर देने वाली गोल्डी कुमारी हो या सीनियर नेशनल स्वीमिंग
चैंपियनिशप में तीन गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की सर्वश्रेष्ठ तैराक पटना की माही ेता राज, या कि भारत की जूनियर महिला फुटबाल टीम में चयनित सिवान की खुशी कुमारी..ऐसी महिला खिलाड़ियों की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं में अपना लोहा मनवाया है। बहुत अधिक दिन नहीं गुजरे हैं। चार महीने पहले नवम्बर महीने की राजगीर की खुशनुमा यादों को ही टटोल लीजिए, जब बिहार वीमेंस एशियन चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन कर रहा था। स्टेडियम में उमड़ी दर्शकों की भीड़ यह बताने के लिए काफी थी कि बिहार की हवा अब बदल चुकी है। इस प्रतियोगिता में भारत समेत चीन, जापान, कोरिया, मलयेशिया जैसी टीमों ने भाग लिया।
प्रतियोगिता के ठीक पहले आयोजित गौरव यात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। इस गौरव यात्रा का मकसद खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से जागरूकता फैलाना था। सरकारी स्तर पर इस तरह की गंभीरता की जितनी सराहना की जाए कम है। नीतीश सरकार के इस तरह के गंभीर प्रयासों के सकारात्मक परिणाम दिखाई भी देते हैं। पिछले ही साल उत्तराखंड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों में बिहार की बेटियों ने लान बॉल की ट्रिपल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी उषा ने बिहार की बेटियों की जीत की जमकर सराहना की थी। उन्होंने कहा कि मजबूत खेल राज्य के रूप में उभर रहा है।
दरअसल, सरकार के प्रयासों में बिहार में एक तरफ खेलों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ तो वहीं विभिन्न योजनाओं के जरिए महिला खिलाड़ियों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यहां ‘प्रेरणा योजना’ और ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ का जिक्र आवश्यक है। ‘प्रेरणा योजना’ के तहत सरकार खोज प्रतियोगिताओं द्वारा चयनित खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता प्रदान कर बेहतर खिलाड़ी बनाने में जुटी है। खोज प्रतियोगिता दरअसल बिहार की महात्त्वाकांक्षी योजना है। इसके जरिए नीतीश सरकार राज्य में खेल संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। सरकार खिलाड़ियों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षण दिलाने पर पर ध्यान दे दे रही है ताकि राज्य 2032 और 2036 में होने वाले ओलंपिक खेलों में पदक जीत सके। मेडल लाओ-नौकरी पाओ ने खिलाड़ियों में जोश का संचार किया है। पटना की माही ेतराज को नीतीश सरकार ने मेडल लाओ, नौकरी पाओ के तहत ही दरोगा नियुक्त किया है।
राजनीतिक रूप से काफी अहम प्रगति यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कैमूर, जमुई समेत विभिन्न जिलों में एक दर्जन स्पोर्ट्स काम्पलेक्स बनाने की घोषणा की। मुख्यमंत्री ने बेतिया और सुपौल में स्टेडियम के आधुनिकीकरण, कटिहार में राजेंद्र स्टेडियम को स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स के रूप में विकसित करने का भी ऐलान किया है। बिहार के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने हाल ही में 2024-25 बजट पेश किया। बजट पर खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के नीतीश कुमार के विजन की छाप साफ दिखती है।
बिहार में खेलों के लिहाज से अगले कुछ महीने महत्त्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। जून में बिहार में महिला विकप कबड्डी प्रतियोगिता आयोजित होगी। इसमें भारत समेत 15 देशों की महिला खिलाड़ी भाग लेंगी। इसके अलावा सेपक टकराव भी पहली बार बिहार में आयोजित होने वाला है। नीतीश सरकार जिस तरह खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर कार्य कर रही है, उम्मीद है कि भविष्य में बिहार से कई धाकड़ खिलाड़ी निकलेंगी, जिन पर पूरे देश को गर्व होगा।
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