मुलायम सिंह यादव : सामाजिक न्याय के योद्धा

Last Updated 10 Oct 2024 11:24:59 AM IST

भारतीय राजनीति विशेषकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव का नाम अपने आप में विशिष्ट और अनन्य है।


मुलायम सिंह यादव : सामाजिक न्याय के योद्धा

 ‘नेताजी’ व ‘धरतीपुत्र’ ‘गरीबों की आवाज’, ‘किसानों का मसीहा’, ‘लोहिया के लेनिन’ जैसे खिताबों से जनता द्वारा नवाजे गए पद्मविभूषण मुलायम सिंह भले ही सशरीर हमारे मध्य न हों लेकिन उनके विचार, उनका गरीबनवाज राजनीतिक जीवन-दर्शन एवं उनकी स्मृतियां सदैव हमारा और भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेंगी। उनका जन्म 22 नवम्बर, 1939 को सैफई में हुआ था और महाप्रयाण (10 अक्टूबर, 2022) के दिन जब वे बयासी वर्ष के थे। मुझे उनके साथ लंबा कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त है, वे मेरे गुरु, नेता और अभिभावक, तीनों थे। उनके बारे में कुछ लिखना या बोलना कठिन है, क्योंकि मेरे और मेरे जैसे लाखों-करोड़ों समाजवादियों के लिए नेता जी वहां हैं जहां शब्द नहीं पहुंच सकते। वे महान समाजवादी चिंतक  राममनोहर लोहिया के शिष्य और किसान नेता चौ. चरण सिंह के सहयोगी थे। यदि कहूं कि आचार्य नरेन्द्रदेव, लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सदृश मनीषियों के पश्चात नेताजी सबसे बड़े समाजवादी नेता और सामाजिक न्याय के योद्धा एवं सरदार पटेल व चौ. चरण सिंह के बाद के बाद सबसे बड़े किसान नेता थे, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

नेताजी ने लोकजीवन की शुरुआत मात्र 15 वर्ष की अवस्था में लोहिया के आह्वान पर सिविल नाफरमानी (सत्याग्रह) करते हुए गिरफ्तारी से की थी ताकि किसानों पर बढ़ाया गया सिंचाई-कर वापस हो। उनमें रचना और संघर्ष तथा क्रोध और करुणा का अद्भुत समावेश था। शोषक के विरुद्ध क्रोध और शोषित के प्रति करुणा। लोहिया जी ने एक बार इटावा में कहा था, ‘आज देश को मुलायम जैसे जुझारू, संकल्प के धनी, गांव-गरीबों का प्रतिनिधित्व करने वाले कर्मठ नेताओं की आवश्यकता है।’ नेताजी ने अपने कर्म और कर्मो द्वारा विकसित किरदार से अपने आदर्श राममनोहर लोहिया के कथन को कालांतर में सही सिद्ध किया। उनकी जनसेवा और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता से ही प्रभावित होकर चौ. चरण सिंह ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बस्ती की जनसभा (1986) में घोषित किया था। बड़े समाजवादी नेता और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे बी. सत्यनारायन रेड्डी ने 9 अप्रैल, 1991 को कहा था कि डॉ. लोहिया की विचारधारा और चरण सिंह की दृढ़ता का अद्भुत समन्वय श्री मुलायम में देखने को मिलता है।

संदर्भवश जननायक कपरूरी ठाकुर के इस बयान का उल्लेख करना भी समीचीन होगा  ‘मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में कभी समाजवादी की आंच और अलख को धीमा पड़ने नहीं दिया, वे संघर्ष के बल पर नेता बने हैं, उनके महत्त्व को हम लोग समझते हैं।’ हरिकिशन सिंह सुरजीत उन्हें सांप्रदायिकता से लड़ने वाला और अल्पसंख्यकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का रक्षक मानते थे। नेताजी, लोहिया की भांति लोकतंत्र में लोकभाषा, लोकलाज व लोकभूषा के प्रबल पैरोकार थे। जब मुख्यमंत्री बने तो अंग्रेजी की प्रशासनिक सेवा परीक्षा में अनिवार्यता को समाप्त किया जिससे गांव और गरीब परिवार से जुड़ी प्रतिभाओं को प्रशासनिक सेवाओं में सहभागिता का पट खुला। भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम ने एक भाषण में कहा कि उन्हें हिन्दी सीखने की प्रेरणा मुलायम सिंह ने दी थी। नेताजी छोटे किसानों व व्यापारियों के दंश व दर्द को समझते थे।

सरकार बनाने के बाद उन्होंने ऐसे निर्णय लिए जिनसे किसानों व लघु व्यवसायियों को अन्यायी चुंगी प्रणाली, इंस्पेक्टर-राज आदि से मुक्ति मिली। नेताजी व उनकी समाजवादी पार्टी सरकार में होती थी तो  जनता को लगता था कि उनकी अपनी सरकार है। बतौर रक्षा मंत्री नेताजी चीन के सामने कभी झुके नहीं। एक प्रश्न के प्रत्युत्तर में उन्होंने घोषणा कि अब अगर युद्ध हुआ तो दुश्मन देश की धरती पर होगा। उनके रक्षा मंत्री बनने से पहले जवानों की टोपी व बैल्ट ही शहीदों के घर आती थी। नेताजी ने प्रावधान किया कि शहीदों का शव उनके परिवार वालों को सौंपा जाएगा ताकि अंतिम संस्कार आदि धार्मिक कार्य हो सकें। नेताजी की भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों में अथाह व असीम आस्था थी। वे हनुमानजी के परम भक्त थे, किंतु धर्म के पवित्र प्रतीकों का राजनीतिक लाभ उठाने वाली सांप्रदायिक सोच के सदैव खिलाफ रहे।

वे अक्सर कहा करते थे, ‘मैं वहां रोशनी पहुंचाना चाहता हूं जहां सदियों से अंधेरा है।’ एक बार नेताजी हिन्दी का प्रचार करने तमिलनाडु गए तो हंसी-मजाक में करुणानिधि जी ने कहा कि तमिलनाडु हम पर हिन्दी थोपने आए हैं तो नेताजी ने बड़े आत्मीय भाव से जवाब दिया कि नहीं, हम आप पर तमिल थोपने आए हैं और चाहते हैं कि आप हम पर हिन्दी थोपने आएं। वे सभी भारतीय भाषाओं को  सहोदरी मानते थे और भाषाजनित शोषण समाप्त करना चाहते थे। नेताजी अंग्रेजी के खिलाफ नहीं थे, पर अंग्रेजी को माध्यम बना कर किए जा रहे शोषण के खिलाफ थे। उनकी एक सीख हम सभी को कभी नहीं भूलना चाहिए कि जनहित के लिए सब कुछ सहने की आदत डालनी चाहिए।

यह नेताजी की ही देन है कि लोहिया और जयप्रकाश नारायण के जाने के बाद भारतीय लोकमानस से समाजवाद का महान स्वप्न ओझल नहीं हुआ। उन्होंने अपने कुशल प्रशासनिक कार्यों से उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भारत की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में एक बना दिया। जब नेताजी के मार्गदर्शन व श्री अखिलेश की अगुवाई वाली सरकार थी तब उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था, देश में महाराष्ट्र व तमिलनाडु के बाद तीसरे स्थान पर थी। तमिलनाडु से हमारी अर्थव्यवस्था मात्र 0.2 लाख करोड़ रुपये कम थी। नेताजी भले ही कई बार मुख्यमंत्री, केंद्रीय, सबसे बड़े सूबे के नेता प्रतिपक्ष जैसे बड़े पदों पर रहे हों, पर कभी भी पद को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। अपने पद को अपने सहयोगियों व कार्यकर्ताओं के बीच दीवार बनने नहीं दिया। उनका कद हमेशा पदों से ऊपर ही रहा। देश की जनता चाहती है कि राममनोहर लोहिया और मुलायम नेताजी मुलायम सिंह को उनके अप्रतिम योगदान हेतु भारतरत्न विभूषण दिया जाए। समाजवादी विचारधारा और पक्ष को मजबूत करना ही नेताजी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

शिवपाल सिंह यादव


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