बुजुर्ग आबादी : संजीदगी से सोचना होगा
हाल में आई एशियाई विकास बैंक की रिपोर्ट भारत सहित एशियाई देशों में होने वाले जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को ही रेखांकित नहीं करती, बल्कि बुजुर्गों की बढ़ती संख्या की चुनौतियों के प्रति भी सजग करती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित एशियाई देशों में बुजुर्गों की संख्या और अनुपात में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
बुजुर्ग आबादी : संजीदगी से सोचना होगा |
भारत में आर्थिक-सामाजिक प्रगति से जीवन की गुणवत्ता में सुधार होने से जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष से अधिक हो गई है। वर्तमान में भारत में बुजुर्गों की आबादी 10 प्रतिशत से अधिक है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के अनुसार, 2050 तक बुजुर्गों की संख्या कुल संख्या का 19.5 प्रतिशत तक होने का अनुमान है। रिपोर्ट यह भी उल्लेख करती है कि 2031-40 के दौरान भारत में उम्रदराज आबादी से आर्थिक विकास पर बहुत कम प्रभाव होगा क्योंकि इस दशक में भी युवा आबादी अधिक ही रहेगी। लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी ऑफ इंडिया 2021 की रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि बुजुर्ग आबादी का एक बड़ा हिस्सा पुरानी बीमारियों, कार्यात्मक सीमाओं, अवसादग्रस्त लक्षणों और कम जीवन संतुष्टि से पीड़ित है।
आयु बढ़ने के साथ बुजुर्गों की दैनिक गतिविधि देखभाल की जरूरतें भी बढ़ने लगती हैं। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण बढ़ने से परिवारों का आकार छोटा होता जा रहा है, जिससे बुजुर्गों की देखभाल और भी मुश्किल होती जा रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुसार, 2017 में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 43 चिकित्सक थे, जबकि शहरी क्षेत्रों में 118 चिकित्सक। ऐसे में भारत में वृद्धों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच चुनौती है। तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए व्यापक दीर्घकालिक देखभाल रणनीतियां डिजाइन करने की आवश्यकता है जिसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य बीमा है।
भारत में अभी तक स्वास्थ्य बीमा लगभग 20 प्रतिशत आबादी को ही कवर करता है। स्वास्थ्य बीमा कंपनियां अपने उत्पाद मुख्य रूप से उच्च आय समूहों के लिए डिजाइन करती हैं। मध्य आय वर्ग के अधिकांश लोगों के पास बीमा सुविधा नहीं है। शहरी और ग्रामीण आबादी में भी काफी भिन्नता है। भारत में बुजुर्गों की पहुंच स्वास्थ्य बीमा तक कम होने का प्रमुख कारण यह सुविधाजनक होने की बजाय पेचीदा चुनौती है। पॉलिसियों में कम कवरेज, उच्च प्रीमियम और लंबी प्रतीक्षा अवधि जैसी अनेक बाधाओं एवं जेब पर पड़ने वाले भारी बोझ के कारण अधिकांश बुजुर्ग स्वास्थ्य बीमा को बीच में ही छोड़ देते हैं। हाल में इस दिशा में सार्थक पहल करते हुए बीमा नियामक-आईआरडीएआई-ने स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने वालों के लिए 65 वर्ष की आयु सीमा को हटा दिया है, जिससे न केवल बीमा क्षेत्र के बाजार का विस्तार होगा, बल्कि स्वास्थ्य देखभाल खचरे से पर्याप्त सुरक्षा भी मिलेगी। यद्यपि सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना एवं आयुष्मान भारत जैसी योजना से निम्न आय वर्ग को कैशलेस स्वास्थ्य सेवा से स्वास्थ्य कवरेज में सुधार हुआ है।
इसके बावजूद बुजुर्ग आबादी का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य बीमा से वंचित है। भविष्य की जरूरतों को देखते हुए विचार इस बात पर होना चाहिए कि अधिक समावेशी और सुलभ स्वास्थ्य देखभाल पारिस्थितिकी तंत्र को किस प्रकार विकसित किया जाए कि सीनियर सिटीजन को अर्थव्यवस्था के लिए अधिक उत्पादक बनाने की नई शुरुआत की जा सके। एडीबी के मुख्य अर्थशास्त्री अल्बर्ट पार्क का मानना है कि वृद्धों से अतिरिक्त उत्पादकता के रूप में प्राप्त कर सकल घरेलू उत्पाद को औसतन 0.9 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
नीति आयोग के अनुसार स्वस्थ और शिक्षित वृद्ध लोगों को अधिक उत्पादक बनाने, उनकी अप्रयुक्त कार्य क्षमता से प्राप्त होने वाला लाभांश या अतिरिक्त उत्पादकता से अर्थव्यवस्थाओं के लिए सकल घरेलू उत्पाद में 1.5 प्रतिशत के बराबर वृद्धि की जा सकती है। भारत में लगभग एक तिहाई बुजुर्ग ही काम कर रहे हैं। सरकार की ओर से उचित हस्तक्षेप द्वारा बुजुर्गों को विभिन्न क्षेत्रों में अपने अनुभव और विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए एक मंच प्रदान कर अर्थव्यवस्था में इनके योगदान को बढ़ाया जा सकता है। भविष्य की इस चुनौती के लिए व्यापक, एकीकृत नीति बनानी होगी।
भारत में सामुदायिक सहभागिता परियोजनाएं शुरू करने की आवश्यकता है और सामाजिक भागीदारी में डिजिटल और भौतिक, दोनों बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। बुजुर्गों का सशक्तिकरण मौजूदा कानूनी सुरक्षा उपायों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता और मौजूदा कल्याण और रखरखाव अधिनियम को मजबूत करने जैसे कानूनी सुधार सुनिश्चित करने से भी स्थिति को सुखदायी बनाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021-2030 को स्वस्थ उम्र बढ़ने का दशक घोषित किया गया है। वृद्ध लोगों, उनके परिवारों और जिस समुदाय में वे रहते हैं, उनके जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में मिलकर काम करना होगा। जिससे वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके जिससे उन्हें भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल और यहां तक कि मनोरंजन के अवसर जैसी विभिन्न बुनियादी सुविधाएं मिल सकें।
विभिन्न शहरों में समाजसेवियों को पहल करते हुए एक वरिष्ठ नागरिक डिजिटल मंच बनाया जाना चाहिए जिससें बुजुर्ग लोग अपनी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को साझा कर सकें और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर जानकारी और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें जिनका वे दिन-प्रतिदिन सामना करते हैं। अब चिकित्सा और सामाजिक आयामों के अलावा वरिष्ठ देखभाल के विशेष आयामों के बारे में सोचना शुरू करने का समय आ गया है। यही समय है जब उम्र बढ़ने को गरिमा से प्रेरित, सुरक्षित और उत्पादक बनाने पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए। बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, भलाई और देखभाल पर अधिक जोर देने की जरूरत है।
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