चाबहार बंदरगाह : अहम है ईरान से समझौता

Last Updated 18 May 2024 01:07:43 PM IST

अमेरिका द्वारा भारत-ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह परियोजना के संबंध में हुई डील को नया बताकर अपनी नराजगी व्यक्त की गई।


चाबहार बंदरगाह : अहम है ईरान से समझौता

इसके साथ ही भारत-ईरान के बीच 10 साल के इस अनुबंध पर अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है क्योंकि वह इसे नए दृष्टिकोण से देख रहा है अमेरिका को इस बात का गंभीरता से भी विचार करना होगा कि दबाव, दमन, दहशत व दादागिरी की नीति हमेशा नहीं चलती है। प्रत्येक देश अपने भू आर्थिक, भू-राजनीतिक तथा भू-सामरिक हितों को ध्यान में रखकर कार्य करता है जैसा कि भारत ने ईरान के साथ इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। भारत चाबहार बंदरगाह को पाकिस्तान में चीन द्वारा निर्मित बंदरगाह के काउंटर के रूप में देखता है।

भारत और ईरान के चाबहार बंदरगाह के संगठन और उनके अनुबंध के लिए और मेगा कनेक्टिविटी योजनाओं के माध्यम से परियोजनाओं के अगले चरण के विकसित करने के लिए यह समझौता हुआ है। भारत इसे अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के साथ एकीकृत करने की योजना बना रहा है, ताकि ईरान के माध्यम से भारत से रूस तक एक निर्बाध व्यापारिक मार्ग तैयार किया जा सके। भारत एक संयुक्त देश है और यह अनुबंध भारत और ईरान दोनों देशों के लिए बेहद एक सामयिक, सामरिक एवं संवेदनशील विशेष समझौता है कि मध्य एशिया और उससे आगे तक पहुंच आसान हो जाएगी। यह चीन द्वारा पाकिस्तान के ग्वादर में बनाई जा रही अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का एक करारा जवाब भी है।

ओमान की खाड़ी पर दक्षिणी पूर्वी ईरान में स्थित चाबहार एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है। यह ईरान के एकमात्र समुद्री बंदरगाह के रूप में कार्य करता है और इसमें ‘शाहिद कलंतरी’ ‘शाहिद बेहिश्ती’ नामक दो अलग-अलग बंदरगाह शामिल हैं। यह बंदरगाह भारत को अरब सागर में चीन की उपस्थिति को नजरअंदाज करने में सक्रिय सहयोग देता है। अपनी भौगोलिक अवस्थिति, आर्थिक व व्यापारिक तथा सामरिक कूटनीतिक दृष्टिकोण से भारत के लिए एक विशेष महत्त्व का क्षेत्र है। यही कारण है कि इस बंदरगाह को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) के रूप में भी जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि यह भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, अर्मेनिया, रूस के साथ ही मध्य एशिया तथा यूरोप के बीच व्यापार हेतु 7200 किलोमीटर की बहुउद्देश्यीय परिवहन परियोजना भी है। भारत  अल्पकालिक समझौते पर इस बंदरगाह का संचालन कर रहा था, जिसे समय-समय पर नवीनीकृत करना पड़ता था। जब चाबहार में निवेश की बात आई तो अल्पकालिक समझौते और ईरान के भू-राजनीतिक तनाव ने शिपर्स और निवेशकों को इससे दूर रखा था। इसके कारण एक बार तो ईरान इस समझौते में प्रगति न होने के कारण अपने कदम चीन की ओर बढ़ाने की मंशा बना ली थी। वास्तव में इस योजना को क्रियान्वित करने की चीन की क्षमता एवं संपन्नता भी थी।

भारत के इस समझौते के बाद अमेरिका ने प्रतिबंध की चेतावनी को ‘प्रतिबंधों का संभावित जोखिम’ की बात कहकर अपने रुख में परिवर्तन का संकेत दिया है। आखिरकार भारत ने अपने रणनीतिक एवं आर्थिक महत्त्व चाबहार बंदरगाह को दस वर्ष के लिए विकसित और संचालित करने के लिए ईरान के साथ 13 मई को इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। वास्तव में यह एक नए भारत की साहसिक पहल है जो किसी भी प्रतिबंध की अब परवाह नहीं करता, विशेष रूप से भू-आर्थिक, भू-सामरिक एवं भू-राजनीतिक पहल के मामलों में। आखिर द्वंद्व कहां तक टाला जाए, भारत समझ गया है कि समय पर सामरिक व आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर जरूरी  हो गए, जिसे जरूरत पड़ने पर जवाब देना भी जेहन में रखना होगा। यह बात अमेरिका को समझनी होगी कि यह समझौता कोई ‘नया’ नहीं है, यह तो केवल विगत रूप में संचालित हो रहे कार्यक्रम की निरंतरता है। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीन की मौजूदगी को देखते हुए भारत की चाबहार की ओर पहल एक महत्त्वपूर्ण सामयिक एवं सामरिक आवश्यकता बन गई थी।

स्मरणीय है कि अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2018 में भारत, चीन तथा तुर्की को ईरान प्रतिबंधों से छूट दी थी, जबकि वाशिंगटन ओमान की खाड़ी के बंदरगाह पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था1 चूंकि यह युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में उसकी उपस्थिति के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था। वास्तव में अगर अमेरिका इसे एक नए समझौते के रूप में देखता है तो यह उसकी भारी-भूल होगी, क्योंकि मई 2016 में मूल रूप से हस्ताक्षर करने के बाद से इस पर बहुत काम हुआ है। भारत चाबहार बंदरगाह में बेहिश्ती टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारी-भरकम निवेश कर चुका है। यह बात भी विशेष ध्यान देने योग्य है कि भारत पहले ही अमेरिका के दबाव के कारण फारस की खाड़ी में फरजाद-बी गैस क्षेत्र खो चुका है, जो वास्तव में भारत के लिए एक विशेष आकषर्क तथा आर्थिक व रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण परियोजना थी। अत: भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के शाहिद बेहिश्ती टर्मिनल का प्रबंधन अब अपने हाथ में लेने की अवहेलना कदापि नहीं कर सकता है। यदि भारत किसी कारणवश अमेरिकी प्रतिबंध के दबाव में आ जाता तो खाड़ी क्षेत्र में अपना आर्थिक आधार एवं रणनीतिक प्रभाव खो देता।

यह भी जानना जरूरी है कि अमेरिका द्वारा पहले दी गई प्रतिबंधों की छूट के बाद भारत और ईरान स्वतंत्रता और प्रति-प्रसार अधिनियम 2012 के तहत वाशिंगटन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को मात देने की अनुमति प्रदान की थी। भारत के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, तुर्की, ग्रीस तथा इटली आदि को अस्थायी छूट प्रदान की गई थी। इसके साथ ही इन सभी देशों को फारस की खाड़ी देश के साथ व्यापार करने की अनुमति दी गई थी। इस समझौते में भारत ने अपना दृढ़ विश्वास स्पष्ट रूप से दिखाया जो कि सामयिक व सामरिक रूप से बेहद अनिवार्य था। भौतिकता एवं आर्थिक होड़ की दौड़ में कोई भी देश, किसी भी देश का स्थायी मित्र या शत्रु नहीं रह सकता। प्रत्येक राष्ट्र की सभी नीतियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति होती है।

डॉ. सुरेन्द्र कु. मिश्र


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