मुद्दा : परंपरा के अनुपालन से हो रही प्रगति

Last Updated 16 Jul 2024 01:18:03 PM IST

भारत जो किसी वक्त में सोने की चिड़िया रहा है जिसका किसी वक्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान रहा है, उस भारत के गुलाम होने के बाद उसकी अर्थव्यवस्था को मुगलों ने एवं अंग्रेजों ने तहस-नहस किया है।


मुद्दा : परंपरा के अनुपालन से हो रही प्रगति

भारत का सनातन चिंतन जितना अधिक शक्तिशाली था; गुलामी के उस दौर में उस पर किए गए आक्रमण उसे कमजोर बनाने में कामयाब रहे, परंतु अब समय आ गया है कि भारत के प्राचीन आर्थिक चिंतन को गंभीरता के साथ देखते हुए वर्तमान आर्थिक विकास की दृष्टि को उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए तभी जाकर आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत के वैभवकाल को पुन: प्राप्त किया जा सकेगा।

भारत में प्राचीन ऋषियों और मनीषियों की परंपरा एक गृहस्थ परंपरा रही है और उस गृहस्थ परंपरा में आध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन भी जुड़ा रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिंक आयोजनों एवं धार्मिंक पर्यटन का भारत के आर्थिक विकास पर पूर्ण प्रभाव रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिंक आयोजनों से अर्थव्यवस्था को बल मिलता रहा है इसलिए उस कालखंड में धार्मिंक आयोजन निरंतर होते रहे हैं। भारत की ऋषि परंपरा ने जन सामान्य को उन सबके साथ जोड़ कर रखा था। त्योहारों की निरंतरता और उन्हें मनाए जाने का उत्साह भारत की तत्कालीन अर्थव्यवस्था को गति देता रहा है।

आज के वक्त में भी धार्मिंक पर्यटन के चलते भारतीय पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसर निर्मिंत हो रहे हैं। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा भी पिछले 10 वर्षो में भारत में विभिन्न तीर्थस्थलों को विकसित किया जा रहा है। अभी तक जो तीर्थस्थल विकसित हो चुके हैं, वहां का पर्यटन एकदम से कई गुना बढ़ गया है। वहां की आर्थिक समृद्धि बढ़ गई है। वहां के लोगों का जीवन स्तर बढ़ गया है।

वहां संपत्तियों के दाम बढ़ गए हैं। इसलिए इस दिशा में सरकार अब आगे और कार्य करने जा रही है तथा कई नवीन धार्मिंक कॉरिडोर बनाने जा रही है, क्योंकि इससे रोजगार के लाखों नए अवसर  उत्पन्न होंगे। भारत की कुटुंब व्यवस्था अपने आप में एक अनूठी व्यवस्था है। इन दिनों संयुक्त परिवार विघटित अवश्य होते जा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके आपातकाल में एक दूसरे के लिए सबके एकत्र होने की जो जिजीविषा उन सबके भीतर है वह भारत में कुटुंब व्यवस्था का अनूठा स्वरूप है, तथा यह स्वरूप देश की अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने का काम करता है। एक परिवार में दो हाथ कमाने जाते हों और वहीं दस हाथ कमाने जाते हों, दोनों बातों का फर्क होता है।

इसलिए कुटुंब व्यवस्था में एक दूसरे के लिए आपस में खड़े होने का जो व्यवहार होता है,वह व्यवहार आर्थिक चिंतन के साथ भी जुड़ कर परिवार को आगे बढ़ाने का काम करता है। भारत में प्राचीन काल से पर्यावरण को पर्याप्त महत्त्व दिया जाता रहा है। पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर निदयों को, वृक्षों को, धरती को पूजा जाता है। बहुत सारे व्रत और त्यौहार पर्यावरण से जुड़े हुए रहते हैं। इसलिए सनातन काल से भारत में पर्यावरण की चिंता रही है। जैविक विविधता ने भी भारत के सनातन काल को समृद्ध किया। बाद में जब मुगलों ने भारत में शासन किया और हिंदुओं का धर्मातरण किया तो बहुत सारी परंपराएं भी खंडित होने लगी।

सनातन काल में जिस गौ माता को पूजा जाता था मुस्लिम उस गौ माता को खाने लगे। जो भारतीय अर्थव्यवस्था कभी विश्व की अर्थव्यवस्था का 33 प्रतिशत हिस्सा थी वह बहुत नीचे जा चुकी थी। पर्यावरण बिखरने लगा। दक्षिण ने अपने आपको मुस्लिम आक्रमण से जरूर बचाया और इसीलिए भारत के दक्षिण भाग में आज भी समृद्ध मंदिर हैं, जो उस कालखंड के गौरव की प्रस्तुति के रूप में हमारे सामने खड़े हुए हैं। इसी कालखंड में भारत का भक्ति काल जरूर समृद्ध हुआ और उसने भारत के निवासियों को मानसिक ताकत प्रदान की। भारत की आजादी की लड़ाई तो सफलतापूर्वक लड़ी गई परंतु एक दुष्परिणाम भारत विभाजन के रूप में भी सामने आया, जिसमें लाखों हिंदुओं का नरसंहार हुआ। आजादी के 70 वर्ष में भारत की वह आर्थिक उन्नति नहीं हो पाई जैसी कि अपेक्षा की गई थी। वर्ष 2014 में केंद्र में एक मजबूत सरकार ने शासन को संभाला।

10 वर्ष के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो गई। वर्तमान सरकार के समक्ष बहुत बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं और आज भारत बहुत सी विदेशी ताकतों एवं उनके षड्यंत्रों के साथ जूझ रहा है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जो संकल्प लेकर भारतीय परंपराओं के अनुरूप सरकार काम कर रही है, उसमें भारत की अर्थव्यवस्था शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। भारतीयों का डंका आज पूरे विश्व में बज रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में प्रवासी भारतीय भी अपना योगदान कर रहे हैं। विश्व के कई देशों में भारतीय मूल के नागरिकों की बढ़ती संख्या एवं भारतीय सनातन दर्शन का प्रसार विदेशों में हो रहा है। भारत की तरह वहां पर भी मंदिरों का निर्माण हो रहा है। भारत की साधना पद्धति वहां स्वीकार की जाने लगी है।

प्रह्लाद सबनानी


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