वैश्विकी : किस ओर जाएगा सीरिया
अरब में असद का अर्थ साहस, वीरता और आक्रामकता से लगाया जाता है, लेकिन सीरिया में ऐसा बिल्कुल नहीं है। यहां के बाशिंदों के लिए बशर अल असद निर्मम और अत्याचारी शासन व्यवस्था के प्रतीक है।
वैश्विकी : किस ओर जाएगा सीरिया |
पश्चिम एशिया के इस ऐतिहासिक देश में लोकतंत्र को कुचल कर ढाई दशकों तक अधिनायकवादी शासन व्यवस्था कायम करने वाले राष्ट्रपति बशर अल असद विद्रोही समूहों के प्रभाव से डर कर देश छोड़कर भाग गए हैं। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भू राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण इस देश की सामरिक स्थिति महाशक्तियों को आकर्षित करती रही है और असद ने सत्ता में बने रहने के लिए अपने देश को वैश्विक प्रतिद्वंद्विता के लिए युद्ध का मैदान बना दिया था।
सीरिया की अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम है, जिनमें सुन्नी मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, जबकि असद का संबंध शियाओं से रहा है। 2000 से सत्ता पर काबिज असद की तानाशाही से त्रस्त जनता ने 2011 में उनका खूब विरोध किया था। इस दौरान लोग अरब स्प्रिंग से प्रभावित थे और यहीं से सीरिया में गृहयुद्ध की शुरूआत हुई थी। यह विरोध प्रदशर्न धीरे-धीरे एक सशस्त्र संघर्ष में बदल गए। विभिन्न देशों ने अपनी-अपनी राजनीति और रणनीतियों के तहत इसमें हस्तक्षेप किया। रूस और ईरान ने असद सरकार का समर्थन किया जबकि अमेरिका, तुर्की और अन्य पश्चिमी देशों ने विभिन्न विपक्षी गुटों का समर्थन किया। जब इन प्रदशर्नों को असद ने हिंसक रूप से दबाया तो यह संघर्ष धीरे-धीरे गृहयुद्ध में बदल गया।
सरकार समर्थक बलों को शिया समर्थक बल कहा जाने लगा, जिसमें ईरान और हिजबुल्ला शामिल हो गए जबकि सुन्नी संगठनों को तुर्की और सऊदी अरब का साथ मिला इस युद्ध ने न केवल सीरिया की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को नष्ट किया बल्कि नागरिकों के लिए भी अत्यधिक कठिनाइयां पैदा कीं। इन संघर्ष के परिणामस्वरूप विस्थापन और शरणार्थी संकट बढ़ा। इसने लाखों लोगों को अपने घरों से विस्थापित कर दिया। यह संकट एक मानवीय त्रासदी के रूप में सामने आया जिसमें लाखों लोगों की जानें गई और अरबों डॉलर की आर्थिक क्षति हुई। सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद की सत्ता जाने के कुछ घंटों बाद ही सीरियाई नागरिक पड़ोसी मुल्क लेबनान और जॉर्डन से लौटने लगे हैं। पूरे सीरिया में जश्न मनाया जा रहा है क्योंकि बशर अल असद का सत्तावादी शासन समाप्त हो गया है। सीरिया एक जातीय और धार्मिंक विविधता वाला देश है।
प्रत्येक जाति और समुदाय अपने-अपने क्षेत्रों में बसता है और उनके बीच विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिंक पहचान के आधार पर विभाजन होता है। असद को सत्ता से हटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका हयात तहरीर अल-शाम नामक संगठन की है। यह एक जिहादी संगठन है जो अल कायदा से संबंधित था, लेकिन बाद में उसने अपनी पहचान अलग कर ली थी। इसका मुख्य उद्देश्य असद शासन को उखाड़ फेंकना था और इसके लिए यह एक कट्टरपंथी इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहा था। हयात तहरीर अल-शाम को सुन्नी गुट कहा जाता है और यह पहचान सीरिया में शांति की संभावनाओं को धूमिल कर सकती है। हालांकि यह संगठन पिछले कुछ साल से ख़्ाुद को एक राष्ट्रवादी ताकत के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस पर दूसरे जातीय समूह भरोसा करेंगे, इस पर गहरा संदेह है। हयात तहरीर अल-शाम पर देश के कुर्द संगठन बिल्कुल भरोसा नहीं कर सकते। कुर्द समुदाय सीरिया की कुल जनसंख्या का लगभग 10 से 15 फीसद है। कुर्द मुख्य रूप से सीरिया के उत्तर और उत्तर-पूर्वी इलाकों में रहते हैं। ये इलाके तुर्की और इराक की सीमा के पास स्थित हैं।
कुर्द सीरिया के उत्तरी क्षेत्रों में एक कुर्द स्वायत्त क्षेत्र स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। हयात तहरीर अल-शाम को तुर्की का समर्थन हासिल है वहीं कुदरे को लेकर आर्दोआन की नीतियां बेहद सख्त और आक्रामक रही है। तुर्की सरकार कुदरे के अलग देश की मांग को खुद की संप्रभुता के लिए खतरनाक समझती है। तुर्की में कुदरे की आबादी लगभग पंद्रह से बीस फीसद है और वे मुख्य रूप से तुर्की के दक्षिण-पूर्वी इलाकों में बसते हैं जो सीमा से जुड़े हुए हैं। तुर्की की सरकार ने ऐतिहासिक रूप से कुदरे की सांस्कृतिक पहचान, भाषा और स्वायत्तता को दमन किया है। इसके परिणामस्वरूप कुदरे में असंतोष और विरोध की भावना पनपी है जो समय-समय पर हिंसक संघर्ष के रूप में उभरकर सामने आई है। तुर्की ने अपनी सीमा के पास सैन्य कार्रवाइयां तेज की है, जिसमें हजारों कुर्द नागरिकों और लड़ाकों की मौतें हुई हैं।
सीरिया में सत्ता बदलने के बाद कुदरे की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होगी। यदि सत्ता पर तुर्की का प्रभाव रहा तो देश में कुदरे का हिंसक आंदोलन बढ़ सकता है और यह सीरिया में शांति स्थापना के मार्ग में बड़ा अवरोधक बन सकता है। बशर-अल-असद जिस अलावाइट समुदाय समुदाय से आते है वह सीरिया की कुल जनसंख्या का लगभग बारह फीसद है। यह समुदाय मुख्य रूप से सीरिया के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस समुदाय का राजनीतिक प्रभाव काफी अधिक है। सीरिया की 90 फीसद आबादी मुस्लिम है और 10 फीसद ईसाई। सुन्नी मुस्लिम कुल जनसंख्या के 74 फीसद हैं, जबकि शिया करीब 13 फीसद। इसके साथ देश की आबादी का करीब पांच फीसद ड्रूज समुदाय विशेष रूप से दक्षिणी सीरिया के क्षेत्रों में बसता है। ये क्षेत्र जॉर्डन और लेबनान की सीमा के पास हैं।
ईसाई समुदाय सीरिया के पश्चिमी हिस्सों और तटवर्ती इलाकों में भी निवास करते हैं। हयात तहरीर अल-शाम सीरिया में अभी सबसे मजबूत विद्रोही संगठन है। यह संगठन शियाओं, ईसाईयों और कुदरे से कैसे सामंजस्य स्थापित करता है, इस पर ही सीरिया का भविष्य निर्भर होगा। असद परिवार के दौर में शिया समुदाय ने लंबे समय तक सत्ता में रहकर जिस सख्त अंदाज में लोकतांत्रिक और जन आंदोलनों को कुचलने में भूमिका निभाई थी, उसका गुस्सा बहुसंख्यक सुन्नी जनता में निश्चित ही होगा। बहरहाल सीरिया को अभी वैश्विक और आंतरिक मोर्चो पर कई जटिलताओं से गुजरना है, लेकिन असद के पतन से सीरिया की उम्मीदें बढ़ी है।
(लेखक के निजी विचार हैं)
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