वैश्विकी : पुतिन-जिनपिंग शिखर वार्ता
इस सप्ताह भारत के लिहाज से सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटना भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर हुए दीर्घकालिक समझौते की थी। इसके तहत भारत चाबहार बंदरगाह के एक हिस्से को विकसित और संचालित करेगा।
पुतिन-जिनपिंग शिखर वार्ता |
आम चुनाव के बीच इस समझौते का अमल में आना महत्त्वपूर्ण है। संभव है कि दोनों देश नई सरकार के आने से पहले यह समझौता करना चाहते थे। अमेरिका को यह समझौता नागवार गुजरा और उसकी ओर से प्रतिबंध लगाने की अप्रत्यक्ष धमकी भी दी गई।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी धमकी को ज्यादा महत्त्व नहीं देते हुए कहा कि इस संदर्भ में संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाना चाहिए। यह समझौता पूरे क्षेत्र के हित में है। वास्तव में चाबहार बंदरगाह उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसके जरिये भारत की पहुंच मध्य एशिया और रूस तक होनी है। ऐसे समय में जब अमेरिका के लिए रूस और ईरान दोनों प्रमुख चुनौती बने हुए हैं, यह समझौता उसके लिए रणनीतिक दृष्टि से बड़ा सिरदर्द है। आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा कि अमेरिका इस संबंध में क्या कदम उठाता है।
अंतरराष्ट्रीय जगत में सबसे बड़ी घटना रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच शिखर वार्ता थी। यह शिखर वार्ता भावी विश्व व्यवस्था के निर्माण में मील का पत्थर साबित हो सकती है। शिखर वार्ता के बाद जारी 8 हजार शब्दों के संयुक्त वक्तव्य को विशेषज्ञों ने महत्त्वपूर्ण दस्तावेज करार दिया है। एक पश्चिमी विशेषज्ञ के अनुसार यह दस्तावेज रूस और चीन के बीच ‘असीमित साझेदारी’ से भी आगे का कदम है।
वर्ष 2022 में यूक्रेन संघर्ष से ठीक पहले दोनों देशों ने असीमित साझेदारी कायम करने का फैसला किया था। अब ये देश अपने अनुकूल नई विश्व व्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हैं। भारत भी एक न्यायसंगत और संतुलित विश्व व्यवस्था का हामी है। लेकिन वह मौजूदा विश्व व्यवस्था के प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहा है। रूस और चीन के बीच एक गठजोड़ के दौरान अमेरिका ने भारत के प्रति अपने रवैये को अनुकूल बताया है।
व्हाइट हाउस ने अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा संचार सलाहकार जॉन एफ किर्बी ने भारत के लोकतंत्र की प्रशंसा करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की भी सराहना की है। लगता है कि अमेरिकी प्रशासन को भारत के आम चुनाव के नतीजों का आभास हुआ है। कल तक अमेरिका खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू को बचाने के लिए भारत के हाथ मरोड़ रहा था। अब वह भारत का गुणगान करने की मुद्रा में है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने पिछले दिनों कहा था कि दुनिया में अमेरिका का प्रभुत्व समाप्त हो रहा है। उनके इस बयान की भारत में नव-नियुक्त चीनी राजदूत ने प्रशंसा की थी। इस बीच यह भी रिपोर्ट आई की चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है। वर्ष 2024 भारत-चीन संबंधों को पटरी पर लाने वाला वर्ष साबित हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी यदि फिर सत्ता में आते हैं तो वह वुहान और महाबलीपुरम शिखर वार्ताओं जैसी कोई पहल कर सकते हैं।
अगली ब्रिक्स शिखर वार्ता में मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच शिखर वार्ता संभावित है। पुतिन यह भी प्रयास कर सकते हैं कि इस दौरान तीनों देशों के नेताओं के बीच शिखर वार्ता भी आयोजित हो। भारत और चीन के नेता यदि शिखर वार्ता करते हैं तो यह महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम होगा। नई विश्व व्यवस्था में ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। भारत भी इन संगठनों का सदस्य है। लेकिन इन संगठनों पर रूस और चीन का प्रभाव पहले से कहीं अधिक बढ़ गए हैं। भारत को नई परिस्थितियों में अपनी भूमिका का निर्धारण करना होगा। चीन ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में उभरने के लिए बहुत सक्रिय है। रूस और चीन के संयुक्त वक्तव्य में भी ग्लोबल साउथ को केंद्र में रखा गया है। भारत स्वयं को ग्लोबल साउथ का स्वाभाविक नेता मानता है। लेकिन अपनी आर्थिक और सैनिक क्षमताओं के कारण चीन अपना प्रभाव लगातार बढ़ा रहा है।
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