डिजिटल अटेंडेंस : बेवजह का विरोध
आज हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां चाय, ब्रेड, दूध आदि जैसे रोजमर्रा के खचरे और खरीदारी के लिए डिजिटल मोड जनता की पहली पसंद बन चुका है।
डिजिटल अटेंडेंस : बेवजह का विरोध |
अमेजॉन के एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि ऑनलाइन खरीदारी के लिए जहां 90 प्रतिशत भुगतान डिजिटली किया जा रहा है वहीं स्टोर्स में भी डिजिटल भुगतान 50 प्रतिशत जनता की पहली पसंद बन गया है।
देश में डिजिटल क्रांति ने जीवन के हर पहलू को न सिर्फ छुआ है, बल्कि बदल कर रख दिया है। ऐसे में जब हम ऐसी खबरें सुनते हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा परिषदीय स्कूलों में लागू की गई डिजिटल अटेंडेंस व्यवस्था का प्रदेश के शिक्षकों द्वारा यह कहते हुए विरोध हो रहा है कि यह ‘अव्यावहारिक’ है, तो निश्चिय ही आश्चर्य होता है। कोई बड़ी बात नहीं कि विरोध कर रहे शिक्षकों के मोबाइल में भुगतान करने के लिए ‘भीम एप’, मनोरंजन के लिए ओटीटी ऐप, खाना ऑर्डर करने के लिए ‘डिलीवरी एप’, खरीदारी के लिए भी विभिन्न ऐप पहले से ही मौजूद हों। ऐसे में सिर्फ डिजिटल अटेंडेंस का विरोध करना खुद ही व्यावहारिक नहीं लगता। योगी सरकार ने 8 जुलाई से सभी परिषदीय स्कूलों में मौजूद सभी 12 रजिस्टरों को डिजिटल करने का फैसला लिया है, और सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को इसे सख्ती से लागू करवाने का निर्देश दिया है।
इन्हीं रजिस्टरों में शिक्षकों की अटेंडेंस का रजिस्टर भी शामिल है, जिसमें फेस रिकग्निशन के जरिए स्कूल परिसर में ही स्कूल खुलने और बंद होने के 15 मिनट पहले और बाद में हर शिक्षक को अपनी उपस्थिति टैब के जरिए डिजिटली दर्ज करानी है।
नई व्यवस्था के विरोध को देखते हुए प्रदेश सरकार ने इसमें 30 मिनट का ग्रेस टाइम भी दे दिया है। इसी व्यवस्था का विरोध यह कहते हुए हो रहा है कि इसमें व्यावहारिक दिक्कतें हैं, वहीं बरसात में मौसम और आकस्मिक स्थिति में शिक्षक द्वारा इस व्यवस्था का अनुसरण करना संभव नहीं होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह विरोध सिर्फ इसलिए है कि इसमें कुछ दिक्कतें आएंगी या फिर किसी और चीज की पर्दादारी है। प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। एक ओर तो प्रदेश के 133035 प्राथमिक, कंपोजिट और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी हमेशा ही बनी रहती है वहीं जो शिक्षक हैं भी, उनमें से कई, स्कूलों में नहीं आते हैं, या सिर्फ एक बार रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज कर, निकल लेने की फिराक में रहते हैं।
राज्य के शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2022-23 में प्रदेश में कुल 453594 शिक्षक थे जबकि 126028 पद रिक्त हैं, ऐसे में यदि मौजूद शिक्षक भी विद्यालय न आएं तो शिक्षा की स्थिति समझी जा सकती है। यह सीधे-सीधे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। यदि हमें प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करनी है तो सरकार को व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन करने होंगे। डिजिटल रजिस्टर उसी दिशा में उठाया गया कदम जान पड़ता है। इसके लिए शिक्षा विभाग द्वारा परिषदीय प्राथमिक, कंपोजिट विद्यालयों के शिक्षकों के उपयोग के लिए 2,09,863 टेबलेट्स उपलब्ध कराए गए हैं। परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए टेबलेट उपलब्ध कराए जाने की प्रक्रिया जारी है।
निर्देशों के अनुसार समस्त अध्यापक 1 अप्रैल से 30 सितम्बर तक आगमन उपस्थिति प्रात: 7.45 से 8 बजे तक और प्रस्थान दोपहर 2.15 से 2.30 बजे तक लगाएंगे। एक अक्टूबर से 31 मार्च तक आगमन उपस्थिति सुबह 8.45 बजे से सुबह नौ बजे तक और प्रस्थान उपस्थिति 3.15 बजे से 3.30 बजे तक दर्ज कर सकेंगे। एक प्रश्न हमें और शिक्षकों को खुद से भी पूछना चाहिए। यदि पुरानी फिजिकल रजिस्टर वाली व्यवस्था दुरुस्त थी तो प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा की स्थिति ऐसी क्यों है? 2023-24 में 2022-23 की तुलना में प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और कंपोजिट स्कूलों में छात्रों की संख्या में 24 लाख से अधिक की गिरावट दर्ज की गई, जो चौंकाने वाला आंकड़ा है।
2023-24 में इन स्कूलों में छात्रों की संख्या 16784645 थी जो पिछली बार से 24 लाख कम है। यह तब है जब कोरोना काल में घटती आमदनी के चलते सरकारी स्कूलों में छात्रों का पंजीकरण खासा बढ़ा था। घटती संख्या के पीछे मुख्य कारण यह भी है कि शिक्षक पढ़ाने आते ही नहीं। ऐसे में डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था इसमें अपेक्षित सुधार ला सकती है। डिजिटल व्यवस्था के विरोध में एक बात और कही जा रही है कि यह ऐप कई बार शिक्षक की लोकेशन स्कूल से अलग कहीं और दिखाता है। डिजिटल दुनिया में शुरुआती समय में कई बार ऐसा होता है लेकिन यह कमी किसी भी ऐप में समय के साथ ठीक की जा सकती है, लेकिन इसके लिए पूरी व्यवस्था को अव्यावहारिक कह कर नकार देना कतई सही नहीं है। सॉफटवेयर और हार्डवेयर, दोनों स्तरों में लगातार सुधार जारी हैं, वहीं जरूरत के अनुसार नियमों में रियायतें भी दी जा रही हैं। आधे घंटे का ‘ग्रेस’ इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
अगर समग्र रूप से देखें तो किसी भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था सीधे हमारे मानव संसाधन के भविष्य से जुड़ाव रखती है, और समय के साथ इसमें बदलाव विकसित भारत के सपने को साकार करने में अहम है। यदि प्रदेश का शिक्षा तंत्र और शिक्षक अपने ध्येय का बखूबी पालन करते हैं, तो इसका सकारात्मक असर सीधे प्रदेश की प्रोडक्टिविटी पर तो होगा ही, वहीं हम बेहतर नागरिकों का निर्माण भी करेंगे। इसे देखते हुए एक समाज के तौर पर हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को पूरी गंभीरता से लेना चालिए। हमें ऐसे शिक्षा के मंदिरों का निर्माण करना है जहां स्कूल में हमारे बच्चों के लिए सभी मूलभूत सुविधाएं हों, शौचालयों की व्यवस्था हो, मिड डे मील के रूप में भोजन की उचित व्यवस्था हो, पक्का स्कूल हो, बैठने के लिए डेस्क हो, कॉपी-किताबें हों और सबसे महत्त्वपूर्ण उचित संख्या में शिक्षक हों, जो विद्यालय में समय से आएं और बच्चों को शिक्षित कर विकसित भारत का निर्माण करने में सहयोग करें जिसके लिए डिजिटल प्रक्रिया क्रांतिकारी कदम है। सभी शिक्षकों को आगे आकर डिजिटल प्रक्रिया का स्वागत करना चाहिए, वहीं प्रदेश सरकार को भी चाहिए कि शिक्षकों की मांग पर ध्यान दे और इस ऐप में सभी व्यावहारिक स्थितियों जैसे कनेक्टिविटी, टैगिंग, जीपीएस लोकेशन संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए जरूरी बदलाव लगातार करे।
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