बाल दिवस : नेहरू जैसे ‘चाचा’ आज ज्यादा जरूरी
आज खास दिन ‘बाल दिवस’ है, और चाचा नेहरू से तो ज़माना परिचित ही है, पर लोग नहीं जानते कि नेहरू जी आखिर बच्चों के ‘चाचा’ कैसे कहलाए? अधिकांश लोग इससे अनभिज्ञ हैं।
बाल दिवस : नेहरू जैसे ‘चाचा’ आज ज्यादा जरूरी |
वैसे, ‘बाल दिवस’ आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। उनका जन्म 14 नवम्बर, 1889 को इलाहाबाद में हुआ था जबकि यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा अधिकृत 20 नवम्बर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। लेकिन 1964 में नेहरू जी की मृत्यु के बाद संसद में उनके जन्मदिन को देश में आधिकारिक तौर पर ‘बाल दिवस’ के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव एकमत से पारित किया गया क्योंकि वह बच्चों को नितांत प्रिय थे।
उन्हें ‘चाचा’ क्यों कहा जाने लगा, यह दिलचस्प वाक्या है। पं. नेहरू एक मर्तबा इलाहाबाद में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। मौसम जाड़े का था। सभा में एक बुजुर्ग महिला भी भाषण सुनने दुधमुंह बच्चे के साथ पहुंची थी। जारी भाषण में बच्चा तेजी से रोने लगा। पं. नेहरू की जैसे ही नजर बच्चे के रोने पर पड़ी, तो उन्होंने भाषण रुकवा दिया और तुरंत अपने अंगरक्षक को बच्चा और उसकी मां को मंच पर लाने को कहा। मां अपने बच्चे के साथ जैसे ही मंच पर चढ़ी, नेहरू ने आगे बढ़कर बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। बच्चा पंड़ित जी की गोद में जाते ही चुप हो गया और उनकी जेब में लगे पेन से खेलने लगा।
बच्चे के प्रति नेहरू के प्यार-स्नेह को देख कर सभा में उपस्थित लोग अचंभित हो गए और उसी समय से लोगों ने उन्हें ‘चाचा’ कहना शुरू कर दिया। हालांकि बच्चे से प्यार तो हर कोई करता है लेकिन नेहरू का प्यार बेशकीमती, अद्भुत, चमत्कारी होता था। रोते हुए बच्चे भी उनके सन्मुख जाकर एकाएक चुप हो जाते थे। बच्चों को चुप कराने की उनके पास पता नहीं कौन सी अद्भुत कला थी, जो सभी को आश्चर्यचकित करती थी। नेहरू बच्चों के अधिकारों और एक शिक्षा प्रणाली के पक्षधर और समर्थक थे। प्रत्येक बच्चे को देश का भविष्य कहते थे। फूलपुर की चुनावी सभा में नेहरू ने एक बार कहा था कि बच्चे बगीचे में कलियों की तरह होते हैं। उनका प्यार से पालन-पोषण करना चाहिए क्योंकि वे देश का भविष्य और कल के नागरिक हैं।
मौजूदा वक्त में जिस बेहिसाब से समूचे देश के नौनिहालों के प्रति अत्याचार, विभिन्न किस्म की समस्याएं और अपराध बढ़े हैं, वो अगर जिंदा होते तो बहुत दुखी होते। एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट बच्चों के गायब होने के जो आंकड़े प्रस्तुत करती है, वो निश्चित ही डरावने हैं। तमाम हुकूमती कोशिशों के बावजूद बाल समस्याएं रुकने का नाम नहीं लेती। बाल दिवस के मौके पर आज देश भर के स्कूलों में गायन, निबंध, वाद-विवाद, खेलकूद जैसी तमाम प्रतियोगिताएं होंगी।
अधिकांश जगहों पर नेहरू की जीवनी पर लेख-लेखन कंपटीशन आयोजित होंगे। नेहरू बच्चों को राष्ट्र की संपत्ति मानते थे। अक्सर नौनिहालों को मुल्क के सबसे कीमती संसाधन के रूप में संदíभत करते थे। इसलिए अपने युवा नागरिकों के जीवन की बेहतरी के प्रति राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के जरिए बच्चों में खुशियां, उनके अधिकारों और उनके उज्ज्वल भविष्य को संवारने के लिए जागरूकता भी फैलाई जाती है। बच्चों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उन्हें सुरक्षित, खुशहाल और शिक्षा से भरपूर जीवन देने के लिए सभी को संकल्पित होना चाहिए। 1954 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से 20 नवम्बर को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस घोषित किया गया था।
पर भारत ने इस दिवस को 14 नवम्बर यानी पं. नेहरू के जन्मदिन पर मनाने का निर्णय लिया। यह दिन बाल अधिकारों की रक्षा करने, सुरक्षित वातावरण देने और उनकी शिक्षा-स्वास्थ्य पर ध्यान देने पर केंद्रित होता है। बच्चों के प्रति बढ़ते अत्याचार, बाल श्रम और शिक्षा की कमी जैसी समस्याओं पर जागरूकता निरंतर फैलती रहनी चाहिए। बच्चों को बचपन में सही मार्गदर्शन और प्यार मिलना चाहिए। सभी बच्चे बिना भेदभाव स्वतंत्र रूप से सीखने और बढ़ने का अधिकार रखते हैं।
पं. नेहरू हमेशा बच्चों के बीच जाकर उनके साथ समय बिताना पसंद करते थे। उनका मानना था कि बच्चों में मासूमियत, सच्चाई, और निष्ठा होती है, जो बड़ों को भी प्रेरणा देती हैं। शिक्षा का अधिकार, बाल श्रम से सुरक्षा और सुरक्षित व प्यार भरे वातावरण में बढ़ने का अधिकार हम सभी को मिल कर दिलवाना चाहिए। हालांकि, भारत में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए बाल संरक्षण कानून और विभिन्न संस्थाएं कार्यरत हैं, जिनका उद्देश्य बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाना है। इनका आम जन को भी मिल कर सहयोग करना चाहिए।
(लेखक बाल संरक्षण कार्यकर्ता और केंद्र की बाल कल्याण समिति निपसिड के सदस्य हैं)
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