मुद्दा : मुसलमानों में जाति की बात

Last Updated 13 Oct 2024 12:45:36 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि मुसलमानों में जाति की बात आने पर कांग्रेस के मुंह पर ताला पड़ जाता है, लेकिन हिन्दू समाज की बात आते ही वह चर्चा जाति से शुरू करती है क्योंकि जानती है कि जितना हिन्दू समाज बंटेगा, उतना ही उसे राजनीतिक लाभ होगा।


मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस किसी भी तरीके से हिन्दू समाज में आग लगाए रखना चाहती है। इसी फार्मूले पर चल रही है।

प्रधानमंत्री ने यह बात महाराष्ट्र में 76 हजार करोड़ रु पये की विकास परियोजनाओं की आभासी माध्यम से आधारशिला रखते हुए दिल्ली से कही। वाकई कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल अपनी जीत के लिए  इसी प्रकार के जातीय विभाजन और गठजोड़ के बेमेल समीकरण बिठाते रहे हैं। मायावती, लालू, मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार ने यही किया। अब कांग्रेस भी अपनी जीत का आधार इसी फार्मूले को बना रही है।

मुस्लिम धर्म के पैरोकार दुहाई देते हैं कि इस्लाम में जाति प्रथा की कोई गुंजाइश नहीं है जबकि एम एजाज अली के मुताबिक, मुसलमान भी चार श्रेणियों में विभाजित हैं। उच्च वर्ग में सैयद, शेख, पठान, अब्दुल्ला, मिर्जा, मुगल, अशरफ जातियां शुमार हैं। पिछड़े वर्ग में कुंजड़ा, जुलाहा, धुनिया, दर्जी, रंगरेज, डफाली, नाई, पमारिया आदि शामिल हैं। पठारी क्षेत्रों में रहने वाले मुस्लिम आदिवासी जनजातियों की श्रेणी में आते हैं। अनुसूचित जातियों के समतुल्य धोबी, नट, बंजारा, बक्खो, हलालखोर, कलंदर, मदारी, डोम, मेहतर, मोची, पासी, खटीक, जोगी, फकीर आदि हैं। मुस्लिमों में ये ऐसी प्रमुख जातियां हैं, जो पूरे देश में लगभग इन्हीं नामों से जानी जाती हैं। इसके अलावा, कई राज्यों में ऐसी कई जातियां भी हैं, जो क्षेत्रीयता के दायरे में हैं। जैसे बंगाल में मंडल, विश्वास, चौधरी, राईन, हलदर, सिकदर आदि। यही जातियां बंगाल में मुस्लिमों में बहुसंख्यक हैं।

इसी तरह दक्षिण भारत में मरक्का, राऊथर, लब्बई, मालाबारी, पुस्लर, बोरेवाल, गारदीय, बहना, छप्परबंद आदि। उत्तर-पूर्वी भारत के असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर आदि में विभिन्न उपजातियों के क्षेत्रीय मुसलमान हैं। राजस्थान में सरहदी, फीलबान, बक्सेवाले आदि हैं। गुजरात में संगतराश, छीपा जैसी अनेक नामों से जानी जाने वाली बिरादरियां हैं। जम्मू-कश्मीर में ढोलकवाल, गुडवाल, गोरखन, वेदा (मून) मरासी, डुबडुबा, हैंगी आदि जातियां हैं। इसी प्रकार पंजाब में राइनों और खटीकों की भरमार है।

इतनी प्रत्यक्ष जातियां होने के बावजूद मुसलमानों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि ये जातीय दुष्चक्र की गुंजलक में नहीं जकड़े हैं। दरअसल जाति-विच्छेद पर आवरण कुलीन मुस्लिमों की कुटिल चालाकी है। इनका मकसद विभिन्न मुस्लिम जातियों को एक सूत्र में बांधना कतई नहीं है। दरअसल, मुसलमानों में जातियां तो हैं, लेकिन दस्तावेज में उनके लिखने का प्रचलन नहीं है। मुसलमानों में यह उदारता कुटिल चतुराई का पर्याय है। यह जांच नौकरियों में आरक्षण का लाभ लेने के सिलसिले में की जाएगी। अदालत का कहना है कि जब सरकारी रिकॉर्ड में जाति के आधार पर प्रमाणीकरण ही न किया गया हो तो फिर आरक्षण का लाभ कैसे मिल रहा है। जब कोई व्यक्ति सरकारी दस्तावेज में जाति या उपजाति का उल्लेख ही नहीं कर रहा है, तो उसे पिछड़ा वर्ग या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के कोटे में आरक्षण का लाभ कैसे मिल सकता है?

आरक्षण की व्यवस्था में वही व्यक्ति आरक्षण का लाभ उठाने का पात्र है, जिसे निर्धारित व्यवस्था के तहत आरक्षण पाने के लिए सक्षम अधिकारी द्वारा जाति प्रमाणपत्र जारी किया गया हो। नौकरी या शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण प्राप्त करने के लिए आवेदक द्वारा जाति प्रमाणपत्र लगाना अनिवार्य है। बावजूद इसके कई बार संबंधित विभाग या राज्य सरकारों की ‘जाति जांच समिति’ परीक्षण करके जांच करती है कि वास्तव में आवेदक आरक्षित वर्ग या जाति से है या नहीं?  जातिगत आरक्षण के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 16 की जरूरतों को पूरा करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।

अतएव आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पीछे रह गई जातियों को आरक्षण का लाभ इसलिए दिया जाता है कि संविधान के समानता के सिद्धांत का लाभ उठाकर अन्य जातियों के बराबर आ जाएं। बावजूद आरक्षण किसी भी जाति के समग्र उत्थान का मूल कभी नहीं बन सका क्योंकि आरक्षण के सामाजिक सरोकार केवल संसाधनों के बंटवारे और उपलब्ध अवसरों में भागीदारी से जुड़े हैं। आरक्षण की मांग शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार और ग्रामीण अकुशल बेरोजगारों के लिए सरकारी योजनाओं में हिस्सेदारी से जुड़ गई है, परंतु जब तक सरकार समावेशी आर्थिक नीतियों को अमल में लाकर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों तक नहीं पहुंचती तब तक पिछड़ी या निम्न जाति या मुसलमान अथवा आय के स्तर पर पिछले छोर पर बैठे व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार नहीं आ सकता। 

प्रमोद भार्गव


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