विधानसभा चुनाव : इस जनादेश के मायने

Last Updated 26 Nov 2024 01:52:09 PM IST

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव परिणामों ने निश्चय ही कुछ अलग संकेत और संदेश दिए हैं। महाराष्ट्र परिणाम का निहितार्थ भाजपा गठबंधन द्वारा लोक सभा चुनाव परिणाम को पीछे छोड़कर अपने मुद्दों के आधार पर जनादेश पाना है।


महाविकास अघाड़ी लोक सभा चुनाव का परिणाम का विश्लेषण करने में चूकी और मान लिया कि यह भाजपा और संघ की विचारधारा तथा प्रदेश सरकार और केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के विरुद्ध जनादेश है जो जारी रहेगा। विधानसभा चुनाव परिणामों ने इस मान्यता को ध्वस्त किया है। भाजपा के नेतृत्व में महायुती की एकपक्षीय विजय है और भाजपा ने अपने इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें पाई। तो ऐसा परिणाम क्यों आया तथा झारखंड एवं महाराष्ट्र में अंतर क्यों है?

महाराष्ट्र के मतदाताओं ने रिकॉर्ड मतदान किया तभी लग गया था यह लोक सभा चुनाव की पुनरावृत्ति के लिए नहीं है। महिलाओं का भारी मतदान इसका बड़ा कारण था। पुरु षों की तुलना में केवल 28 लाख कम महिला मतदाताओं ने मतदान किया जबकि मतदाता संख्या में दोनों के बीच अंतर करीब 53 लाख था। कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में महिलाओं के खाते में एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा धन स्थानांतरित करना बड़ा कारण था। इससे हम इनकार नहीं कर सकते क्योंकि झारखंड में भी ‘मइया सम्मान योजना’ ने भूमिका निभाई, लेकिन महाराष्ट्र में दोनों पक्षों के बीच लगभग 15 फीसद मतों का अंतर केवल महिला मतदाताओं के कारण नहीं आ सकता।

लोक सभा चुनाव से तुलना करें तो साफ है कि दोनों पक्षों के बीच का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका है। भाजपा ने लोक सभा चुनाव में बहुमत से वंचित रहने के बाद तुरंत अपना पुराना तेवर हासिल करने की दिशा में तत्परता दिखाई। संघ नेतृत्व ने अपनी बातें उन तक पहुंचाई तथा लोक सभा चुनाव में अध्यक्ष जेपी नड्डा जी के ‘भाजपा को संघ की पहले की तरह आवश्यकता नहीं’ जैसे बयानों से पैदा हुआ असमंजस समाप्त हुआ।

लोक सभा में वक्फ कानून संशोधन विधेयक लाया और पूरे देश के साथ महाराष्ट्र में भी विचारधारा के आधार पर स्पष्ट विभाजन पैदा हुआ। महत्त्वपूर्ण मुद्दे हिन्दुत्व, हिन्दुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रीयता तथा इस्लामिक कट्टरवाद-इन पर सभी भाजपा शिवसेना नेता बेहिचक प्रखर और आक्रामक होकर बोलते रहे, इनसे जुड़े मुद्दे उठाते रहे, विपक्ष को हिन्दुत्व विरोधी, देश के हित के विरोध काम करने वाला घोषित किया। प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शैली, देवेंद्र फडणवीस आदि सभी प्रमुख नेताओं ने मजहबी कट्टरता, हिंदुत्व तथा विपक्ष के कट्टर मजहबवाद को प्रोत्साहित करने की नीति को मुख्य मुद्दा बनाया और पूरा वातावरण ऐसा था जिसमें मतदाताओं ने स्वीकार किया। टीवी चैनल पर ऐसे मतदाता सामने आए जो बोल रहे थे कि जिस तरह एक समुदाय किसी पार्टी को हराने के लिए काम कर रहा है उसे देखकर हम मतदान करने बाहर निकले।

महाराष्ट्र में मुस्लिम संगठनों और नेताओं के बीच महाविकास आघाड़ी को समर्थन देने की होड़ लगी हुई थी। ऐसी बैठकों के वीडियो सामने आए जिनमें मजहबी नेता, इमाम, मौलवी कह रहे हैं कि हमने लोक सभा चुनाव में अघाड़ी के पक्ष में फतवा जारी किया और विजय मिली, हम इस बार भी जारी कर रहे हैं। मुस्लिम नेता भाजपा, शिवसेना या महायुती को वोट देने वालों का हुक्का पानी बंद करने की सरेआम बात कर रहे थे। कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे तथा राकांपा -शरद पवार तीनों ने मुस्लिम वोट पाने के लिए इनको रोकने की जगह प्रोत्साहित किया। भाजपा शिवसेना समर्थकों में से जिनने कई कारणों से लोक सभा चुनाव में मतदान नहीं किया या विरोध में चले गए या महा विकास अघाड़ी के पक्ष में मतदान करने वाले गैर प्रतिबद्ध मतदाताओं को भी लगा कि हिन्दू, बौद्ध, सिख और जैन के लिए भाजपा और शिवसेना ही है। हरियाणा से यह प्रवृत्ति हमने देखी। योगी आदित्यनाथ का ‘बटेंगे तो कटेंगे’, प्रधानमंत्री का ‘बटेंगे तो विरोधी महफिल सजाएंगे’ और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ नारे स्वाभाविक में लोगों के दिलों तक पहुंचे। जब फडणवीस ने कहा कि हमारे विरु द्ध ‘वोट जिहाद’ है और इसे ‘वोट के धर्मयुद्ध’ से हराएंगे तो भले इसकी आलोचना हुई, लेकिन लोगों के अंतर्तम में यह भाव था।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस,अजीत पवार के विरुद्ध सरकार को लेकर जनता में ऐसा संतोष नहीं था जिसे उभारा जा सके। झारखंड में भाजपा की घुसपैठ, लव जिहाद और जनांकिकी बदलने को मुद्दा इसलिए सफल नहीं हुआ क्योंकि उसने प्रदेश के अनुकूल रणनीति नहीं बनाई। भाजपा की विचारधारा और उनसे जुड़े मुद्दों के अनुरूप उम्मीदवार भी चाहिए था। 25 विधायकों में से तीन का टिकट कटा। लोगों के अंदर घुसपैठ, लव जिहाद मुस्लिम कट्टरवाद के खिलाफ भाव था, लेकिन सोरेन के सामने ऐसा कोई चेहरा नहीं था जिसे देखकर आदिवासी मतदाता भाजपा की ओर आते। भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी को हेमंत ने आदिवासी सम्मान से जोड़ा और उसका भी प्रभाव हुआ। भाजपा में उम्मीदवारों के चयन को लेकर व्यापक असंतोष और विद्रोह था जिनसे ठीक प्रकार से निपटा नहीं जा सका। कई सीटों पर भाजपा नेताओं ने निर्दलीय या विरोधी खेमे का उम्मीदवार बनकर हराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिवराज सिंह चौहान ने कोशिश की लेकिन काफी देर हो चुकी थी।

कुल मिलाकर मतदाताओं ने जनादेश से बता दिया है कि आईएनडीआईए और उनके घटकों की लोक सभा चुनाव में बढ़त अस्थाई थी जो समाप्त हो चुकी है। यह विचारधाराओं की लड़ाई में भाजपा-शिवसेना की विजय का जनादेश है। भाजपा को लेकर उनके समर्थकों या मतदाताओं में स्थानीय स्तरों पर असंतोष या नाराजगी होते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी, उनकी सरकार तथा मुद्दों के प्रति आकषर्ण है। अगर भाजपा उम्मीदवारों के चयन में विचारधारा को प्राथमिकता दे, अपने प्रतिबद्ध लोगों का भी जमीनी स्तर पर ध्यान रखे और गलत लोगों को किसी स्तर पर महत्त्व नहीं दे तो देश में लंबे समय तक अपनी नीतियों के अनुरूप शासन कर बदलाव में ऐतिहासिक भूमिका निभाती रहेगी।
(लेख में विचार निजी हैं)

अवधेश कुमार


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