Menstrual Leave : सोच बदलने की जरूरत

Last Updated 16 Jul 2024 01:24:31 PM IST

Menstrual Leave : महीने के वे दिन, कई बार इससे ज्यादा कहने की जरूरत नहीं होती। जब से से एक लड़की का मासिक धर्म शुरू होता है, उसी समय से उसके दायरे भी तय होने शुरू हो जाते हैं।


मासिक धर्म अवकाश : सोच बदलने की जरूरत

बड़े होते-होते अक्सर हर महिला अपने आप को उन मापदंड पर आंकती है जो उसके लिए समाज तय करता है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि महिलाओं से संबंधित समस्या का समाधान अक्सर हमारे समाज के पुरुष वर्ग करते हैं।  यह किसी फेमिनाजी सोच का हिस्सा नहीं है बल्कि सदियों से चली आ रही रूढ़िवादिता  की सच्चाई है।  हम एक पितृसत्तात्मक समाज हैं और वर्षो से हमारी मानसिकता, महिलाएं इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में खुद को साबित करने की होड़ में है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया की वह मासिक धर्म अवकाश नीति (Menstrual Leave Policy) पर दुबारा सोचे क्योंकि उनको यह  आशंका है कि ऐसी नीति कंपनियों द्वारा पसंद नहीं की जा सकती है। कोर्ट का यह मानना है की आने वाले समय में यह महिलाओं के लिए और मुश्किल खड़ी कर सकता है। इसके बारे में मैंने कार्यरत महिलाओं से उनकी राय पूछी और मुझे मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली। कुछ ने कोर्ट के इस फैसले का समर्थन किया और कुछ और ने जोर-शोर से मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave Policy) को अपनी जरूरत बताया। मुझे हैरानी तब हुई जब कुछ महिलाओं ने मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave Policy) का विरोध भी किया। उनका मानना यह था कि  लोग इसका फायदा उठाएंगे। फायदा उठाने का मतलब दो परिप्रेक्ष्य से  देखा जा सकता है- एक जिन महिलाओं के लिए यह नियम निकल रहा है वह शायद बिना जरूरत के भी इसको छुट्टी मनाने के लिए इस्तेमाल करेंगी और दूसरा संस्थाएं इसको बहाना बना कर महिलाओं को काम पर ना रखने की एक और वजह ढूंढ लेंगे। 

चलिए इससे पहले कि मैं अपनी राय  इस बारे में दूं कुछ तथ्य देख लेते हैं-

► वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट 2021 से पता चलता है कि लैंगिक समानता हासिल करने में 135.6 साल  और लगेंगे। वैसे ही अभी के आकड़ों के अनुसार पुरुषों की कमाई के हर डॉलर पर महिलाओं को 84 सेंट मिलते हैं और कार्यबल में उनकी भागीदारी कम है ।

► अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो स्पेन, जापान और इंडोनेशिया सहित कई देश मासिक धर्म अवकाश प्रदान करते हैं, स्पेन सशुल्क अवकाश (Menstrual Leave Policy) प्रदान करने वाला पहला यूरोपीय देश है।

► भारत में जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियों ने मासिक धर्म अवकाश नीतियां शुरू की हैं, जबकि बिहार और केरल ने राज्य-स्तरीय नीतियां लागू की हैं। केरल विश्वविद्यालय छात्राओं के लिए मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave Policy) भी प्रदान करता है।

यह तथ्य क्यों जरूरी है? ऐसा माना जा रहा है अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave Policy) कंपनियों को महिलाओं को काम पर रखने से और हतोत्साहित कर सकता है। मासिक धर्म वाली महिलाओं के लिए ‘विशेष दर्जा’ की पुष्टि करने से उस सामाजिक सोच को बल मिल सकता है जो मासिक धर्म को महिलाओं की कमजोरी की तरह देखता है।

जब महिलाओं से पूछा गया कि क्या मासिक धर्म अवकाश उनकी सहायता करेगा,  काफी महिलाएं इसके समर्थन में थी। कारण साफ था कि वह भुक्तभोगी हैं। मासिक धर्म के दौरान किस तरह की परेशानिया होती है इसका उनको अच्छे से आभास था। इसमें एक और बात ध्यान देने योग्य है-हर महिला को एक ही तरह का अनुभव नहीं होता। बेंगलुरू की डॉ. प्रेमलता का कहना है, ‘अच्छा सुझाव है, लेकिन जैसा कि आप सभी जानते हैं, यह सभी महिलाओं के लिए समान नहीं है। समय, प्रवाह, अवधि, दर्द आदि। गर्भवती महिलाएं इसका उपयोग नहीं कर सकती हैं, रजोनिवृत्त महिलाएं, शल्य चिकित्सा या अन्य इसका उपयोग नहीं कर सकती हैं। वैकल्पिक छुट्टी बेहतर हो सकती है। आईटी कर्मचारी मानसी (बदला हुआ नाम) ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह जरूरी है। मुझे बहुत ज्यादा रक्तस्राव और कमजोरी और चक्कर आते हैं। हमेशा से मेरी इच्छा रही है कि महिलाओं के लिए महीने में कम-से-कम एक दिन की छुट्टी होनी चाहिए। इसके बजाय यह मासिक वैकल्पिक छुट्टी होनी चाहिए। जिन लोगों को इसकी जरूरत है वे इसे ले सकते हैं और जिन्हें इसकी जरूरत नहीं है वे काम करना जारी रख सकते हैं।’

भार्गवी (बदला हुआ नाम)  ने इस पर एक नियोक्ता की दृष्टि से अपनी राय दी। ‘नियोक्ता के दृष्टिकोण से, कल्पना करें कि महीने में 1 या 2 अवकाश देने से साल में 12 से 24 छुट्टियां हो जाएंगी। साल में 96 से 192 उत्पादक घंटों का नुकसान। वे शायद किसी पुरुष कर्मचारी को काम पर रखना पसंद करें। इसे कम करने से महिला कर्मचारियों को काम पर रखने के उनके फैसले प्रभावित हो सकते हैं। या फिर उन्हें उसी पद के लिए कम पैकेज देकर मुआवजा देने का एक और कारण मिल सकता है। सौ बात की एक बात, महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave Policy) की जरूरत है।  वह यह भी समझ रही हैं कि शायद इसका दुरुपयोग भी हो सकता है, लेकिन मैं जब इस पूरे मुद्दे को देखती हूं तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हम कितने भी आधुनिक हो जाएं, जाने-अनजाने हमारी सोच पुरातन ही रहती है। मेरा मानना है कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। समावेशिता का मतलब अपने को  पुराने नियमों के अनुसार चलाना या फिर अपने को पुरानी मानसिकता के अनुरूप ढालना नहीं है; इसका मतलब है पुरानी नियम पुस्तिका को हटा कर नए नियम बनाना। जो दायरे महिलाओं के लिए तय दे उनको हर रोज चुनौती देने के बजाय, वह ढर्रा ही मिटा देना।   

हमें अगर महिलाओ को वाकई अपने कार्यक्षेत्र का हिस्सा बनाना है, तो बहाने बनाने बंद करने होंगे।  कोविड के बाद काम करने के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आया है, लेकिन तरीकों से ज्यादा सोच बदली है। लोगों की, कर्मचारियों की और समाज की। गैर-सरकारी संगठन कॉन्फ्रेंस बोर्ड की रेडी-नाउ लीडर्स रिपोर्ट से पता चलता है कि जिन संगठनों में नेतृत्व के पदों पर कम से कम 30% महिलाएं हैं, उनमें अपनी इंडस्ट्री में 20% तक वित्तीय प्रदर्शन की बढ़ोतरी की संभावना होती है। समय आ गया है की हम यह सोचने के बजाय की कहीं महिलाओं की भलाई की तरफ लिया गया कदम, उनको मुश्किल में न डाल दे, यह सोचें कि लोगों की सोच कैसे बदली जाए कि वह इस कदम को बाधा न समझ कर प्रेरणा समझे। क्या हम तैयार हैं, समय बदलने के लिए?

नुपूर डी. पाण्डेय


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