राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ और जया बच्चन के बीच फिजूल की तकरार

Last Updated 17 Aug 2024 01:40:17 PM IST

विगत दिनों संसद में राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ और राज्य सभा सांसद और प्रख्यात अभिनेत्री जया बच्चन के बीच उठे विवाद के कई राजनीतिक निहितार्थ हैं। संसद में सभापति की कुर्सी सर्वोच्च होती है।


संसदीय नियमों और परंपराओं के साथ संसद की कार्रवाई चलाने की जिम्मेदारी सभापति की होती है। लोक सभा के चुनाव के बाद दोनों सदनों में अतिरिक्त गतिरोध दिखाई पड़ रहा है। लोकतंत्र की आत्मा संसद में बसती है। संसद देश के दिमाग को आकार देती है। संसद विकास की नीतियों और योजनाओं का प्रसूति गृह है। लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों की भूमिका निर्णायक होती है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि दोनों एक दूसरे के प्रति उदार और अनुशासित रहें।

सभापति किसी दल के न होकर तटस्थ भूमिका में रहते हुए संवैधानिक नियमों, मर्यादाओं से बंधे होते हैं। जया बच्चन को अपने आधिकारिक नाम ‘जया अमिताभ बच्चन’ बुलाए जाने पर आपत्ति है। यह आपत्ति पहली बार दर्ज नहीं कराई गई है, बल्कि 29 जुलाई और 5 अगस्त को भी उन्होंने अपनी नाराजगी जताई थी। इस मामले की शुरु आत तब हुई जब राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण द्वारा ‘जया अमिताभ बच्चन’ बुलाया गया। इस पर समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने उन्हें टोका और कहा कि उन्हें जया अमिताभ बच्चन न कहा जाए। सिर्फ  जया बच्चन कहा जाए।

उपसभापति हरिवंश ने कहा कि आधिकारिक तौर पर उनका मिडिल नाम अमिताभ है, और वो इसी का पालन करेंगे। इस पर जया बचन ने कहा ‘यह कोई नया तरीका है क्या कि महिलाएं अपने पति के नाम से जानी जाएं। उनका कोई अस्तित्व नहीं है क्या। उनकी अपने में कोई उपलब्धि नहीं है।’ निस्संदेह जया बच्चन वरिष्ठ सांसद हैं। कुशल अभिनेत्री के रूप में उनकी लोकप्रियता और सम्मान सर्वविदित हैं। लेकिन यह दूसरा पक्ष है। आप संसद में संसदीय मर्यादाओं से बंधे होते हैं। वहां आप सिर्फ  और सिर्फ  बुनियादी रूप से सांसद होते हैं। राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ द्वारा भी जया अमिताभ बच्चन संबोधित किए जाने पर जया बच्चन नाराज हो गई और सभापति से बोलीं, ‘मैं जया अमिताभ बच्चन यह बोलना चाहती हूं कि मैं कलाकार हूं, बॉडी लैंग्वेज समझती हूं, एक्सप्रेशन समझती हूं, सर आप मुझे माफ करिएगा, आपका जो टोन है, वह स्वीकार्य नहीं है।’

इसके बाद सभापति धनखड़ ने नाराजगी जाहिर करते हुए जया बच्चन को बैठने के लिए कहा। धनखड़ ने जया बच्चन के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि राज्य सभा की वरिष्ठ सदस्य होने के नाते क्या आपके पास चेयर का निरादर करने का लाइसेंस है। विवाद इतना बढ़ा कि विपक्ष वॉकआउट कर गया और सभापति के विरु द्ध महाभियोग लाने की बातें आने लगीं। प्रश्न यह है कि संसद में छोटी-छोटी बातों पर अगर तल्खी इस कदर बढ़ेगी तो नुकसान किसका होगा। पूरे प्रकरण पर गौर करें तो सभापति और उपसभापति की भूमिका निर्दोष दिखती है क्योंकि संसदीय दस्तावेज में जया बच्चन का नाम जया अमिताभ बच्चन ही दर्ज है।  नि:संदेह इस नाम को जया बच्चन ने अपनी सहमति से दर्ज कराया होगा। फिर उस नाम के संबोधन से आपत्ति व्यावहारिक नहीं दिखती।

जया बच्चन ने अपनी फिल्मों में सदैव संवेदनशील चरित्र को जिया है, लेकिन व्यावहारिक जिंदगी में जया बच्चन की छवि गुसैल एवं तुनकमिजाज बनती जा रही है। इस छवि की निर्मिंति के लिए जया बच्चन खुद जिम्मेदार हैं। सार्वजनिक स्थलों पर भी अपने प्रसंशकों के साथ उनका संबंध तनावपूर्ण रहा है जिससे भी उनकी छवि प्रभावित होती है।  राजनीति में हर कार्य के पीछे एक अप्रत्यक्ष विचार सक्रिय रहता है। कई बार कुछ भी बोलने -टोकने के अपने निहितार्थ होते हैं। कई बार लगातार टोकने-बोलने से हम किसी की छवि को धूमिल करने का प्रयास भी करते हैं। राज्य सभा के सभापति पर विपक्ष द्वारा आरोप तर्कसंगत नहीं है। यह पूरा प्रकरण पूर्वाग्रह से प्रेरित दिख रहा है। बात कई बार बड़ी नहीं होती, उसे अनावश्यक विस्तार दे दिया जाता है जिसका खमियाजा देश को भुगतना होता है। संसद की प्रत्येक कार्यवाही पर हर एक मिनट में ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं। संसद में हंगामा होने के कारण आम आदमी का लगभग ढाई लाख रु पये प्रत्येक मिनट बर्बाद होता है।

आसान भाषा में समझें तो एक घंटे में डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हो जाता है। आम आदमी के पैसों की शर्त पर हम गैर-जिम्मेदार नहीं हो सकते। सभापति जगदीप धनखड़ का यह कहना कि अभिनेता, निर्देशक का विषय होता है, यह कथन ज्ञापित करता है कि यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं है, बल्कि विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है। इस घटना के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए जया बच्चन ने कहा कि संसद के सभापति हमारे सहकर्मी होते हैं। वह भी हमारी तरह एक सांसद हैं। यह तर्क भी न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राज्य सभा के सभापति देश के उपराष्ट्रपति होते हैं, उनकी अपनी संवैधानिक गरिमा होती है। जया बच्चन जैसी वरिष्ठ सांसद से ऐसी टिप्पणी शोभनीय नहीं मानी जा सकती। इस पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद कहा जा सकता है कि अगर विपक्ष सभापति से बार-बार असहमति दर्ज करा रहा है, तो उस बिंदु पर भी गंभीरता से विचार जरूरी है। भारतीय लोकतंत्र की वैश्विक साख है। उस साख को बरकरार रखने का दायित्व देश के सभी सांसदों का है।

आम जन अपने प्रतिनिधि के रूप में सांसदों को चुन कर संसद में भेजता है। दुनिया की तुलना में हम आज भी कमतर हैं। बुनियादी सुविधाओं के लिए हम आज भी जूझ रहे हैं।  चतुर्दिक चुनौतियों के मध्य संसद में इस तरह के गतिरोध देश के विकास में बाधक होते हैं। इससे जनभावनाओं की भी उपेक्षा होती है। संसद में सभापति का भी संवैधानिक दायित्व है कि बिना किसी भेद-भाव के संसदीय कार्यवाही का संचालन करें। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक रचनात्मक रिश्ता स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। वैचारिक असहमति मनुष्य होने की शर्त और सीमाएं हैं, लेकिन असहमतियों के बीच सहयोग और साथ देने के मानवीय गुणों को छोड़ा नहीं जा सकता। रचनात्मक विपक्ष की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है  जिससे लोकतंत्र और  देश मजबूत होता है।

डॉ. मनीष कु. चौधरी


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