विश्व शांति : पूरी दुनिया को परिवार मानने में ही भलाई
विभिन्न स्तरों पर समर्पण की सोच दुनिया में प्रचलित है। इनमें सबसे अधिक देश के लिए समर्पित होने या धर्म के लिए समर्पित होने की सोच नजर आती है। इन दो तरह की सोच को अधिक मान्यता प्राप्त है।
विश्व शांति : पूरी दुनिया को परिवार मानने में ही भलाई |
इसके अतिरिक्त जगह-जगह पर विभिन्न तरह की क्षेत्रीय, प्रांतीय, जातीय, वर्गीय और नस्लीय पहचान के आधार पर भी समर्पण भाव देखा जाता है।
इन सब से हट कर एक अन्य पहचान भी हो सकती है जो बहुत महत्त्वपूर्ण है पर फिर भी इस पहचान को बहुत कम महत्त्व मिला है। यह विश्व नागरिकता या विश्व बंधुत्व की पहचान है। इस सोच में पूरे विश्व को एक बड़े परिवार के रूप में ही देखा जाता है। सभी लोग मूलत: एक ही विश्व के नागरिक हैं। अत: इस सोच में रंग, नस्ल, लिंग, जाति, धर्म, क्षेत्रीयता, राष्ट्रीयता, किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। किसी भेदभाव के बिना सभी लोगों की भलाई को सोच का आधार बनाया जाता है।
इस सोच में अनेक तरह की संकीर्ण सोच से ऊपर उठ कर पूरे विश्व को अपना मानने और पूरे विश्व की भलाई को अपना उद्देश्य मानने की व्यापक सोच प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इस सोच में निहित है कि जहां कहीं भी टकराव की कोई आशंका उत्पन्न होगी उसका शांतिपूर्ण समाधान निकाल लिया जाएगा क्योंकि मूल सोच तो सबकी भलाई की है, केवल अपना स्वार्थ साधने की नहीं है। इस तरह की सोच का जितना प्रसार होगा, युद्ध, गृह युद्ध और हर तरह की हिंसा की आशंका अपने आप कम होती जाएगी। यह किसी भी समय के लिए बड़ी उपलब्धि होती पर वर्तमान दौर में जब युद्ध और हथियार अत्यधिक विनाशक हो चुके हैं, युद्ध की आशंका को कम कर पाना पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण और जरूरी हो गया है।
इसी तरह जो दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्याएं हैं (जैसे जलवायु बदलाव आदि) उनके लिए विभिन्न देशों को अपने संकीर्ण दृष्टिकोणों से ऊपर उठने की जरूरत है। यह तो धरती की जीवनदायिनी क्षमता को बचाने का सवाल है। धरती पर तरह-तरह के विविधता भरे जीवन पनपने के हालात बने रहें, इसके लिए विश्व स्तर पर सभी देशों के सहयोग की जरूरत है। यदि विश्व नागरिकता और विश्व बंधुत्व की सोच विकसित होगी तो इससे इन गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं की सुलझाने में मदद मिलेगी। विश्व बंधुत्व की सोच यदि सभी मनुष्यों तक सीमित रहे तो भी इसमें कुछ संकीर्णता आ जाएगी। अत: इस सोच में जीवन के सभी रूपों की रक्षा और भावी पीढ़ियों की रक्षा की सोच को भी अवश्य शामिल करना चाहिए।
विश्व नागरिकता और विश्व बंधुत्व की सोच को विभिन्न स्तरों पर प्रोत्साहित किया गया और इसे व्यापक जन-अभियान का रूप दिया गया तो इससे विश्व की अनेक गंभीर समस्याओं के समाधान में सहायता मिल सकती है। इसकी अनुकूल भूमिका तैयार करने के लिए विश्व बंधुत्व और नागरिकता पर कई स्तरों पर विमर्श जरूरी है। इसमें भारत के गांधीवादी आंदोलनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। सवरेदय आंदोलन की ‘जय जगत’ की सोच इसके बहुत अनुकूल है। विश्व में अमन-शांति के कई आंदोलन और अभियान हैं। उनका सहयोग इस कार्य में बेहतर से बेहतर ढंग से मिल सके, यह सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ भी अपनी विश्व स्तर की उपस्थिति और मान्यता से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इतना निश्चित है कि ये प्रयास व्यापक स्तर पर जरूरी हैं और इससे दुनिया की अनेक पेचीदा समस्याओं के समाधान में बहुत मदद मिलेगी।
विश्व के विभिन्न देशों में अनेक सार्थक जन आंदोलन सक्रिय हैं। वे एक-दूसरे के अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस वजह से एक-दूसरे के नजदीक आने की, एक दूसरे को बेहतर जानने की जरूरत सदा रही है। पर हाल के समय में जो स्थितियां विश्व स्तर पर तेजी से उत्पन्न हो रही हैं, उनके कारण विश्व भर के जन आंदोलन की नजदीकी और मित्रता को तेजी से बढ़ाने की जरूरत अब पहले से कहीं अधिक हो गई है। विश्व के अनेक वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अब तो धरती पर विविधता भरे जीवन को पनपाने वाली स्थितियां ही संकटग्रस्त हो गई हैं। ऐसा तरह-तरह के पर्यावरण विनाश के कारण हुआ है। इसके अतिरिक्त भविष्य के युद्धों में अगर महाविनाशक हथियारों का उपयोग हुआ तो इस कारण भी धरती की जीवनदायिनी क्षमता खतरे में पड़ जाएगी। इस तरह के महाविनाशक हथियारों के विशाल भंडार पहले ही एकत्र हो चुके हैं और इन हथियारों की होड़ और दौड़ जारी है।
दूसरी ओर विश्व के मौजूदा नेतृत्व को अभी तक ऐसी कोई सफलता नहीं मिली है, जिससे धरती पर जीवन की स्थितियों को संकटग्रस्त करने वाले इन कारकों पर असरदार रोक लगे। समस्याओं की गंभीरता वैज्ञानिक स्तर पर पता चलने के बावजूद ये समस्याएं कम नहीं हो रही हैं अपितु बढ़ रही हैं। अनेक अति शक्तिशाली देशों के नेतृत्व ने इन समस्याओं को अभी अपनी प्राथमिकता तक नहीं बनाया है और इस जिम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं। इस स्थिति में विश्व के जन आंदोलनों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि इन सबसे महत्त्वपूर्ण समस्याओं को समझ कर इन्हें सुलझाने में अपनी बढ़ती भूमिका को स्वीकार करें तथा इसके अनुकूल मेहनत और तैयारी करें। इसके लिए उन्हें व्यापक एकता बनानी होगी-अपने देश में भी और उससे बाहर भी। बहुत छोटे स्तर पर कार्य करते हुए वे इतने व्यापक मुद्दों को प्रभावित नहीं कर पाएंगे। गठबंधन और एकता के साथ उन्हें विश्व के विख्यात वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और प्रतिष्ठित नागरिकों को साथ जोड़ना पड़ेगा विशेषकर उन वरिष्ठ व्यक्तियों को जो पहले से इन सबसे महत्त्वपूर्ण समस्याओं को उच्च प्राथमिकता के आधार पर सुलझाने के लिए प्रयासरत रहे हैं।
इन नई जिम्मेदारियों को संभालने के लिए अनेक जन-संगठन और आंदोलन आगे बढ़े तो उन्हें पहले कदम पर अपनी सरकारों से विभिन्न तरह की रोक-टोक का सामना कर सकता है, पर यदि विश्व स्तर पर व्यापक एकता होगी तो इन समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। जन-आंदोलनों की मुख्य भूमिका यह है कि जीवन के अस्तित्व मात्र को खतरे में डालने वाली समस्याओं को जनसाधारण के बीच ले जाएं ताकि आम लोगों की ओर से इन समस्याओं को उच्च प्राथमिकता देने के लिए बड़ा दबाव बने। इन समस्याओं के महत्त्व की समय रहते व्यापक समझ बनेगी तो सरकारों पर भी समय रहते इन्हें सुलझाने के लिए दबाव बनेगा। यह भी जरूरी है कि समस्याओं के जो भी समाधान खोजे जाएं वे न्याय, समता और लोकतंत्र की परिधि में खोजे जाएं। इस तरह की सही राह तलाशने और व्यापक सहमति बनाने में जनांदोलनों और जन-संगठनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। बेशक, यह भूमिका सफलतापूर्वक निभाने के लिए उन्हें मेहनत और तैयारी करनी पड़ेगी।
| Tweet |