प्रदूषण : नासूर बनता बढ़ता स्तर

Last Updated 02 Dec 2024 01:59:14 PM IST

प्रदूषण को लेकर उद्योगों को जागरूक करने तथा लोगों में प्रदूषण और इसके खतरनाक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 2 दिसम्बर को ‘राष्ट्रीय प्रदूषण नियंतण्रदिवस’ मनाया जाता है।


इस दिवस को मनाए जाने का मूल उद्देश्य देश में प्रदूषण नियंतण्रअधिनियमों की आवश्यकता की ओर बहुत ज्यादा ध्यान देने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। वास्तव में यह दिन 1984 की उस भयानक गैस त्रासदी की घटना के कारण पीड़ित हुए लोगों के निर्दोष जीवन को याद करने के लिए चिह्नित किया गया है, जिसमें हजारों लोग भोपाल की यूसीआईएल फैक्टरी से मिथाइल गैस के रिसाव के कारण मौत की नींद सो गए थे।

इस दिन विशेष रूप से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया जाता है तथा देश में बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में लोगों को बताया जाता है। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंतण्रदिवस मनाए जाने का उद्देश्य लोगों को प्रदूषण रोकने में मददगार बनने और विभिन्न कानूनों के बारे में उन्हें अधिकाधिक जागरूक करना है। हालांकि औद्योगिक प्रदूषण की जांच के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड (एनपीसीबी) बनाया हुआ है, जो जांच करता है कि उद्योगों ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन किया है या नहीं लेकिन इसके बावजूद औद्योगिक प्रदूषण को लेकर आज भी स्थिति कितनी विकराल है, किसी से छिपा नहीं है।

कल-कारखानों एवं फैक्टरियों से निर्बाध रूप से निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन वायु प्रदूषण के स्तर को दिनों-दिन बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते जलवायु परिवर्तन की विभिन्न चुनौतियां दुनिया के सामने खड़ी हो रही हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन पर नियंतण्रके लिए दुनिया भर के देश वैश्विक उपाय कर रहे हैं, लेकिन ये उपाय अभी तक नाकाफी ही साबित हुए हैं। घातक विकिरणों से धरती की सुरक्षा करती ओजोन परत में छेद के लिए वायु प्रदूषण को ही जिम्मेदार माना जाता है। वातवरण में उत्सर्जित की जा रही जहरीली गैसों के कारण ही ओजोन परत में छिद्र हुआ है, जिसे भरने के लिए दशकों से प्रयास हो रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता हासिल नहीं हुई है।

भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के अनुसार वायु प्रदूषण विश्व भर में प्रति वर्ष करीब सत्तर लाख लोगों की मौत का कारण बन रहा है। आंकड़ों के अनुसार स्थिति इतनी खराब है कि वायु में मौजूद प्रदूषक हवा के जरिए सीधे शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों, मस्तिष्क तथा हृदय को नुकसान पहुंचाते हैं, और दस में से नौ लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी नहीं मिलती। प्रदूषण इस कदर नासूर बनता जा रहा है कि पिछले कुछ समय से इस मामले में बार-बार  सर्वोच्च अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा है। खासकर दिल्ली एनसीआर के बढ़ते प्रदूषण स्तर पर तो सुप्रीम कोर्ट कई बार कड़ी नाराजगी जताते हुए कड़े निर्देश दे चुका है लेकिन हालात जस के तस हैं।

हालांकि वायु गुणवत्ता आयोग द्वारा करीब डेढ़ महीने से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण नियंतण्रके लिए ग्रैप के तहत कार्रवाई की जा रही है और अभी भी ग्रैप-4 की पाबंदियां लागू हैं किंतु वायु प्रदूषण पर लगाम कसने में सफलता नहीं मिल पा रही है। दिल्ली में वायु प्रदूषण और वायु गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश की राजधानी में नवम्बर का महीना अत्यधिक प्रदूषित रहा और अभी भी हालात में सुधार की  संभावना नजर नहीं आ रही।

वायु प्रदूषण को लेकर देश के कई अन्य इलाकों के हालात भी अच्छे नहीं हैं। वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को लेकर सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि यह न केवल तरह-तरह की गंभीर बीमारियों का जनक बन रहा है, बल्कि प्रति वर्ष लाखों लोग वायु प्रदूषण के ही कारण काल के ग्रास बन रहे हैं। विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि दुनिया भर में करीब चार अरब लोग खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, केरोसिन ऑयल, गोबर इत्यादि ईधन पर निर्भर हैं, जो बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं, और इनका गंभीर असर पर्यावरण के साथ-साथ खाना पकाने वालों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

हेल्थ इफैक्ट इंस्टीच्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक बाहर तथा घर के अंदर लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, डायबिटीज, फेफड़ों का कैंसर तथा जन्म के समय होने वाली बीमारियों इत्यादि की चपेट में आकर अब हर साल भारत में कई लाख लोगों की मौत हो रही है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण और हृदय एवं फेफड़े रोगों के बीच संबंध होने के स्पष्ट साक्ष्य हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 के बाद से पांच करोड़ से अधिक लोग घर के अंदर वायु प्रदूषण से पीड़ित हुए हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक बेट रिट्ज का कहना है कि घरों के अंदर वायु प्रदूषण की सर्वाधिक समस्या भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है। वायु प्रदूषण दुनिया में मौत के बड़े कारणों में चौथे स्थान पर है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर’ रिपोर्ट के अनुसार उच्च रक्तचाप, तंबाकू सेवन तथा खराब आहार के बाद समय से पहले मौत का चौथा प्रमुख कारण वायु प्रदूषण ही है।

बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर तो दुनिया भर में अनेक शोध किए जा चुके हैं, और इन सभी का निष्कर्ष है कि प्रदूषण बच्चों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है, जिसके चलते प्रति वर्ष लाखों बच्चे असमय काल का ग्रास बन जाते हैं, और करोड़ों बच्चे मासूम उम्र में ही तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के अनुसार, वयस्कों की तुलना में बच्चे वायु प्रदूषण के सबसे आसान शिकार बन रहे हैं, जो अपने कोमल फेफड़ों और इम्यून सिस्टम के चलते हवा में मौजूद विषैले तत्वों को सांस के जरिए अपने अंदर ले रहे हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण बच्चे के फेफड़े और मस्तिष्क के विकास तथा संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर सकता है, और अगर समय पर इलाज नहीं कराया जाए तो वायु प्रदूषण से संबंधित कुछ स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं तो पूरी जिंदगी बनी रह सकती हैं।
(लेख में विचार निजी हैं)

योगेश कु. गोयल


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