मुद्दा : कैसे रुके राजमार्गों पर हादसे
जब भी कभी हम विदेशों की सड़कें और राजमार्गों पर फर्राटे से दौड़तीं गाड़ियों को देखते हैं तो मन में यही सवाल उठता है कि हमारे देश में ऐसे दृश्य कब दिखेंगे। आजादी के इतने दशकों बाद भी हमारे देश की सड़कों के हाल बेहाल है।
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राजनैतिक दल सत्ता में आते-जाते रहते हैं पर इन बुनियादी सुविधाओं पर किसी भी दल का ध्यान नहीं जाता, लेकिन बीते कुछ वर्षो में सड़कों व राजमार्गों के बनने में तेजी अवश्य आई है। वो अलग बात है कि चुनावी घोषणाओं के दबाव में और जल्दबाजी में इन सड़कों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।
राजनैतिक दल कोई भी हो राजमार्ग बनाने की जल्दी में किसी ने भी राजमार्गों पर होने वाले हादसों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए, जबकि विदेशों में राजमार्गों पर होने वाले हादसों के प्रति वहां की सरकारी और नागरिक काफी संवेदनशील हैं।
दो वर्ष पहले जब मशहूर उद्योगपति साइरस मिस्त्री की एक सड़क हादसे में मृत्यु हुई थी तो सड़क नियमों को लेकर काफी चर्चा हुई। इस हादसे के पीछे कई कारण बताए गए, जैसे की तेज गति, हादसे की जगह सड़क का कम चौड़ा होना, आदि। परंतु बुनियादी सवाल यह है कि किसी अमीर व्यक्ति द्वारा चलाई जाने वाली महंगी लग्जरी कार हो या किसी मामूली ट्रक या बस ड्राइवर द्वारा चलाए जाने वाला साधारण वाहन, क्या वाहन चलाने वाले और परिवहन नियम लागू करने वाले अपने-अपने काम के प्रति जिम्मेदार हैं?
क्या ये कहना गलत नहीं होगा कि हमारे देश में सड़क सुरक्षा और परिवहन के नियम और कानून दोनों ही काफी लचर हैं। यही कारण है कि भारत में सड़क दुर्घटनाएं और देशों की तुलना में काफी ज्यादा होती हैं? यदि कानून की बात करें तो हमारे देश के कानून इतने लचर हैं कि सड़क दुर्घटना में यदि किसी की मृत्यु भी हो जाती है तो वाहन चालक को बड़ी आसानी से जमानत भी मिल जाती है। ज्यादातर ट्रक व बस ड्राइवरों को भी इस बात का पता है कि उन्हें कड़ी सजा नहीं मिलेगी। सड़क नियम और कानून को सख्ती से लागू करने की जिम्मेदारी केवल ट्रैफिक पुलिस की नहीं होनी चाहिए। इनको लागू करने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाने चाहिए। होता यह है कि देश भर में सड़क व यातायात नियमों के लिए केवल साल में एक ही बार ऐसे अभियान चलाए जाते हैं। यदि ऐसे जागरूकता अभियान महीने में एक बार चलाए जाएं तो ड्राइवरों और आम जनता के बीच जानकारी सही से पहुंचेगी।
वे जागरूक होंगे और नियम तोड़ने से पहले कई बार सोचेंगे। इसके साथ ही कानून में भी कड़ी सजा के प्रावधान होने चाहिए जिससे कि सभी के बीच एक संदेश जाए कि यदि सड़क और यातायात नियमों को अनदेखा किया या उन्हें तोड़ा तो उसका परिणाम महंगा पड़ेगा। कड़े कानून लागू होने की बात करें तो होता यह है कि कई सड़कों पर और राजमागरे पर कुछ निर्धारित स्थानों पर स्पीड चेक करने वाले कैमरे लगे होते हैं। इनकी जानकारी वहां से नियमित रूप से निकालने वाले ड्राइवरों को पहले से ही होती है। इसलिए वे उस जगह पर अपनी गाड़ी को नियंत्रित गति से चलाते हैं। ऐसे में दुर्घटनाएं टल तो जाती हैं परंतु जैसे ही वो कैमरे की दृष्टि से दूर होते हैं, वैसे ही गाड़ी के एक्सलेरेटर को जोर से दबा देते हैं। मतलब यह हुआ कि केवल चालान से बचने की नीयत से ही वे गाड़ी को निर्धारित गति से चलाते हैं, जबकि यह तथ्य जगज़ाहरि है कि यदि आप अपनी गाड़ी को नियंत्रित गति से चलाते हैं तो न सिर्फ दुर्घटना टलती है बल्कि ईधन भी कम खर्च होता है।
सरकार और ट्रैफिक पुलिस को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जो कैमरे तेज रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों का चालान करते हैं, उनसे अधिक काम भी लिया जा सकता है। स्पीड कैमरे की तकनीक की बात करें तो उसमें लगे रेडार से एक सिग्नल जाता है जो केवल तेज रफ्तार से चलने वाली गाड़ी की ही फोटो खींचते हैं। यदि इसी तकनीक में थोड़ा सा सुधार किया जाए तो वही कैमरा कई ट्रैफिक उल्लंघनों की फोटो भी खींच सकता है।
ये सब बातें मैं इसलिए कह रहा हूं कि जब आज से कुछ वर्ष पहले मैं लंदन की यात्रा पर था तो वहां मेरे स्थानीय मित्र ने गाड़ी को राजमार्ग पर लाने से पहले चश्मा लगा लिया। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि, ‘मेरी गाड़ी और ड्राइविंग लाइसेंस पर जो फोटो लगी है उसमें मैंने मामूली नंबर का नजर का चश्मा पहना हुआ है। यदि मैं बिना चश्मे के गाड़ी चलाऊंगा तो मेरा चालान हो जाएगा।’ उनका मतलब यह था कि जगह-जगह लगे कैमरे हर पहलू को पकड़ लेते हैं। आज के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक से बढ़कर एक गुणवत्ता वाले कैमरे उपलब्ध हैं जो इन सभी पहलुओं को पकड़ सकते हैं। जरूरत केवल सही सोच और पहल करने की इच्छा की है। देखना यह है कि हमारे देश में ऐसे बदलाव कब होंगे? केवल चुनावी घोषणाओं के चलते नये-नये राजमार्ग खोलने से कुछ नहीं होगा। सड़क और यातायात नियमों को सख्ती से लागू भी किया जाए। शायद तभी हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं में कमी आए।
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