विजयदशमी : आओ, फिर से रावण मारो राम

Last Updated 12 Oct 2024 01:45:38 PM IST

भारतीय स्वभाव से ही विनम्र और वीरता के आराधक होते हैं। बिना बात रक्तपात की प्रवृत्ति हमारे खून में नहीं है, परंतु अगर कोई हमें सताता है तो हम चुप भी नहीं रहते।


ऐसा आज से नहीं, प्राचीन काल से से होता रहा है। हम अच्छाई के प्रतीक राम को भगवान मान कर पूजते हैं तो बुराई के प्रतीक रावण का पुतला उसकी मृत्यु के हजारों साल बाद भी बुराई के प्रतीक के रूप में जलाते हैं। पाप के नाश को किए गए पराक्रम और बुराई के नाश हेतु उठाए गए हर कदम को समर्थन देने के पर्व का नाम है दशहरा।

ज्योतिर्निबंध ग्रंथ के अनुसार अिन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को ‘विजय’ नक्षत्र के उदय के दिन हर साल अिन शुक्ल दशमी को आसुरी ताकतों पर देवत्व की विजय दशहरे के रूप में याद की जाती है। सत्य के लिए लड़ने की प्रेरणा देने वाला यह पर्व राम नहीं वरन रामत्व की विजय का उद्घोष है। दशरथपुत्र राम यहां सत्य, न्याय, करुणा, नम्रता और देवत्व के प्रतीक हैं वहीं रावण असत्य, अन्याय, अहंकार और आसुरी आतंकी ताकतों का प्रतीक  है । भले ही आज हमने प्रगति के नये क्षितिज छू लिए हैं, और भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था और उभरतीविश्व शक्ति के रूप में हो रही है, यहां राम की जरूरत आज भी है। राम में पराक्रम भी था और आत्म सम्मान की लड़ाई के लिए पूरी ताकत झोंक देने का माद्दा भी था। चाहे कुछ भी हो जाए, जान जाए या रहे, भाई बचे या नहीं, पर जिस पत्नी का हाथ समाज के सामने थामा है, उसके सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने का संदेश देता है राम के रावण से युद्ध के बहाने दशहरा। दूसरी तरफ, रावण है जिसे अपने संसाधनों, ताकत, सत्ता, बली भाइयों और महाबलि पुत्रों का जबर्दस्त अहंकार है।

जिसे अकूत संपत्ति और अजेय दुर्ग सोने की लंका में रह कर कुछ भी कर लेने और किसी को भी अपमानित, लांछित करने, लात मार कर भगा देने का घमंड विनाश के कगार पर ले जाता है, सही सलाह देने वाले भाई से अलग कर देता है  तो अपराध में साथ देने वले कुंभकर्ण जैसे भाई और देवों तक को हरा देने वाले मेघनाद जैसे बेटों के भी अंत का कारण वह स्वयं बनता है। उसके काम न मायावी बेटे अहिरावण की माया और षड्यंत्र आते हैं न ही सुरसा या कालनेमि जैसे धुरंधर और मायावी उसे बचा पाते हैं। यहां भी दशहरा संदेश देता है कि पाप की सत्ता और संसाधन अंतत: बुरे अंत के कारण बनते हैं, जबकि श्रीराम बंदर-भालुओं को एकत्र कर उसे न केवल परास्त कर देते हैं अपितु उस समुद्र पर भी पुल बांध देते हैं जिसे कभी कोई पार ही नहीं कर पाया था।

जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? उस सारे पराक्रम और पतन के पीछे है नीयत का खेल। प्रवृत्ति और चिंतन का फर्क, अच्छे-बुरे के भेद का ज्ञान, अहंकार और चुनौती का सामना करने का जज्बा, सत् और तम् का फर्क। इन्हीं सब अंतरों को रेखांकित करता है दशहरे का महाउत्सव। एक कुत्सित प्रवृत्ति के रूप में रावण को मारने और भोलेपन और सद्प्रवृत्ति की प्रतीक सीता की रक्षा के लिए किसी भी तरह से भी संसाधन जुटाने और व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता का संचार करने का दूसरा नाम है दशहरा।

यह पर्व दशहरा भी है दंशहरा भी है और दशहारा भी।  दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। किसी भी युग में और किसी भी रूप में जन्मे और बढ़ रहे ‘रावणों’ के वध के उद्घोष का दूसरा नाम है दशहरा। जो रावण के दस शीषों के प्रतीक दसों दिशाओं में फैले उसके अहंकार और मायाजाल को भेदने का सीधा संदेश लेकर आता है हर साल अिन माह की दशमी को विजयदशमी का त्योहार। इस पर्व का संबंध देव-दानवों के युद्ध से रहा है पर बाद में यह राम की रावण पर विजय से जुड़ गया। विजयदशमी को ही इंद्र ने वृत्तासुर को मारा था। महाभारत में भी पांडवों ने अज्ञातवास पूर्ण कर द्रौपदी का विजयदशमी के दिन ही वरण किया था और महाभारत युद्ध भी विजयदशमी के दिन ही आरंभ हुआ। इस पर्व को मां भगवती के ‘विजया’ नाम पर भी ‘विजयादशमी’ कहते हैं।  

तो जान लीजिए कि दशहरा केवल राम की विजय मात्र का पर्व ही नहीं है। दशहरा के पीछे भाव है सद्प्रवृत्तियों की विजय की कामना और कुत्सित भावों का नाश। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ‘राम’ भले ही कम हों पर नाना रूप धरे ‘रावण’ असंख्य घूम रहे हैं। आतंकवाद अपने आप में एक रावणीय प्रवृत्ति है तो उसे पालते-पोसते आतंकी संगठन रावण के कलिकाल के रूप  कहे जा सकते हैं। हमें ‘रावण’ तो मारने ही हैं, संस्कारवान ‘राम’ भी गढ़ने होंगे क्योंकि जब तक ‘राम’ नहीं होंगे तब तक ‘रावण’ का मनोबल और अस्तित्व खत्म होने वाला नहीं है। आज ऐसे राम चाहिए जो देश में संपन्नता और समृद्धि लाएं। न्याय की यश पताका फहराएं। प्रतीक रूप में यही है राम राज्य की अवधारणा। अब देखें यह दशहरा भी यूं ही पुतले फूंक कर चला जाता है, या सच में परिवर्तन आता है।

डॉ. घनश्याम बादल


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