कूटनीति : यूक्रेन, यूरोप और ट्रंप

Last Updated 04 Mar 2025 12:35:24 PM IST

यूक्रेन मोर्चे पर अंतिम समाचार यह है कि ब्रिटेन फ्रांस और यूक्रेन ने मिलकर एक युद्धविराम योजना बनाई है जिसे अमेरिका के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।


ब्रिटिश प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर की बात मानें तो इस पर लगभग सहमति बन गई है। युद्ध समाप्त करने पर चर्चा के लिए यूरोपीय नेताओं के साथ 2 मार्च को शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था। 

इस शिखर सम्मेलन में फ्रांस, जर्मनी, डेनमार्क, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, स्पेन, कनाडा, फिनलैंड, स्वीडन, चेक गणराज और रोमानिया के नेता के अलावा तुर्किये के विदेश मंत्री, नाटो महासचिव तथा यूरोपीय आयोग और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष ने भाग लिया। विश्व की दृष्टि से यह यूरोप का संपूर्ण सशक्त शिखर सम्मेलन था। विश्व ने देखा कि किस तरह यूरोपीय नेताओं ने वोलिदिमीर जेलेंस्की की आवभगत की तथा उन्हें महत्त्व दिया। ओवल ऑफिस यानी अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय से निकलने के बाद जेलेंस्की सीधे ब्रिटेन आए और प्रधानमंत्री स्टार्मर ने उन्हें गले लगाया और कहा कि उन्हें उनके देश का अटूट समर्थन प्राप्त है तो इसके पीछे तत्काल ट्रंप एवं दुनिया को एक संदेश देने की रणनीति है। वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस ढंग से यूक्रेन पर अपने तेवर दिखाए और पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रो के साथ उनकी बहस हुई तथा जेलेंस्की को व्हाइट हाउस से बाहर किया गया वह दुनिया में सबसे बड़ी हलचल मचाने वाली घटना बन गई। 

अमेरिकी इतिहास की यह पहली घटना थी जब व्हाइट हाउस में दो नेताओं के बीच इस तरह बहस हुई, दोनों उंगली उठाते दिखे तथा किसी विदेशी मेहमान को वहां से बाहर निकालना पड़ा। प्रश्न है कि अभी आगे होगा क्या? ऐसा दिख रहा है कि यूरोप के ज्यादातर नेता इस समय जेलेंस्की के साथ है। हालांकि वर्तमान यूरोपीय नेता अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उथल-पुथल के परिणाम से आशंकित हैं और वे संतुलित आचरण की कोशिश कर रहे हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर ने सधे हुए वक्तव्य में कहा कि अब हम इस बात पर सहमत हो गए हैं कि ब्रिटेन, फ्रांस और संभवत: एक या दो अन्य देशों के साथ मिलकर यूक्रेन के साथ लड़ाई रोकने की योजना पर काम किया जाएगा और फिर उस पर अमेरिका के साथ चर्चा करेंगे। स्टार्मर ने कहा कि उन्हें पुतिन पर विश्वास नहीं है, लेकिन ट्रंप पर विश्वास है और वह जब कहते हैं कि उन्हें शांति चाहिए तो हम मान कर चलते हैं कि वह यही चाहते हैं।

इसमें दो मत नहीं कि कोई समझौता स्थाई शांति की गारंटी होनी चाहिए। इसलिए स्टार्मर अगर कह रहे हैं कि हम अस्थाई युद्ध विराम का जोखिम नहीं ले सकते तो सामान्य तौर पर इसे असहमत होना कठिन है। एक बड़े समूह को ट्रंप का व्यवहार अटपटा और एकपक्षीय लग सकता है। धीरे-धीरे विश्व में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है जो मानते हैं कि उनका व्यवहार गलत नहीं है। एक समय यूक्रेन के प्रति विश्व की सहानुभूति थी और यह सच है कि अमेरिका और यूरोप की मदद के कारण पुतिन की युद्ध योजना पर तुषारापात हुआ। यूक्रेन जैसे छोटे देश को घुटनों पर लाना उनके लिए कठिन हो गया। किंतु पूरे काला सागर सहित क्रीमिया के क्षेत्र को देखें तो वहां लंबे समय से यूरोप की भूमिका के कारण ही स्थिति इतनी जटिल है कि उनका स्थाई निपटारा संभव नहीं। 

सोवियत संघ जिन राज्यों को मिलकर बना उनमें ज्यादातर आज स्वतंत्र हैं, पर उनकी भौगोलिक सीमाएं खासकर समुद्र में और आसपास इतनी स्पष्ट नहीं है। न भूलिए कि प्रथम और द्वितीय युद्ध विश्व युद्ध के पीछे उसे क्षेत्र की भौगोलिक जटिलताएं और राजनीतिक व्यवहार की बड़ी भूमिका थी। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बावजूद अमेरिका के समक्ष सोवियत संघ के दूसरी महाशक्ति के रूप में खड़ा होने के कारण थोड़ा संतुलन रहा तथा यूरोप के प्रमुख देशों ने आपस में भौगोलिक जटिलताएं खत्म कीं, राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाई। बावजूद न संपूर्ण यूरोप के लिए और न विश्व के लिए अस्थाई सुरक्षा और शांति सुनिश्चित हुई। 

सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो और उसकी सेना कायम रही। अगर अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने की ओर कदम आगे नहीं बढ़ाते तथा उसे हथियार नहीं देते तो पुतिन के लिए इस तरह आक्रमण करने का आधार नहीं बनता। शेष विषयों को छोड़ दें तो जेलेंस्की यह घोषणा कर देते कि वह नाटो का सदस्य नहीं बनेंगे तो भी शायद स्थिति इतनी बिगड़ती नहीं। सच यह है कि यूक्रेन-रूस युद्ध वियुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर चुका है। कई बार आपको शांति के लिए दबाव और अन्य बाध्यकारी दबावकारी कड़े भी कदम उठाने पड़ते हैं। ऐसा लग रहा है कि रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए ही ट्रंप ने इस स्तर कड़ा रु ख अपनाया है। 

जेलेंस्की को भी अमेरिका के महत्त्व का पता है और उन्होंने कहा है कि वह खनिज पर समझौते के लिए फिर से व्हाइट हाउस जाने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षा की गारंटी चाहिए। जेलेंस्की विश्व इतिहास को ठीक से देखें। कोई देश किसी की सुरक्षा की स्थाई गारंटी नहीं दे सकता। इस समय उन्हें गारंटी दी जा सकती है। बस, वे स्वयं को भी बड़ी सैन्य शक्ति बनने या ऐसी अन्य महत्त्वाकांक्षाओं से अलग रखें। यूरोपीय देशों को भी समझना होगा कि पहले की तरह यूक्रेन की सैन्य और कूटनीतिक मदद जारी रखकर वे कुछ समय तक आर्थिक लाभ पा सकते हैं, रूस और यूक्रेन भी दबाव में रह सकता है, लेकिन यह विश्व को बड़े संकट में फंसाने वाला भी साबित होगा।

यूरोपीय देशों में तत्काल सबसे ज्यादा सक्रिय ब्रिटेन और फ्रांस को भी अपनी शक्ति की सीमाओं का आभास होगा। अमेरिका के साथ यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था इतनी आबद्ध है कि वह इससे बिल्कुल अलग हटकर एकाएक नई सशक्त सुरक्षा प्रणाली उत्पन्न नहीं कर सकते। ब्रिटेन का तो नाभिकीय ढांचां तक अमेरिका के साथ अविच्छिन्न जुड़ाव है। उनको पूरी तरह अलग कर अमेरिका के विरु द्ध जाना इस समय असंभव लगता है। इसलिए उनके अंदर भी नये सिरे से मंथन चल रहा है। ट्रंप अड़े रहते हैं तो भविष्य में एक सहमतिकारक समझौता संभव है। कम से कम तत्काल विश्व के हित में होगा और आगे इस पर शांति की कोशिश हो सकती है।
(लेख में विचार निजी है)

अवधेश कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment