महाराष्ट्र : देखनी है बाज की असल उड़ान
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना के साथ गठबंधन में लड़ने और 105 सीटें जीतने के बावजूद उद्धव ठाकरे ने भाजपा को धोखा देकर कांग्रेस और राकांपा के साथ मिल कर सरकार बना ली थी।
महाराष्ट्र : देखनी है बाज की असल उड़ान |
महाविकास आघाड़ी के नेता बात-बात पर ‘मी पुन्हा येईन’ कह कर देवेंद्र फडणवीस की खिल्ली उड़ाने लगे थे। तब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में फडणवीस ने एक बार कहा था, ‘मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौट कर फिर आऊंगा।’ अब वही देवेंद्ररूपी समंदर मुंबई के अरब सागर के ज्वार की तरह विरोधियों को बहाता हुआ वापस आ गया है।
पहला अवसर नहीं है जब फडणवीस ने अपने विरोधियों को इस प्रकार धूल चटाई हो। 2014 का विधानसभा चुनाव भी प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उनके नेतृत्व में लड़ा गया था। तब शिवसेना से अचानक गठबंधन टूट जाने के बावजूद भाजपा 122 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, और राज्य में पहली बार फडणवीस के रूप में भाजपा को अपना मुख्यमंत्री मिला और वह लंबे समय बाद अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले मुख्यमंत्री बने। स्वाभाविक रूप से उनके ही नेतृत्व में 2019 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा गया था। मुख्यमंत्री का चेहरा भी उनका ही था।
उन्हीं के चेहरे पर महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटों का जनादेश दिया था लेकिन उद्धव की सत्तालोलुपता के कारण तब भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार नहीं बन सकी। तब उद्धव के अचानक पाला बदल लेने का दुख न सिर्फ भाजपा के समर्थकों और विधायकों को हुआ था, बल्कि शिवसेना के टिकट पर चुन कर आए ज्यादातर विधायक और उनके समर्थक भी हक्का-बक्का रह गए थे। चूंकि उनकी पार्टी सत्ता में आ गई थी, इसलिए वे सत्ता पाने की खुशी में कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दे सके। लेकिन ढाई साल बाद कांग्रेस और राकांपा के साथ काम करते हुए शिवसेना विधायकों का दम घुटने लगा था। यही कारण था कि 20 जून, 2022 को जब एकनाथ शिंदे ने उद्धव से अलग होने का फैसला किया, तो शिवसेना जैसी अनुशासित, सुगठित और समर्पित पार्टी के 39 अन्य विधायक भी उनके साथ आ गए।
इस प्रकार, फडणवीस ने राजनीतिक कुशलता का अद्भुत परिचय दिया और उद्धव को अपनी अकर्मण्यता की कीमत अपनी पार्टी के विभाजन के रूप में चुकानी पड़ी। लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी। राकांपा के तत्कालीन अध्यक्ष शरद पवार 2019 के चुनाव के बाद की घटनाओं को लेकर तरह-तरह के बयान देकर अपनी चतुराई का डंका स्वयं पीटते रहते थे। जुलाई, 2023 की शुरु आत में ही शरद पवार की पार्टी में भी बड़ी बगावत हुई, और उनके 40 विधायक भाजपा-शिवसेना सरकार में मिल गए। इन घटनाओं से पहले फडणवीस ने अपने विरोधियों को पहला झटका जून, 2022 में हुए राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में दे दिया था। राज्य सभा चुनाव में त्रिदलीय महाविकास आघाड़ी ने जबरन अपना चौथा उम्मीदवार खड़ा कर दिया था। इस चुनाव में फडणवीस ने प्राथमिक और द्वितीय प्राथमिकता के मतों का ऐसा खेल खेला कि वह कम संख्या होने के बावजूद भाजपा का तीसरा उम्मीदवार जिताने में सफल रहे, और सत्तारूढ़ आघाड़ी का चौथा उम्मीदवार हार गया।
लेकिन असली खेल तो इसके दस दिन बाद विधान परिषद चुनाव में हुआ। 20 जून, 2022 को हुए इस चुनाव में भी फडणवीस अपनी पसंद के उम्मीदवारों को जिताने में सफल रहे, और विधान परिषद चुनाव समाप्त होते ही शिवसेना सरकार में तब वरिष्ठ मंत्री रहे एकनाथ शिंदे अपने 16 साथियों के साथ उद्धव से बगावत कर सूरत जा पहुंचे। कुछ दिन बाद यह संख्या 40 पर पहुंच गई, और उद्धव की सरकार गिर गई। फडणवीस ने शिंदे के नेतृत्व में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनाई और अपने केंद्रीय नेतृत्व के आदेश पर खुद उपमुख्यमंत्री के रूप में सरकार में शामिल हो गए। उनके कदम की तारीफ खुद पवार ने यह कहते हुए की थी कि फडणवीस संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, जहां वरिष्ठों का आदेश सर्वोपरि होता है।
अब उसी संघ के आशीर्वाद और सहयोग से फडणवीस न सिर्फ भाजपा, बल्कि दोनों साथी दलों शिवसेना और राकांपा को भी बंपर सीटें जितवाने में सफल रहे हैं। पहला अवसर है जब भाजपा तीसरी बार लगातार 100 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुंबई में हुई कार्यकर्ताओं की बैठक में लक्ष्य दिया था कि 2024 में महायुति सरकार और 2029 में शुद्ध भाजपा सरकार। लेकिन भाजपा की संख्या देखें, तो भाजपा 2024 में ही शुद्ध भाजपा का लक्ष्य हासिल करने में करीब-करीब सफल रही है। इस लक्ष्य को पाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिए मंत्र ‘एक हैं, तो सेफ हैं’ और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ की भूमिका भी कम नहीं रही।
भाजपा संगठन ने समर्पण और सहयोग से इस विजयश्री को हासिल किया लेकिन इस सबके बावजूद इस विजय के असली सूत्रधार तो फडणवीस ही हैं। वैसे तो चुनौतियों को अवसर में बदल कर अपने लक्ष्य को हासिल करने की जो रीति माननीय प्रधानमंत्री मोदी ने शुरू की, फडणवीस भी उसी परंपरा के वाहक हैं। 2024 के लोक सभा चुनाव में महाराष्ट्र में परिणाम अच्छा नहीं रहा तो उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेकर फडणवीस ने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी । यह संकल्प भी ले लिया था कि विपक्ष के झूठे नैरेटिव को समाप्त कर यह चुनाव जीतना होगा। वास्तव में नेता ऐसा होना चाहिए जिसमें हार की जिम्मेदारी लेने की भी क्षमता हो और सफलता में बदलने का संकल्प लेकर उसे पूरा भी कर सके। 14 करोड़ महाराष्ट्रवासियों के सपनों को पूरा करने, प्रदेश को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने और जनता से किए वादों को पूरा करने का संकल्प उन्होंने चुनाव परिणाम स्पष्ट होते ही अपने एक्स हैंडल पर ‘बाज की असली उड़ान बाकी है’ लिख कर दोहरा दिया था। उम्मीद है कि बाज जैसी दूरदृष्टि रखने वाले फडणवीस महाराष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सफल होंगे।
(लेख में विचार निजी हैं)
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