सामयिक : हाथी हमारा अब नहीं साथी
दीपावाली के ठीक एक दिन पहले मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में एक साथ दस हाथियों के मारे जाने से दुनिया सन्न है। इनमें नौ मादा थीं और दो गर्भवती। और इस तरह दो हाथियों की मौत भ्रूण में भी हो गई।
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इसके ठीक तीन दिन पहले पास के छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिले में तीन हाथी मारे गए तो कहा गया कि उन पर 11 केवीए की बिजली का तार गिर गया था। रविवार रात छत्तीसगढ़ में हाथियों के दल से 1 हाथी के बिछड़ने की जानकारी मिली और सोमवार सुबह जंगल के किनारे स्थित धान के खेत में हाथी का शव मिला। हाथी का शव मिलने के बाद वन विभाग ने जांच शुरू की तो खुलासा हुआ कि खेत के चारों तरफ बिजली का तार लगाया गया था।
खेत मालिक ने हाथी को मारने के लिए हाईवोल्टेज बिजली तार में क्लच वायर से जोड़ कर करंट लगाया था जिसकी चपेट में आने से नर हाथी की मौत हो गई। इस खुलासे के बाद वन विभाग ने आरोपी मुरका निवासी रामबक्स को गिरफ्तार कर लिया। इसी राज्य में 12 नवम्बर को बेहद मार्मिंक घटना सामने आई जब रायपुर में सीतानदी-उदंती टाइगर रिजर्व में हाथी का एक बच्चा पोटाश बम से घायल हो गया। उसके मुंह और पैर से खून बह रहा था और वह जलन से बचने को इधर-उधर पानी में शरीर डाल रहा था। यह बम जंगली सूअरों के शिकार के लिए उपयोग किया जाता है।
दुर्भाग्य है कि बांधवगढ़ में इतनी बड़ी संख्या में हाथी की मौत के बाद भी प्रशासन सतर्क नहीं हुआ और गुस्साए हाथियों ने वहीं गांव के तीन लोग कुचल कर मार डाले। बीते कुछ सालों में हाथी के पैरों तले कुचल कर मरने वालों की संख्या बढ़ी है। ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम , केरल, कर्नाटक सहित 16 राज्यों में बिगडैल हाथियों के कारण इंसान से टकराव बढ़ रहा है। इस झगड़े में हाथी भी मारे जाते हैं। यह बात तो स्पष्ट हो गई है कि बांधवगढ़ में बड़ी संख्या में हाथियों की मौत कुछ विषाक्त खाने से हुई है। शक इस बात से खड़ा होता है कि राज्य सरकार के कुछ अफसर इसे तुरत-फुरत जहरीली कुटकी खाने से मौत निरूपित कर रहे थे लेकिन जब मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस बात से असहमति जताई कि जंगल का जानवर क्या किसी वन-उत्पाद खाने से मरेगा तो हड़बड़ाहट हुई। वन महकमे के अफसर सस्पेंड हुए।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली की ओर से मप्र वन विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट में हाथियों के विसरा में माइक्रो टॉक्सिन साइक्लोपियाजोनिक एसिड मिलने की पुष्टि हुई है। एपीसीसीएफ और मप्र वन विभाग की ओर से गठित एसआईटी के प्रमुख एल कृष्णमूर्ति के मुताबिक, आईवीआरआई ने विसरा सैंपल की विषाक्तता रिपोर्ट से पता चलता है कि हाथियों ने बड़ी मात्रा में खराब कोदो पौधे/अनाज खाए थे। हालांकि, विसरा सैंपल में मिला साइक्लोपियाजोनिक एसिड कितना जहरीला था और कितनी मात्रा में था, क्या यही मौत का कारण हो सकता है-इसकी आगे जांच अभी जारी है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि मध्य प्रदेश में जंगल और वनोपज आय के बड़े माध्यम हैं, लेकिन बाघ के लिए जम कर खर्च करने वाली सरकार हाथी के लिए लापरवाह रही है। प्रदेश में हाथियों के प्रबंधन के लिए सिर्फ एक करोड़ सालाना का बजट वन विभाग के पास है। प्रोजेक्ट टाइगर पर प्रदेश का बजट 200 से 300 करोड़ के बीच रहता है, लेकिन हाथियों के प्रबंधन पर प्रोजेक्ट एलिफेंट के लिए वन विभाग ने इस साल 66 लाख रुपये रखे। प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरु आत 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी जो अभी देश के 16 राज्यों में चल रहा है। हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी और इनके शिकार को रोकने के लिए शुरू की गई योजना में प्राकृतिक आवासों को सुधारना, हाथी-मानव संघर्ष को नियंत्रित करना सहित कई काम किए जाते हैं लेकिन वन विभाग के पास बजट होता नहीं है।
वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को सहेज कर रखने में गजराज की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पर्यावरण-मित्र पर्यटन और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान में भी हाथी बेजोड़ हैं। जंगली हाथियों के बस्तियों में घुसने को किसी राज्य की सीमा से बांधा जा नहीं सकता। आंकड़ों पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि करीबी राज्य ओडिशा के हालात हाथियों को लेकर इतने खराब हैं कि दंतैल और गुस्सैल हो गए जंगली हाथी छत्तीसगढ़ और झारखंड में अपनी खीज मिटा रहे हैं।
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलुरु के एक अध्ययन में बताया गया था कि ओडिशा में उपलब्ध जंगल और संसाधन में अधिकतम 1700 हाथी भली प्रकार जी सकते हैं, जबकि आज यहां गजराज की संख्या 2100 से अधिक है। इस तरह 400 से अधिक हाथियों के लिए भोजन, पानी और आने पर्यावासीय संकट सामने दिख रहा है। सरकारी रिकार्ड में है कि 2017-18 और 4 नवम्बर, 2024-25, ओडिशा में 634 मारे गए, जिनमें 22 का शिकार हुआ, एक को जहर दिया गया 91 जानबूझकर बिजली के झटके से, 32 आकस्मिक बिजली करंट से मारे गए, जबकि 28 हाथी रेल से टकरा कर काल के गाल में गए। इसी साल 58 हाथियों की संदिग्ध मौत हुई, जिसकी जांच के लिए सरकार ने आदेश दिए हैं।
जानना जरूरी है कि हाथियों को 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते, पेड़ की छाल आदि की खुराक जुटाने के लिए हर रोज 18 घंटों तक भटकना पड़ता है। हाथी दिखने में भले ही भारी-भरकम हैं, लेकिन उनका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है। थोड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है। ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानी जंगल को जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिड़ंत होती है।
2018 में पेरियार टाइगर कन्जर्वेशन फाउंडेशन ने केरल में हाथियों के हिंसक होने पर एक अध्ययन किया था। अध्ययन रिपोर्ट में पता चला कि जंगल में पारंपरिक पेड़ों को काट कर उनकी जगह नीलगिरी और बबूल बोने से हाथियों का भोजन समाप्त हुआ और यही उनके गुस्से का कारण बना। पेड़ों की ये किस्म जमीन का पानी भी सोखती हैं, सो हाथी के लिए पानी की कमी भी हुई। पयार्वरण-मित्र पर्यटन और और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान में भी हाथी बेजोड़ हैं। हाथी की उपस्थति स्वस्थ जंगल की निशानी है, अच्छा जंगल धरती पर इंसान के लिए अनिवार्य है। अब सरकार और समाज, दोनों को हाथी की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनना होगा।
(लेख में विचार निजी हैं)
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