विश्व में प्रति वर्ष विभिन्न तरह के नशे (शराब, तंबाकू, ड्रग्स आदि) से 110 लाख से अधिक मौतें प्रत्यक्ष तौर पर होती हैं, पर यदि अप्रत्यक्ष तौर होने वाली मौतों को भी देखें तो यह क्षति और भी अधिक है।
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मौतों के आंकड़ों के अतिरिक्त हमें यह भी देखना है कि नशे से कितने परिवार तबाह होते हैं और इस संदर्भ में सबसे अधिक नुकसान शराब से होता है। जितने लोग एक वर्ष में शराब से मरते हैं, उससे 150 गुणा अधिक वे लोग हैं कि जिनका जीवन शराब के कारण बुरी तरह गड़बड़ा गया है, और उनकी इस हालत की कीमत उनके परिवार को, पत्नी और बच्चों को, बुजुर्ग माता-पिता को भी सहनी पड़ती है।
भारत जैसे देशों में जहां शराब और अन्य नशों की समस्या बढ़ रही है, वहां एक अन्य मुद्दा यह भी है कि बहुत से गरीब परिवारों के बजट शराब और अन्य नशों (जैसे गुटखा) के कारण बुरी तरह बिगड़ जाते हैं। यदि किसी परिवार की औसत एक दिन की आय 500 रुपये है और उसका लगभग आधा हिस्सा शराब और गुटखे में चला जाए तो कैसे निर्वाह होगा। इसी कारण घर में झगड़े होते हैं, मारपीट होती है, और परिवार तबाह होते हैं।
शराब, सिगरेट, बीड़ी, गुटखा सभी तरह-तरह के कैंसर और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं हृदय रोग, स्ट्रोक आदि के कारण बनते हैं। हाल में अमेरिकी सरकार की चेतावनी में बताया गया कि शराब के कारण 7 से 10 तरह के कैंसर होते हैं। गुटखे से मुंह के विभिन्न तरह के बहुत दर्दनाक कैंसर होते हैं। युनिवर्सिटी कॉलेज (ब्रिटेन) के एक अध्ययन ने हाल में बताया कि केवल एक सिगरेट पीने से जीवन के 20 मिनट कम हो जाते हैं, या 20 सिगरेट का पैकेट पीने से 400 मिनट या 7 घंटे किसी व्यक्ति के जीवन से निकल जाते हैं।
शराब के नशे में बहुत सी दुर्घटनाएं होती हैं जिनसे किसी एक वर्ष में लाखों लोग मारे जाते हैं। शराब के नशे में तरह-तरह के हिंसक अपराध और यौन अपराध होते हैं क्योंकि नशे में भले-बुरे का फर्क समझ नहीं आता है। विश्व में वर्ष 2016 में शराब के कारण हुई मौतों में से 28.7 प्रतिशत चोटों के कारण हुई, 21.3 प्रतिशत पाचन रोगों के कारण हुई, 19 प्रतिशत हृदय रोगों के कारण हुई, 12.9 प्रतिशत संक्रामक रोगों से हुई और 12.6 प्रतिशत कैंसर से हुई। 20 से 29 आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 13.5 प्रतिशत शराब के कारण होती हैं।
सिगरेट-बीड़ी पीने से जो धुआं छोड़ा जाता है, उसका पास के लोगों पर बहुत बुरा असर पड़ता है क्योंकि इस धुएं में अनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व होते हैं। इस तरह धूम्रपान करने वाले लोगों द्वारा पास के लोगों पर छोड़े गए धुएं से विश्व में एक वर्ष में 12 लाख मौत होती हैं। 65000 बच्चे इस कारण एक वर्ष में मरते हैं और कितने ही अन्य बच्चों के स्वास्थ्य की क्षति होती है। इसी तरह यदि माता-पिता गुटखे और तंबाकू का सेवन करते हैं तो बच्चों को भी कम उम्र में इसकी लत लग जाती है और उनके स्वास्थ्य की तबाही शुरू हो जाती है। गुटखे, तंबाकू, सिगरेट-बीड़ी से जहां गंभीर रोग होते हैं वहां दांतों और मुंह पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है और दिमाग में सिकुड़न आती है, उसकी क्षमता कम होती है।
पिता के शराब पीने से बच्चों पर कई दुष्परिणाम होते हैं जैसे अवसाद, भावनात्मक क्षति, अकेलापन। इसके अतिरिक्त बच्चों की शिक्षा और सीखने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उनके द्वारा भी नशा करने की आशंका बढ़ती है।
कुछ अध्ययनों ने शराब के इन सामाजिक दुष्परिणामों की आर्थिक कीमत लगाने का प्रयास किया है जिससे पता चलता है कि शराब के सामाजिक दुष्परिणाम कितने महंगे पड़ते हैं। यूरोपियन यूनियन के लिए वर्ष 2003 में लगाए गए अनुमान में शराब के सामाजिक दुष्परिणामों की कीमत 125 अरब यूरो लगाई गई। अमेरिका के लिए वर्ष 2006 में शराब के सामाजिक दुष्परिणामों की कीमत 233 अरब डॉलर लगाई गई।
एक कुप्रयास कुछ वर्षो से हो रहा है और वह यह है कि शराब के विरुद्ध जो सामाजिक मान्यता सदा से भारतीय समाज में रही है, उस मजबूत और सार्थक परंपरा को ही समाप्त कर दिया जाए। शराब और अन्य तरह के नशे के विरुद्ध जो सामाजिक मान्यता बहुत पहले से रही है, उसे समाप्त नहीं होने देना चाहिए, बल्कि उसे तो और मजबूत करने की जरूरत इस समय है। केवल कानूनी कार्रवाई से शराब के नशे को दूर नहीं किया जा सकता है, इसके साथ नशे के विरुद्ध व्यापक जन-अभियान की भी जरूरत है। यदि पिछले कुछ दशकों को देखें तो समय-समय पर शराब के विरुद्ध बहुत सफल जन-आंदोलन भी हुए हैं। ऐसे सब जन अभियान और आंदोलन बहुत सार्थक तो रहे हैं, पर एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या उनकी निरंतरता को बनाए रखा जा सकता है? कुछ समय बाद आंदोलन और अभियान ढीले पड़ते हैं तो शराब की कमाई से जुड़े तत्व फिर हावी हो जाते हैं। शराब का ठेका हटा दिया गया तो भी वे अन्य तरह से अवैध शराब बेचने लगते हैं। अत: यह जरूरी है कि जहां आंदोलन होते हैं और शराब के विरुद्ध लोग एकजुट हों वहां स्थाई तौर पर नशा विरोधी समितियों का गठन हो जाना चाहिए और इनकी मीटिंग भी नियमित तौर पर होनी चाहिए ताकि नशे के विरुद्ध जो चेतना लोगों में आई है, वह बनी रहे।
एक स्पष्ट नीति यह होनी चाहिए कि किसी भी गांव में यदि 50 प्रतिशत व्यक्ति शराब की दुकान के या ठेके के विरुद्ध हस्ताक्षर करते हैं तो वहां शराब का ठेका नहीं खुल सकता है। यदि यह पहले से खुला है तो 50 प्रतिशत लोगों के विरोध का हस्ताक्षरित आवेदन मिलने पर इसे बंद करना चाहिए। इसके साथ जहां भी अवैध शराब बिकती है, उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
कुछ लोग कहते हैं कि शराब छोड़ना कठिन है, पर बहुत से लोगों ने पक्का मन बनाकर, दृढ़ निश्चय कर शराब छोड़ी है, और छोड़ रहे हैं। मूल बात है अपने बच्चों और परिवार की भलाई को ध्यान में रख कर, अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इच्छाशक्ति को पक्का करना। हां, फिर भी अगर जरूरत हो तो डाक्टर से दवा और सलाह ली जा सकती है पर सबसे बड़ी जरूरत अपने मन को, अपनी इच्छाशक्ति को पक्का करने की है। हर तरह का नशा घातक है। अत: शराब के साथ ड्रग्स, सिगरेट, बीड़ी, गुटका, तंबाकू आदि से भी दूर रहें। ऐसे नशा-विरोधी जन-अभियान की जरूरत है, जिसमें शराब, सिगरेट बीड़ी, गुटखे, तरह-तरह के ड्रग्स, हुक्के सब को समाज से हटाया जाए या कम से कम किया जाए।
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