सहकारी मंच : बढ़ रही भारत की अहमियत

Last Updated 18 Nov 2024 12:48:21 PM IST

गरीब कल्याण और समाज के निचले तबके के लिए समृद्धि का रास्ता खोलने में सहकारिता की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण है। डेयरी, खाद और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में सहकारिता की सफलता के बाद अब बारी अन्य क्षेत्रों की है।


सहकारी मंच : बढ़ रही भारत की अहमियत

सहकारिता के महत्त्व को समझते हुए सरकार ने इसके लिए अलग से मंत्रालय का गठन भी किया है।

बीते तीन वर्ष में सहकारिता क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। संभवत: यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) को वैश्विक सहकारी सम्मेलन कराने के लिए इस वर्ष भारत आना पड़ा। सहकारिता के बढ़ते महत्त्व को संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वीकारा है, और 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है। नई दिल्ली में 25 नवम्बर से होने वाला वैश्विक सहकारी सम्मेलन-2024 दुनिया भर के सहकारिता क्षेत्र में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा। आईसीए की स्थापना (1895) के 130 वर्षो के इतिहास में पहली बार यह आयोजन भारत में होने जा रहा है। भारत आईसीए का संस्थापक सदस्य है। आईसीए सहकारी समितियों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष वैश्विक संस्था है, जिसकी संख्या दुनिया भर में 30 लाख से ज्यादा है। विश्व में 107 देशों के 310 से अधिक संगठन अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन के सदस्य हैं।

इस सम्मेलन की मेजबानी की बागडोर विश्व की अग्रणी सहकारी संस्था इफको समेत देश की 17 प्रमुख सहकारी संस्थाओं के हाथों में है। महत्त्वपूर्ण यह भी है कि यह सम्मेलन सहकार से समृद्धि के भारत के संकल्प को पूरी दुनिया में ले जाएगा। आईसीए ने भी इस सम्मेलन का थीम ‘सहकारिताएं-सबकी समृद्धि का द्वार’ तय किया है। इस सम्मेलन में भारतीय गांवों की थीम पर बने ‘हाट’ में भारतीय सहकारी उत्पादों और सेवाओं का प्रदर्शन किया जा रहा है। बहुत संभव है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस सम्मेलन के दौरान 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाए जाने की औपचारिक घोषणा और इस विषय पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी करें।

मोदी सरकार ने सहकारिता क्षेत्र में पिछले तीन वर्ष में दर्जनों महत्त्वपूर्ण बदलाव कर इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। सहकारी आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए नये मंत्रालय का भी गठन किया गया। सहकारी क्षेत्र के संस्थानों के पुनर्गठन और निष्क्रिय हो चुकीं प्राथमिक सोसाइटियों को पुनर्जीवित किया गया है। मॉडल बायलॉज से प्राथमिक कृषि ऋण सोसाइटी (पैक्स) को ताकत दी गई और उनके कामकाज के दायरे को बढ़ाया गया। सहकारिता पर लागू टैक्स को तर्क संगत बनाया गया।

दुनिया में लगभग 30 लाख सहकारी समितियां हैं, जिनमें से करीब 8 लाख सहकारी समितियां यानी एक चौथाई से अधिक समितियां भारत में हैं। संयुक्त राष्ट्र के लगभग सभी सदस्य देशों के एक अरब से अधिक लोग इन समितियों के सदस्य हैं, जिनमें से 29 करोड़ से ज्यादा सदस्य भारत के हैं। सहकारिता क्षेत्र ने दुनिया भर में 21 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है।
सहकारी समितियों की संख्या और उनके विस्तार की संभावनाओं के मामले में भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है। भारतीय सहकारी प्रणाली में सबसे बड़ा परिवर्तन पैक्स के मॉडल बायलॉज का कार्यान्वयन है। सहकारिता क्षेत्र में तीन नई राष्ट्रीय बहुराज्यीय सहकारी समितियों: राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड (एनसीओएल), राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) और भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (बीबीएसएसएल) के गठन ने भारत को वैश्विक सहकारिता आंदोलन में अग्रणी बना दिया है। इन पहल ने दूसरे देशों का ध्यान खींचा है।

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के दौरान जहां संयुक्त राष्ट्र के निर्धारित लक्ष्य को सहकारिता के माध्यम से पूरा करने की रूपरेखा तैयार की जाएगी, वहीं सहकारिता के वैश्विक सम्मेलन में इन सभी लक्ष्यों पर व्यापक चर्चा भी कराई जाएगी। लोगों के जीवन स्तर में सुधार के साथ ही वैश्विक चिंताओं को दूर करने को लेकर तैयार बिंदुओं पर भी गंभीर विचार-विमर्श किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र ने 17  सतत विकास लक्ष्य चिन्हित किए हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए सहकारी समितियों की सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी। इनमें पारिस्थितिकी संतुलन, स्थिर आजीविका, गरीबी उन्मूलन, सामुदायिक विकास एवं सहयोग, मिट्टी की सेहत एवं जीवन, महिला सशक्तिकरण सहित प्राकृतिक संसाधनों पर सभी का समान अधिकार आदि विषयों को शामिल किया गया है। सहकारिता वर्ष मनाए जाने का प्रमुख उद्देश्य इन्हीं लक्ष्यों को पूरा करना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 2030 तक की समयावधि निर्धारित की गई है। इसमें सहकारी क्षेत्र की भूमिका पहले ही निर्धारित कर दी गई है, जिससे सम्मेलन का महत्त्व और भी बढ़ गया है।

नितिन प्रधान


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