जमीन धंसाव : अंधाधुंध विकास से बचके

Last Updated 14 May 2024 02:10:26 PM IST

पश्चिमी राजस्थान में घटित जमीन में धंसाव की हालिया दो घटनाओं ने समूचे देश का ध्यान आकर्षित किया है।


जमीन धंसाव : अंधाधुंध विकास से बचके

सोलह अप्रैल को राजस्थान के बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील के सहजरासर गांव में एक खेत का लगभग डेढ़ बीघा हिस्सा जमीन में अचानक धंस गया। इस घटना के कारणों के विषय में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, जैसे भूगर्भीय प्लेटों में हलचल का होना एवं इस क्षेत्र में व्याप्त विशाल जल राशि के दोहन से उत्पन्न हुए वैक्यूम का लगातार कम होना। किंतु भारतीय भू सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिक जिस संभावित कारण को सर्वाधिक मान रहे हैं वह है-थार के मरु स्थल के नीचे प्रवाहित सरस्वती नदी के जल के सूखने से उत्पन्न हुए वैक्यूम का लगातार कम होना।

इसी तरह की घटना सात मई को बाड़मेर के नागाणा क्षेत्र में घटित हुई है। यहां तेल के कई कुएंहैं, जिनसे क्रूड ऑयल का उत्पादन हो रहा है। इस क्षेत्र में मंगला टर्मिंनल के वेल पेड 3 से 7 के बीच में करीब डेढ़ से दो किलोमीटर लंबी जमीन में दरार आई है। यहां भी जमीन से भारी मात्रा में तेल के दोहन से उत्पन्न हुए रिक्त स्थान के कारण इस घटना का होना माना जा रहा है। वर्ष 2000 के बाद इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। पूर्व में कोलायत में ऐसे ही जमीन का धंसाव हुआ है। इस तरह की घटनाएं भविष्य में किसी बड़ी भूगर्भीय हलचल के होने की ओर इशारा कर रही हैं, जो चिंता का विषय है। ऐतिहासिक तथ्य है कि सरस्वती नदी राजस्थान में थार के मरु स्थल से होकर बहती थी जो कालांतर में लुप्त हो गई।

इसके पश्चात जीआईएस डाटाबेस के आधार पर इसको पुनर्जीवित करने के अभियान की शुरुआत ‘प्रोजेक्ट सरस्वती’ के तहत  हुई। सैटेलाइट इमेज दिखाती है कि सरस्वती नदी की घाटी हरियाणा में कुरुक्षेत्र, कैथल, फतेहाबाद और सिरसा में समाहित है, जबकि राजस्थान में यह नदी श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ और थार के मरु स्थल से होते हुए खम्बात की खाड़ी तक जाती है। बीकानेर और बाड़मेर में हुई घटनाएं सरस्वती नदी घाटी की दिशा में ही घटित हुई हैं। साल 1998 में मिशन सरस्वती योजना के तहत इस क्षेत्र में कई बोरवेल खोदे गए थे जिनसे स्वत: ही पानी निकलता है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने इनसे निकलने वाले  पानी को तीन हजार से चार हजार साल पुराना होने का दावा किया है। इस क्षेत्र में जमीन के नीचे मीठे पानी की लगभग 40-50 मीटर मोटी परत है।

जमीन के नीचे बहती नदी जब सूखने लगती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है उन स्थानों पर तालाबनुमा और झीलनुमा जलीय  स्रेत रह जाते हैं। इस क्षेत्र के आस पास सौ से दो सौ किलोमीटर की परिधि के क्षेत्र में किसानों द्वारा पानी दोहन हो रहा है, जिससे पाताल में लगातार वैक्यूम बन रहा है। जिन स्थानों पर यह स्थिति बन रही है उन रिक्त स्थानों पर जमीन बैठने लगती है। बीकानेर में जमीन धंसने से हुआ लगभग 82 फुट गहरा गड्ढा इसी के परिणामस्वरूप बनता प्रतीत हो रहा है जो लगातार गहरा होता जा रहा है। बाड़मेर में जिस स्थान पर जमीन में दरार आई है वहां ऑयल एंड गैस प्लांट है। इस घटना के कारणों के संबंध में विशेषज्ञों द्वारा प्रथम दृष्ट्या यह आशंका जताई जा रही है कि तेल निकालने के लिए होने वाली ड्रिलिंग के चलते लगभग दो किलोमीटर जमीन में दरार आई है, जबकि कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि यहां कई तेल के कुएं हैं, जिनसे दशकों से क्रूड ऑयल का दोहन हो रहा है, इससे आस पास के क्षेत्र में लगातार वैक्यूम बन रहा है। इस कारण से भी दरार का बनना माना जा रहा है। अत: यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की भूमि  धंसाव एक मानव प्रेरित घटना है। विभर में भूमि धंसाव के सभी मामलों में लगभग 70 प्रतिशत मानवीय गतिविधियों के कारण होते हैं, जिसमें भूजल निष्कर्षण 60 प्रतिशत है।

उपरोक्त घटनाओं ने भविष्य के लिए अत्यंत चिंताजनक स्थिति उत्पन्न कर दी अत:इन स्थितियों से निपटने के लिए हमें अनुकूल समाधान निकालने होंगे जो इस प्रकार हो सकते हैं-भूजल निष्कर्षण कम करना, जल संरक्षण को बढ़ावा देना और भूजल पुनर्भरण को लागू करना इत्यादि। भूजल पुनर्भरण में कृत्रिम पुनर्भरण जैसी विभिन्न तकनीकों के माध्यम से भूजल संसाधनों को फिर से भरना शामिल है। इस प्रक्रिया का उपयोग जलभृतों में पानी की मात्रा बढ़ाने, भूजल की गुणवत्ता में सुधार करने और अत्यधिक भूजल दोहन के कारण होने वाली भूमि धंसाव को रोकने के लिए किया जाता है।

यह न केवल भूमि धंसाव को रोकती है, बल्कि सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए पानी का एक वैकल्पिक स्रेत भी प्रदान कर सकती हैं और साथ ही भूजल की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकती हैं। पर्याप्त संख्या में वृक्षारोपण करके भी इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ, आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए जल संसाधनों का उपयोग करना होगा। ‘सतत विकास’ की अवधारणा को अपने जीवन में अपनाने के साथ ही ‘जल ही जीवन है’ इसे संस्कार के रूप में आत्मसात करना होगा तब जाकर हम एक सुरक्षित भविष्य की कल्पना कर सकते हैं।

डॉ. हंसा मीना


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