तकनीक और आधुनिकता : मकड़जाल में फंसते बच्चे
वर्तमान युग में भारतीय समाज त्वरित गति से तकनीकी और सामाजिक बदलावों का सामना कर रहा है। तकनीकी विकास ने हमारे बच्चों के जीवन को जहां नये अवसर दिए हैं, वहीं कई संकटों को भी जन्म दिया है।
तकनीक और आधुनिकता : मकड़जाल में फंसते बच्चे |
आज के बच्चे, जो हर रोज स्मार्टफोन, इंटरनेट और अन्य डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते हैं, अपनी मानसिकता, आदतों और जीवनशैली में तेजी से बदलाव महसूस कर रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में भारत में इंटरनेट, स्मार्टफोन, कंप्यूटर और अन्य डिजिटल उपकरणों का उपयोग तेजी से बढ़ा है। शिक्षा से लेकर मनोरंजन तक, सब कुछ डिजिटल हो गया है। ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल गेमिंग, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और वीडियोग्राफी जैसे अत्याधुनिक साधन बच्चों की सोच, आदतें और जीवनशैली को आकार दे रहे हैं। बच्चों का अधिकांश समय स्मार्टफोन, टैबलेट, और कंप्यूटर पर बीतता है।
परिणामस्वरूप बच्चों में शारीरिक गतिविधियों की कमी हो रही है। शारीरिक निष्क्रियता से मोटापा, हड्डियों की कमजोरी और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं बढ़ रही हैं। लंबे समय तक स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से उनकी आंखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और आंखों की रोशनी में भी गिरावट आ रही है। मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। बच्चों को साइबरबुलिंग, पोर्नोग्राफी, और असामाजिक सामग्री का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके मानसिक विकास को नुकसान पहुंचाता है। सोशल मीडिया पर खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने का दबाव भी बच्चों को तनाव और अवसाद की ओर धकेल रहा है।
तकनीकी विकास ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह बदल दिया है। ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल उपकरणों का बढ़ता उपयोग बच्चों को नई पद्धतियों से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दे रहा है। इंटरनेट ने जहां बच्चों को दुनिया भर की जानकारी से परिचित कराया है, वहीं यह पारंपरिक शिक्षा की आदतों और मूल्यों से भी उन्हें दूर कर रहा है। बच्चों को खुद से पढ़ाई करने और स्वाध्याय की आदत डालने की बजाय वे अब इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों पर निर्भर हो गए हैं। साथ ही, शिक्षा में नैतिक और सामाजिक शिक्षा की कमी भी महसूस हो रही है। आजकल के बच्चे भले ही तकनीकी दृष्टि से बेहद प्रगति कर गए हैं, लेकिन उनके भीतर मानवीय मूल्यों, नैतिक शिक्षा और पारिवारिक संबंधों की अहमियत धीरे-धीरे कम हो रही है। यह स्थिति बच्चों को मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण से कमजोर बना रही है।
भारत में पारंपरिक रूप से बच्चों से उच्च शिक्षा की उम्मीदें बहुत अधिक होती हैं। माता-पिता और समाज बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वे हमेशा सर्वोत्तम परिणाम देंगे, जो मानसिक दबाव का कारण बन सकता है। बच्चों को अपनी पहचान बनाने में भी कठिनाई हो रही है, क्योंकि वे समाज के मानकों में बंध कर जीने की कोशिश करते हैं। यह दबाव न उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी डगमगा सकता है।
इसके अलावा, आजकल परिवारों में माता-पिता की व्यस्त जीवनशैली के कारण बच्चों को पर्याप्त समय और ध्यान नहीं मिल पाता। परिणाम यह होता है कि बच्चे अपने माता-पिता से मानसिक और भावनात्मक सहायता प्राप्त नहीं कर पाते और इस स्थिति में उनका मानसिक विकास बाधित हो सकता है।
इस संकट से उबरने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे-संतुलित जीवनशैली: बच्चों को तकनीकी उपकरणों का उपयोग सीमित करना चाहिए। शारीरिक गतिविधियों, खेलकूद और परिवार के साथ समय बिताने का अवसर मिलना चाहिए। संतुलित जीवनशैली बच्चों को मानसिक-शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है। आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा: बच्चों को तकनीकी ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा और मानवता के मूल्यों की भी शिक्षा दी जानी चाहिए। इससे बच्चों का मानसिक-सामाजिक विकास संतुलित रूप से हो सकता है। पारिवारिक समर्थन: बच्चों को अपने परिवार से मानिसक-भावनात्मक समर्थन की आवश्यकता होती है।
माता-पिता को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए, उन्हें समझने और उनकी समस्याओं का हल निकालने में मदद करनी चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल: बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। बच्चे किसी प्रकार के मानसिक तनाव या अवसाद से जूझ रहे हैं, तो उन्हें काउंसलिंग और उचित मानिसक उपचार की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए। शिक्षा में सुधार: पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। बच्चों को आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों की भी शिक्षा दी जानी चाहिए।
सरकार भी अपने तरीकों से हस्तक्षेप करने का प्रयास किया है भारत सरकार, प्रदेश सरकारें समय- समय पर जागरूकता अभियान और दिशा-निर्देश जारी कर रहे हैं। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने साइबर सुरक्षा पर किशोरों/छात्रों के लिए पुस्तिका भी बनाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल में चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि चाइल्ड पोर्न देखना या उसे स्टोर करके रखना भी पास्को और आईटी कानून के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पास्को एक्ट की धारा 15 के अनुसार चाइल्ड पोर्न देखना, रखना, प्रकाशित करना या उसे प्रसारित करना अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सुझाव भी दिया। कहा कि अदालतों को अपने फैसले में चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लाटेटिव मैटेरिअल का इस्तेमाल करना चाहिए।
सही मायने में ‘बाल दिवस’ का स्वरूप तब दिखेगा जब हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपने जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलें। बच्चों के प्रति कोई हिंसा न हो। बाल श्रम, बाल तस्करी, बाल यौन शोषण, बाल विवाह इस सभी चीजों से आजादी हो। भारत में आज के बच्चे तकनीकी विकास और आधुनिकता के प्रभाव से जूझ रहे हैं। यह तकनीकी युग उनके लिए कई नये अवसर उत्पन्न करता है, लेकिन इसके साथ ही यह उनके मानिसक, शारीरिक और सामाजिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल रहा है। इस संकट से उबरने के लिए हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें बच्चों का संतुलित विकास सुनिश्चित किया जा सके।
(लेखक मानव सेवा संस्थान ‘सेवा’ में निदेशक हैं, व्यक्त विचार निजी हैं)
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