मुद्दा : पर्वतों को बचाने की चुनौतियां
भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में पर्वत देवता के रूप में पूजे जाते रहे हैं, लेकिन पहाड़ों के बेतहाशा दोहन से कई समस्याएं पैदा हुई हैं। हम भूल गए कि पहाड़ों के संरक्षण, सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।
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जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल के अनुसार 84 प्रतिशत स्थानीय पर्वतीय प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र दशक 2021-30 प्रकृति की गिरावट रोकना और वापस लाना दस साल की कोशिश है।
जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर धरती, पर्वत और हवा पर पड़ा है। धरती तेजी से गर्म हो रही है। मौसम असंतुलित हो गया है। प्राकृतिक आपदाएं ज्यादा देखी जाने लगी हैं। पर्वतों का दोहन इतना अधिक किया गया कि दूसरी तमाम तरह की प्राकृतिक दुर्घटनाएं और समस्याएं आए दिन होने लगी हैं। पर्वतों के दोहन को बचाने और पर्वतों के महत्त्व को समझाने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को ‘अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस’ मनाने की घोषणा की। हर साल 11 दिसम्बर को अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाए जाने का मकसद पर्वतों का संरक्षण, सुरक्षा और उनके दोहन को रोकना है।
जाहिर है पर्वत और इंसान का रिश्ता बहुत पुराना है। उतना पुराना जितना मानव सभ्यता। धरती का 27 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ों से ढका हुआ है। दुनिया के पंद्रह प्रतिशत आबादी का घर पहाड़ हैं, और दुनिया के लगभग आधे जैव विविधता वाले हॉटस्पाट की मेजबानी भी पहाड़ करते हैं। दुनिया की आधी आबादी के रोजमर्रा की जिंदगी बसर के लिए पानी उपलब्ध कराने का कार्य पहाड़ करते हैं। कृषि, बागवानी, पेय जल, स्वच्छ ऊर्जा और दवाओं की आपूर्ति पहाड़ों के जरिए होती है। दुनिया के अस्सी प्रतिशत भोजन की आपूर्ति करने वाली बीस पौधों की प्रजातियों में से छह की उत्पत्ति और विविधता पहाड़ों से जुड़ी है।
आलू, जौ, मक्का, टमाटर, ज्वार, सेब जैसे उपयोगी आहारों की उत्पत्ति पहाड़ हैं। हजारों नदियों के स्रेत पहाड़ हैं। भारत में नदियों को ही पूजा नहीं जाता, बल्कि अनेक पहाड़ों की पूजा भी की जाती है। तमाम चमत्कारिक घटनाएं पहाड़ों से जुड़ी हैं। तमाम तरह की सामाजिक, धार्मिंक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत पहाड़ों से जुड़ी हैं। इसलिए पहाड़ों का संरक्षण हमारा कर्त्तव्य है। सृष्टि-उत्पत्ति के साथ सागर और पहाड़, दोनों मानवता के विकास के आधार रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे नई सभ्यता और संस्कृति के साथ विज्ञान का विकास होता गया वैसे-वैसे पहाड़ और सागर, दोनों प्रदूषित किए जाने लगे। आज हालत यह हो गई है कि पहाड़ और सागर, दोनों का वैभव खत्म होता जा रहा है। जैसे-जैसे वैश्विक जलवायु गर्म होती जा रही है, पर्वतीय ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इससे जैव विविधता पर ही असर नहीं पड़ रहा, बल्कि ताजे पानी की उपलब्धता और औषधियां भी लुप्त हो रही हैं।
पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र बढ़ते प्रदूषण की वजह से खतरे में है यानी दुनिया भर में पर्वतों को संरक्षण देने की जरूरत है। पर्वत हमारे लिए कितने उपयोगी हैं, इसे वह समुदाय सबसे ज्यादा जानता है जिसकी रोजमर्रा की जिंदगी की हर कवायद पर्वतों से जुड़ी है। यूं तो पहाड़ों के संरक्षण को लेकर विश्व का ध्यान 1992 में गया जब पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र संघ सम्मेलन में एजेंडा 21 के अध्याय 13 ‘नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन : सतत पर्वतीय विकास’ पर जोर दिया गया। अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाने से पिछले दस सालों में पर्वतीय पर्यटन तेजी से बढ़ा है लेकिन इसका नुकसान भी देखा गया है। पर्यटकों की लापरवाही से पर्यावरण का नुकसान हुआ और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र के कमजोर पड़ने का खतरा बढ़ा है।
पहाड़ी इलाकों के निवासियों को रोजगार जंगल और पहाड़ से मिलता है। खासकर महिलाओं के लिए पहाड़ किसी खेती से कम नहीं हैं। युवाओं के लिए पर्वतीय जैव विविधता का संबंध आज अधिक विसनीय है क्योंकि कलाकृतियों के संरक्षण, मूर्तिकला और बेहतर स्वास्थ्य पहाड़ों के स्वच्छ पर्यावरण से ताल्लुक रखता है। आजीविका और प्राकृतिक आहार पहाड़ों से जितना अच्छा मिलता है, उतना शायद और कहीं से नहीं मिलता। ईधन, औषधियों और लता वाली तरकारियां पहाड़ के दरे में उगती हैं।
तमाम जीव-जंतुओं के आवास स्थल पहाड़ हैं। पहाड़ों के दोहन या क्षरण का मतलब जीव-जंतुओं, बहुमूल्य वनस्पतियों, औषधियों और खनिज-रत्नों से महरूम होना है। हिमाचल प्रदेश में 11-12 जिलों में कुदरत के कहर से पहाड़ का पोर-पोर धंस रहा है। असम, झारखंड, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी पहाड़ों के साथ खूब अनर्थ हुआ है। इसे रोकने के लिए राज्य सरकार, केंद्र सरकार, पर्यावरण संरक्षक और जनता को माफिया के खिलाफ आगे आना होगा। धरती पर रहने वाले हर इंसान का पहाड़ों से रिश्ता रहा है। पर्वत बचेंगे तभी मानव सभ्यता, संस्कृति और सेहत, तीनों का बचाव होगा।
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