विकास : ग्रामीणों की असाधारण उपलब्धियां
सरकुंवर की चर्चा आसपास के अनेक गांवों में अब ऐसी कर्मठ और साहसी महिला के रूप में है जिसने प्रतिकूल परिस्थितियों में न केवल अपने परिवार की स्थिति संभाली अपितु सैकड़ों लोगों को भी सहायता पहुंचाने वाले कार्य किए।
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उद्गवां (ब्लॉक तालबेहट, जिला ललितपुर) की इस महिला के पति जब एक दुर्घटना में विकलांग हो गए तो यह छोटा किसान परिवार गंभीर संकट में फंस गया था। गांव में भी स्थिति कठिन थी और लोग कमाने के लिए दूर शहरी इलाकों में जा रहे थे। सरकुंवर के लिए यह संभव न था, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। आसपास के नीम के पेड़ों से बहुत सी निंबोरिया एकत्र की हैं। इन्हें बेच कर अदरक की कुछ गांठें खरीदीं और इनसे आगे अदरक उगा कर 10,000 रुपये की बिक्री की। इस छोटी सी पूंजी में उसने परिवार का खर्च किसी तरह कठिन समय में चलाया। गांव में मनरेगा की चर्चा हुई तो सरकुंवर भी मजदूरी करने पहुंच गई। वहां से मेट ने उसे यह कह कर भगा दिया कि तुम्हारे पास तो जॉब कार्ड ही नहीं है। अब सरकुंवर ने जॉब कार्ड बनवाने का प्रयास किया तो वहां भी पहले सफलता नहीं मिली।
अब उसने कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता से किसी तरह अपना जॉब कार्ड बनवा लिया। बाद में तो वह मनरेगा कार्य करवाने के लिए स्वयं मेट बन गई और उसने लगभग 200 ग्रामीणों के जॉब कार्ड बनवाने में मदद की। इन्हीं दिनों परमार्थ संस्था अपने ‘जलसहेली’ नामक शीघ्र विख्यात होने वाला जल-संरक्षण से महिलाओं को जोड़ने का कार्यक्रम आरंभ करने लगी थी। सरकुंवर के साहस और कर्मठता से प्रभावित होकर सबसे पहली ‘जलसहेली’ के रूप में सरकुंवर का चयन किया गया।
कुछ समय पश्चात सरकुंवर को वार्ड पंच के रूप में भी सर्वसम्मति में भी चुन लिया गया और स्कूल समिति में भी। पर सरकुंवर के लिए इस ख्याति से अधिक महत्त्वपूर्ण यह था कि उसे लोक-सेवा का अधिक अवसर मिला है। उसने बहुत मेहनत करते हुए उच्च गुणवत्ता के चेकडैम बनवाने में भरपूर योगदान दिया जिससे लगभग 150 परिवारों की बंजर पड़ी भूमि सिंचाई प्राप्त कर सकी और वीरान पड़े इलाके में फसल लहलहाने लगी। इसी तरह सड़क बनवाने, 120 शौचालय बनवाने में, जलसंरक्षण में और घरों तक जल पहुंचाने में भी बहुत योगदान दिया तथा बहुत उत्साह से लगभग 15000 पौधे मनरेगा के अंतर्गत लगवाए।आसपास के गांववासी और कुछ अधिकारी भी सरकुंवर को स्वाभाविक ही ‘नेताजी’ कहने लगे।
इसके साथ सरकुंवर ने अपनी खेती को भी भरपूर संभाला है और अपने छोटे से खेत में बहुत निष्ठा से तरह-तरह के फलदार पेड़ों, सब्जियों, अनाज, मूंगफली, दलहन आदि की मिश्रित खेती करती हैं। पास के ही एक अन्य गांव बंमौरी में भी दलित किसान मनीराम और उसकी पत्नी शांति ने भी कर्मठता का सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी एक हेक्टेयर सिंचाई के अभाव में बेकार पड़ी थी जबकि वे प्रवासी मजदूर के रूप में इंदौर में दर-दर भटकते थे। यहां परमार्थ, सरकार और गांववासियों के सहयोग से जल संरक्षण कार्य हुए। चेकडैम बने, तालाब बना और बीज, पौधों आदि की सहायता का आासन भी मिला। अब मनीराम और शांति पूरी मेहनत से अपने उपेक्षित पड़े खेत को हरा-भरा करने में जुट गए।
उन्होंने खेत में ही अपना आवास बना लिया ताकि रात को जाग कर नील गायों से अपने खेत की रक्षा कर सकें। इन प्रतिकूल परिस्थितियों में मनीराम और शांति ने गेहूं, मूंगफली, सरसों, कई तरह की दलहन और मोटे अनाजों की खेती के साथ एक एकड़ में अमरूद, नींबू, आंवला, पपीता, शहतूत, केले, मोसमी, अनार के साथ गेंदे के छोटे-बड़े फूलों का सुंदर बगीचा भी लगाया। उनकी सारी खेती प्राकृतिक खेती है। रासायनिक खाद व कीटनाशक आदि का वे जरा भी उपयोग नहीं करते हैं। मनीराम ने कहा-हमें अपने स्वास्थ्य की चिंता है। हम नहीं चाहते कि हमारे खेत से कोई ऐसा उत्पाद निकले जो दूसरों के स्वास्थ्य का नुकसान करे। मनीराम ने यह भी कहा कि हर तरह के नशे से भी दूर रहना जरूरी है। जहां अन्य किसान बैल का छोड़ ट्रैक्टर की ओर तेजी से जा रहे हैं। मनीराम ने कहा-मुझे तो अपने बैलों हीरा-मोती से बहुत प्यार है। मैं उन्हें कभी नहीं छोडूंगा। गो-रक्षा में बैल रक्षा भी शामिल है।
इसी गांव के एक अन्य कर्मठ किसान दंपत्ति हैं घनश्याम और उनकी पत्नी सोना। इन सहरिया आदिवासी किसानों के पास मात्र 1 हैक्टेयर भूमि है, जिसमें से एक एकड़ भूमि पर उन्होंने बहुत सुंदर बगीचा लगाया है, जिसमें आंवले, अमरूद, नींबू, कटहल आदि के पेड़ हैं। इन पेड़ों के बीच के स्थान पर ही वे अनेक सब्जियों उगा रहे हैं जैसे बैंगन, टमाटर, लहसुन, प्याज, तोरई, लौकी, खीरा आदि। बगीचे की सीमा पर उन्होंने अनेक उपयोगी अन्य पेड़ लगाए हैं जैसे नीम, सागवान, बांस आदि। इसके अतिरिक्त अन्य खेत पर इस परिवार के सदस्य गेंहू, मक्का, सामा (मिलेट) आदि की खेती करते हैं और विशेषकर मूंगफली की खेती बहुत कुशलता से करते हुए एक ही वर्ष में इस परिवार ने एक लाख रुपये की आय मात्र इस फसल से प्राप्त की। इतना ही नहीं, सोना एक जल-सहेली भी है, जिसने जल संरक्षण कायरे में बहुत सहयोग किया है और अनेक दिन स्वयं श्रमदान भी किया है।
इस परिवार को भी नील गायों से फसल को बचाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है, और खेत की रक्षा के लिए खेत में ही रहना पड़ता है। इस तरह की कठिनाइयों के बीच इन परिवारों की सफलता और कर्मठता बहुत उम्मीद जगाने वाली है, पर साथ ही यह भी सच है कि इस क्षेत्र के अनेक विकास कायरे में प्रयासरत परमार्थ और स्थानीय प्रशासन के विकास कायरे से इन्हें वे अवसर मिले जिनसे इनकी प्रतिभाएं सामने आ सकीं। फिर चाहे यह विकास कार्य, जल-संरक्षण के कायरे या मनरेगा जैसे कार्यक्रमों से जुड़े हों या बीज, पौधों आदि की उपलब्धि से।
ऐसे प्रेरक उदाहरणों से यह भी झलक मिलती है कि अनेक छिपी ग्रामीण प्रतिभाओं और प्रयासों को यदि बेहतर अवसर मिलते रहे तो ग्रामीण विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इस तरह के बेहद प्रतिभाशाली और परिश्रमी ग्रामीणों की प्रतिभाओं और क्षमताओं को खिलने-निखरने के भरपूर अवसर मिले, इसके लिए हमें अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध करवानी चाहिए। विकास की उचित राह वही मानी जाएगी जहां निर्धन परिवारों में छिपी प्रतिभाओं को खिलने-निखरने के पर्याप्त अवसर मिले। प्रगति के पथ पर चलते हुए सभी गांववासी अपना योगदान दे सकें। एक तरह से सार्थक विकास की परिभाषा ही यह है कि सभी लोग अपनी प्रतिभाओं और क्षमताओं का भरपूर उपयोग अपने व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ सही सामाजिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए कर सकें।
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