सामयिक : विपक्षी गठबंधन में रस्साकसी

Last Updated 18 Dec 2024 01:42:08 PM IST

लोक सभा चुनाव के पूर्व और उसके कुछ समय बाद तक इंडिया गठबंधन के अंदर दिखती एकजुटता और आक्रामकता सतह से भी धीरे-धीरे अगर कमजोर या गायब हो रही है तो इसे भारतीय राजनीति के लिए महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में देखना होगा।


ऐसा नहीं है कि इंडिया गठबंधन के दलों और नेताओं में भाजपा विरोध या सत्ता से इसे हटाकर उस जगह आने का भाव नहीं है। किंतु सामान्य दृष्टि से भी देखें तो संसद सत्र में कोई एक पार्टी पूर्व की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को लेकर आक्रामक बैर भाव सबसे ज्यादा प्रदर्शित कर रही है तो वह केवल कांग्रेस है।

अदाणी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन के दौरान का दृश्य साफ बता रहा था कि कांग्रेस इस मामले में अकेले पड़ रही है। तृणमूल कांग्रेस और सपा इसमें नहीं थी। हालांकि संसद अधिवेशन के दौरान विपक्षी नेता राज्य सभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कमरे में इकट्ठे होते दिखे। धीरे-धीरे इसमें परिवर्तन आने लगा। अब साफ हो रहा है कि कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर मुख्य विपक्षी दलों के अंदर निराशा और दूरी बनाने का भाव बढ़ गया है। इससे इंडिया गठबंधन के अस्तित्व पर भले प्रश्न खड़ा नहीं हो किंतु नेतृत्व को लेकर अवश्य असमंजस की स्थिति बनने का संकेत मिल रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक साक्षात्कार में कहा है कि इंडिया गठबंधन को मैंने तैयार किया है। इसे चलाना उन पर निर्भर है जो इसका नेतृत्व कर रहे हैं।

अगर वह इसे ठीक से नहीं चला पा रहे तो मैं क्या कर सकती हूं? समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि राहुल गांधी तो अभी भी इंडिया गठबंधन के नेता नहीं हैं। उनकी संभल यात्रा पर कटाक्ष किया। यही नहीं उन्होंने उनके नेतृत्व में कांग्रेस के चुनाव हारने का भी जिक्र कर हैसियत बताने की कोशिश कर दी। इन वक्तव्यों को किस तरह देखा जाए यह बताने की आवश्यकता नहीं। विपक्ष की राजनीति पर दृष्टि रखने वाला कोई भी महसूस कर सकता है कि राहुल गांधी और उनके सलाहकारों और रणनीतिकारों को लेकर अन्य घटक दलों में स्पष्ट नाराजगी है।

लोक सभा में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी तृणमूल और तीसरी सपा है। ये दोनों पार्टयिां राहुल गांधी और कांग्रेस पर स्पष्ट बोल रही हैं। ममता ने भले राहुल और कांग्रेस का नाम नहीं लिया, लेकिन दिख रहा कि नाराजगी किससे है। उनकी अगली पंक्ति देखिए, ‘वे लोग मुझे भी पसंद नहीं करते लेकिन मैं सभी राष्ट्रीय क्षेत्रीय दलों के संपर्क में हूं और उन सबसे अच्छा संबंध बनाकर चलती हूं।’ जब उनसे पूछा गया कि इंडिया गठबंधन का नेतृत्व संभालने में क्यों हिचकिचा रही है तो ममता ने कहा, ‘गठबंधन का दायित्व मिलने पर मैं बंगाल की बागडोर संभालते हुए इसे बंगाल से भी चला सकती हूं। मैं बंगाल की मिट्टी छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती। ‘अगर वह कांग्रेस के नेतृत्व से प्रसन्न होतीं या उनके साथ रहने का इरादा रखतीं तो भाषा अलग होती।

सपा के राज्य सभा सदस्य जावेद अली खान का बयान छपा है कि उनकी पार्टी अब भी इंडिया गठबंधन में है, लेकिन इसके भीतर मतभेद हैं। लालू प्रसाद यादव ने भी कहा है कि ममता को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व दिया जाना चाहिए। शरद पवार ने भी लगभग इसका समर्थन कर दिया है। दरअसल, राहुल और उनकी बहन प्रियंका की अदाणी मुद्दे पर ऐसी जिद और हठवादिता को अन्य दल पसंद नहीं कर रहे। वह व्यक्तिगत बातचीत में प्रतिक्रिया भी देते हैं कि राहुल तो अदाणी से बाहर निकलने के लिए तैयार ही नहीं है। थोड़ा पीछे लौटेंगे तो ध्यान में आएगा कि कांग्रेस और राहुल को लेकर इस समय इंडिया गठबंधन में शामिल अनेक नेताओं और दलों को पहले भी समस्या थी और उन्होंने सरेआम इसे प्रकट भी किया था।

ममता की पार्टी ने राहुल गांधी पर जितने तीखे हमले किए थे उतना भाजपा ने भी कई बार नहीं किया। कोई उन्हें बिना उत्तरदायित्व के नेता तो कोई संघर्ष के समय विदेश रहने वाला कहता था। ममता बनर्जी ने उन्हें अनुभवहीन तक कह दिया था। अखिलेश यादव ने 2023 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, विधानसभा चुनाव से लेकर लोक सभा चुनाव के पूर्व तक जिस तरह कांग्रेस पार्टी पर प्रहार किए थे वह एक दिन में समाप्त नहीं हो सकता था। कांग्रेस की ओर से भी पिछले वर्ष सपा और तृणमूल सहित ममता बनर्जी पर सीधे प्रहार किए गए।

सच यह है कि प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और संघ से विचारों पर सामान्य मतभेद की जगह जन्मजात विरोध और सत्ता में किसी तरह वापस लौटने की भावना से ये दल साथ आए। हालांकि इंडिया गठबंधन के बावजूद कई राज्यों में पूर्ण सीटों का पूरा तालमेल संभव नहीं हो सका। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों ने फिर कांग्रेस को वहीं ला दिया जहां वह लोक सभा चुनाव के पूर्व खड़ी थी। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस को विजय मिली, लेकिन कांग्रेस का प्रदशर्न बुरा रहा। कांग्रेस के बगैर उमर अब्दुल्ला ने सरकार गठित कर ली। चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने राहुल और कांग्रेस की आलोचना कर की थी कि उनके लिए जम्मू कश्मीर का चुनाव आवश्यक है या मणिपुर और दूसरी जगह जाना? झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के कारण ही कांग्रेस को कुछ सीटें प्राप्त हुई।

महाराष्ट्र चुनाव परिणाम के बाद शिवसेना उद्धव ठाकरे के नेता संजय राऊत ने भी कांग्रेस के रवैये को पराजय के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। चुनाव के दो दिन पूर्व अपनी पत्रकार वार्ता में राहुल द्वारा धारावी पुनर्विकास परियोजना पर अदाणी और मोदी को निशाना बनाने पर महाविकास अगाड़ी के शरद पवार ने ही सार्वजनिक रूप से असहमति प्रकट कर दिया। हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अंतत: कांग्रेस से अलग रास्ता अपनाया। बावजूद यदि कांग्रेस विशेषकर राहुल और उनके सलाहकारों-रणनीतिकारों को विपक्ष के अंदर उनसे खिन्नता की समझ नहीं आ रही तो मान कर चलना चाहिए कि कांग्रेस के अच्छे दिन नहीं आने वाले। राहुल गांधी और व्यवहार में उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस के अंदर अभी तक वस्तुस्थिति समझकर ईमानदार आत्मंथन की कोई संभावना नहीं दिख रही है।
(लेख में विचार निजी हैं)

अवधेश कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment