सामयिक : हमें गढ़ने होंगे अपने विमर्श

Last Updated 09 Oct 2024 12:39:05 PM IST

आज वैश्विक स्तर पर भारत के विरुद्ध कई झूठे विमर्श गढ़े जा रहे हैं। हाल के समय में इस प्रक्रिया ने कुछ रफ्तार पकड़ी है। विमर्श के माध्यम से जनता के मानस को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। विमर्श सत्य, अर्धसत्य अथवा झूठ भी हो सकता है।


सामयिक : हमें गढ़ने होंगे अपने विमर्श

कुछ देशों के संबंध में प्राय: कुछ विमर्श गढ़े गए हैं, जैसे अमेरिका के बारे में कहा जाता है कि वहां व्यापार पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ब्रिटेन के बारे में धारणा है कि वहां राजनीति पर अधिक ध्यान दिया जाता है। जर्मनी के संबंध में कहा जाता है कि वहां युद्ध कौशल के बारे में अधिक चर्चा की जाती है।

इसी प्रकार, भारत के बारे में पूरे विश्व में धारणा है कि यहां आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा रही है परंतु अब पूरे विश्व में विशेष रूप से भारत के संदर्भ में पुराने विमर्श टूट रहे हैं, और नित नये विमर्श गढ़े जा रहे हैं। भारत चूंकि हाल के समय में वैश्विक स्तर पर मजबूत आर्थिक ताकत बन कर उभरा है, तो भारत की यह प्रगति कुछ देशों को रास नहीं आ रही एवं ये देश भारत के संबंध में झूठे विमर्श गढ़ रहे हैं। दरअसल, चार शक्तियों ने हाथ मिला लिए हैं। ये हैं, कट्टरवादी इस्लाम, प्रसारवादी चर्च, सांस्कृतिक मार्क्‍सवाद एवं वैश्विक बाजार शक्तियां।

हालांकि चारों शक्तियों की अन्य देशों में आपसी लड़ाई है परंतु भारत के मामले में ये एक हो गई हैं। पश्चिमी एवं भारतीय विचारधारा में जमीन-आसमान का अंतर है। जैसे भारत में व्यापार के मामले में ‘शुभ लाभ’ की विचारधारा पर कार्य किया जाता है परंतु पश्चिमी देशों में पूंजीवाद का अनुसरण करते हुए व्यापार में अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए चाहे सामान्यजन को कितना ही नुकसान क्यों न उठाना पड़े, लेकिन इसे ‘शुद्ध लाभ’ की संज्ञा दी जाती है। इसी प्रकार, वामपंथी विचारधारा में अप्रत्यक्ष रूप से ‘शून्य लाभ’ के लिए कार्य होता दिखाई देता है जिससे अंतत: व्यापार ही समाप्त होने की ओर बढ़ जाता है।

भारतीय परंपरा में व्यापार में शुभ लाभ इसलिए कहा गया है क्योंकि भारतीय शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि व्यापार में होने वाले लाभ को 7 हिस्सों में बांट कर अति गरीबों को भी हिस्सा उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि वे भूखे न रहें। यह संस्कार भारतीय नागरिकों में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना का संचार करता है। इसी कारण से आज विश्व भर में फैले आतंकवाद से निपटने में भारतीय सनातन संस्कृति ही सक्षम दिखाई देती है। यह विमर्श खड़ा किए जाने की सख्त आवश्यकता है। भारत में ‘संयुक्त परिवार भारतीय नागरिकों के सुख का आधार है’। पश्चिमी देशों में तो संयुक्त परिवार दिखाई ही नहीं देते और इसके दुष्परिणाम के रूप में वहां सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होता दिख रहा है।

इन देशों में तलाक की दर अधिक है, और नागरिक एक जीवन में 7 शादियां तक कर लेते हैं जबकि भारत में शादी को पवित्र बंधन मानते हुए पति-पत्नी के लिए विवाह नामक संस्था को 7 जन्मों का बंधन माना जाता है। एक से अधिक शादियां करने के चलते पश्चिमी देशों में बच्चों को अपने पिता के बारे में ही जानकारी नहीं रह पाती। बुजुर्ग दंपति अपने अंतिम समय पर पीड़ादायी जीवन जीने को मजबूर हैं। बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है एवं बच्चे अवसाद के शिकार हो रहे हैं। ‘भारत ने विश्व का दिल जीता है’ एवं ‘भारतीय संयुक्त परिवार ही सुख का आधार है’, ‘सेवा कार्य भारतीय नागरिकों के डीएनए में है’ जैसे विमर्श गढ़ने की जरूरत है। पश्चिमी विचारधारा में उत्पादों के अधिकतम उपभोग को जगह दी गई है। आज को अच्छी तरह से जी लें, कल किसने देखा है, यह पश्चिमी सोच चर्च की प्रेरणा एवं भौतिकवाद पर आधारित है।

इस्लाम एवं ईसाइयत में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता। जो कुछ करना है, इसी जन्म में करना है। इसके विपरीत भारतीय सनातन संस्कृति पुनर्जन्म में विश्वास करती है। इसलिए भारतीय उपभोग में संयम बरतते हैं एवं उत्पादन में बहुलता होने की विचारधारा पर कार्य करते दिखाई देते हैं। ईश्वर से प्रार्थना की जाती है, ‘प्रभु इतना दीजिए कि मैं भी भूखा न रहूं और अन्य कोई भी भूखा न सोए’। हिन्दू जीवन पद्धति है। इसे धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। धर्म का आश्य अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने से है जबकि कई बार हिन्दू शब्द को धर्म से जोड़ दिया जाता है, और हिन्दू को अलग धर्म मान लिया जाता है।

हिन्दू राष्ट्र भारत की संकल्पना है। कुछ विदेशी शक्तियां भारत के विरुद्ध झूठे विमर्श गढ़ने में व्यस्त हैं तो भारत को भी अपने बारे में सत्य पर आधारित विमर्श गढ़ने की जरूरत है। भारतीय सनातन संस्कृति तो धरा पर समस्त जीवों के भले की बात करती है, इसीलिए भारत में पर्वत, नदी, पेड़, पौधों, जंतुओं आदि को भी पूजा जाता है। भारतीय संस्कृति में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है परंतु दुर्भाग्य से आज पूरे वि में हिंसा व्याप्त है। हिंसा को सनातन संस्कृति के संस्कारों को अपना कर ही रोका जा सकता है। भारत के बारे में वास्तविक एवं सत्य पर आधारित विमर्श गढ़ कर अन्य देशों के नागरिकों को भारतीय सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित किया जा सकता है।

प्रह्लाद सबनानी


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