बरेली पुल हादसा : लापरवाही कहें या हत्या
गूगल मैप्स हर किसी के जीवन का हिस्सा बन चुका है। एक स्थान से दूसरे गंतव्य तक पहुंचने के लिए इसका जम कर इसका इस्तेमाल हो रहा है। करोड़ों भारतीय रोजाना सफर करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।
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इससे उन्हें अपनी यात्रा प्लान करने में मदद मिलती है। इसमें सड़कें, मोड़, लेन की जानकारी शामिल होती हैं।
यह भी सच है कि आज की तारीख में गूगल मैप्स नेविगेशन के क्षेत्र में लीडर की भूमिका में है। लोगों की इस पर निर्भरता किस हद तक बढ़ गई है, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अगर आपकी, हमारी बिटिया देर रात भी कैब से एयरपोर्ट, स्टेशन जा रही है, या वहां से घर आ रही है, तो सुरक्षा के ख्याल से रिसीव करने या सीआफ करने की भी जरूरत नहीं है। घर बैठे ही उसकी लोकेशन ट्रैक की जा सकती है, और यह सुविधा तब तक रहती है, जब तक वह गंतव्य तक सुरक्षित नहीं पहुंच जाती। सुरक्षा की दृष्टि से यह बड़ी बात है, और जो भी इसका इस्तेमाल करते हैं, वे सफर आसान हो जाने के लिए गूगल को धन्यवाद देते भी नहीं थकते।
लेकिन पिछले दिनों बरेली में एक हादसे से सब कुछ उल्टा हो गया है। सुरक्षा को लेकर ही गूगल मैप्स ऐप पर सवाल खड़ा किया जाने लगा है। पूछा जा रहा है कि गूगल मैप्स ने टूटे पुल वाला रास्ता क्यों दिखाया? हालांकि इसमें भी दो राय नहीं कि हादसे के बाद प्रथम दृष्टया कोई भी यही सवाल करेगा। कई लोग तो तर्क देते हैं कि गूगल मैप्स बरेली में त्रासदी को टाल सकता था। यह गूगल मैप्स की लापरवाही है, जो यूजर्स डेटा की बड़ी मात्रा एकत्र करता है। पुल एक साल पहले ही गिर गया था, जिसका मतलब है कि इस अवधि के दौरान किसी भी यूजर ने उस सड़क का उपयोग नहीं किया। अगर यह मामला है तो सबसे बड़ा सवाल है कि गूगल मैप्स एक सड़क की सिफारिश कैसे कर सकता है, जिसका इस्तेमाल एक साल से ज्यादा समय से नहीं हुआ है?
राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा मिशन के प्रमुख अमित यादव का कहना है कि इस विसंगति को गूगल मैप्स के एल्गोरिदम द्वारा चिह्नित किया जाना चाहिए था, जिससे संभावित रूप से जीवन बच सकते थे, लेकिन जब इस मामले की तह में जाएंगे तब पता चलेगा कि सबसे बड़ा जिम्मेदार, गुनहगार कौन है बरेली में हुए दर्दनाक हादसे के लिए।
हमें समझना होगा कि आखिर, गूगल मैप कैसे रास्ता दिखाता है, कहां-कहां से डाटा इकट्ठा करके रास्ता बताने का काम करता है, और कब इसके फेल होने का खतरा रहता है? बता दें कि गूगल अपनी मैप सर्विस के लिए कई तरह से डाटा जुटाता है, और इसके आधार पर रास्ता बताता है। सबसे पहले सैटेलाइट इमेज के जरिए रूट की तस्वीर तैयार करता है। इसे तैयार करने में गूगल एरियल फोटोग्राफी का भी इस्तेमाल करता है। ट्रैफिक सिग्नल कैमरा, जीपीएस, यूजर इनपुट और स्ट्रीट मैप के जरिए गूगल डाटा तैयार करता है। इसके बाद गूगल की मैप सर्विस सारे इनपुट के साथ रियल टाइम डाटा की एनालिसिस करती है, और इसके आधार पर गूगल रास्ता दिखाता है। गूगल मैप जीपीएस सिस्टम के जरिए यूजर की लोकेशन और मंजिल के बीच का रास्ता बताता है। मोड़ से पहले वॉयस के जरिए यूजर्स को अलर्ट भी भेजता है। यह सब कुछ इसलिए संभव हो जाता है क्योंकि गूगल कई तरह से डाटा इकट्ठा करता है। सड़क की क्या स्थिति है, यह स्ट्रीट व्यू के जरिए पता चलती है। स्ट्रीट व्यू के लिए वो कैमरे जिम्मेदार होते हैं, जो गूगल को मौजूदा हालात की जानकारी देते हैं। इनके जरिए ही गूगल तक सड़कों की 360 डिग्री तस्वीर पहुंचती है। इन सबकी प्रॉसेसिंग के बाद ही गूगल मैप के जरिए आप तक जानकारी पहुंचाता है।
अब घटना स्थल की बात करें तो जिस पुल पर यह हादसा हुआ उसकी अप्रोच रोड करीब साल भर पहले ही बाढ़ में बह गई थी। दरअसल, बदायूं जिला दातागंज से बरेली जनपद के फरीदपुर को जोड़ने के लिए एक पुल का निर्माण कराया गया था। पुल 2021-22 में बन कर तैयार हुआ था और 2022 में पुल पर वाहन दौड़ने लगे थे। कुछ महीने बाद ही बाढ़ आई और 2023 जुलाई में पुल की अप्रोच रोड पूरी तरह से बह गई। अधूरे पुल पर जाने से ही गत रविवार सुबह कार पुल से नीचे नदी में गिर गई और 3 लोगों की मौत हो गई थी। इस पूरे मामले में पीडब्ल्यूडी अधिकारियों की बड़ी लापरवाही झलकती है। पीडब्ल्यूडी अधिकारियों ने पुल की अप्रोच रोड बहने के बावजूद पुल के दोनों ओर कोई भी अवरोध, बैरिकेड नहीं किया। इस वजह से दर्दनाक हादसे में 3 लोगो की जान चली गई। दोनों ओर बैरिकेड होता तो हादसा नहीं होता। कैमरे से गूगल को टूटे हुए पुल की जानकारी मिल जाती। पीडब्ल्यूडी द्वारा जान बूझकर पुल के दोनों किनारों पर मजबूत बैरिकेडिंग, अवरोध, रिफ्लेक्टर बोर्ड नहीं लगाया गया था। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
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