विरासत कर : हमारे लिए व्यावहारिक नहीं
संसदीय चुनाव के द्वितीय चरण के दौरान भारतीय ओवरसीज कांग्रेस अध्यक्ष सैम पित्रोदा के उस बयान को लेकर देशव्यापी बहस छिड़ गई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका में जो उत्तराधिकार कानून है, उसकी तर्ज पर भारत में भी कानून बनाए जाने पर विचार होना चाहिए।
विरासत कर : हमारे लिए व्यावहारिक नहीं |
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे कांग्रेस पार्टी की शहरी नक्सलवादी विचारधारा एवं जनता को लूटने की योजना करार दिया है।
उन्होंने इसकी व्याख्या को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि महिलाओं का मंगलसूत्र, उनकी जमा पूंजी, सोने-चांदी-गहने और लोगों की मेहनत की कमाई छीन कर कांग्रेस उन लोगों में बांटना चाहती है जो घुसपैठिये हैं, जिनके बहुत से बच्चे हैं। इशारा अल्प समुदाय की ओर है, जिसके लिए कहा जाता है कि कांग्रेस उन्हें अपने वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती रही है। मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने वक्तव्य दिया था कि भारत की संपत्ति पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। उस समय इस वक्तव्य पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। संसदीय चुनाव में यह मुद्दा फिर से उठ गया है। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि इस बयान को तोड़-मरोड़ कर रखा जा रहा है, मनमोहन सिंह का बयान पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण के रूप में देखा जाना चाहिए। पित्रोदा के बयान से भी कांग्रेस पार्टी अपने आप को अलग करने की कोशिश में है, इसे वह उनका निजी बयान मानती है न कि कांग्रेस का आधिकारिक बयान।
मनमोहन सिंह का बयान तो देश के बहुसंख्यक वर्ग के हितों पर सीधा प्रहार था जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। राममन्दिर के मसले पर भी कांग्रेस का जो रुख रहा उससे भी इस भावना को बल मिलता है। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में कहीं भी उत्तराधिकार कानून और उसके फलस्वरूप संपत्ति के पुनर्वितरण की बात खुले रूप से नहीं की गई है किंतु परोक्ष रूप में पार्टी की मंशा संदेह के घेरे में है। घोषणापत्र में एक पुस्तक ‘भारत में आमदनी और संपत्ति की असमानता 1922-2023: अरबपतियों का बढ़ता राज’ का जिक्र है जिसे थॉमस पिकेटी और उनके सहयोगियों ने लिखा है। इस पुस्तक में कहा गया है कि भारत में आर्थिक विषमता चरम सीमा पर है। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 1991 में मात्र एक अरबपति थे, 2011 में 52 और 2022 में 162 हो गए। जातिगत जनगणना पर कांग्रेस पार्टी का जोर और लोगों की संपत्ति के एक्सरे कराने के बयान इस संदेह की पुष्टि करते हैं कि यदि पार्टी शासन में आई तो संपत्ति के पुनर्वितरण की योजना बना सकती है।
कांग्रेस अध्यक्ष समाज में संपत्ति के वितरण में असमानता की बात बार-बार दोहराते रहे हैं, और अमीरों का धन कमजोर वर्ग और अल्पसंख्यकों में वितरित करने की बात करते रहे हैं। आजादी के बाद लगभग 6 दशकों तक कांग्रेस का शासन रहा तब यह बात नहीं उठाई गई, समाज में असमानता दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पिछले 10 वर्षो के शासन में देश का आर्थिक विकास जितनी तेजी से हुआ उतना पहले कभी नहीं हुआ। इस बीच, संपत्ति का वितरण लोककल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से हुआ है, लोगों की आमदनी बढ़ी है, जीवन स्तर उठा है, भारत के गरीबी उन्मूलन के प्रयास की सफलता की विश्व बैंक ने भी सराहना की है। अर्थव्यवस्था के विकास का लाभ नीचे तक गया है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि यह सच है कि असमानता है और उसे कम करने के लिए संवैधानिक तरीकों से प्रयास करना चाहिए।
भारत में 1953 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संपत्ति कर विधेयक (इस्टेट ड्यूटी एक्ट) लागू किया था जिसमें बड़ी संपत्ति छोड़कर मरने वालों की संपत्ति में उनके उत्तराधिकारियों के अलावा सरकार का हिस्सा भी होता था जो 85% तक जा सकता था। इस कानून का अभिप्राय संपत्ति के केंद्रीयकरण को रोकना था किंतु यह कानून सफल नहीं हो सका। इसे लागू करने में जो प्रशासनिक खर्च आता था वह उस रकम से भी कम होता था जो इस कर से सरकार को मिलती थी। मार्च, 1985 में राजीव गांधी की सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने यह कानून निरस्त कर दिया। इसके निरस्तीकरण के कारण को लेकर भी विवाद उठ खड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि यह इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति को इस कर से बचाने के लिए ही निरस्त कर दिया गया था। इस विवाद पर कांग्रेस का कहना है कि इंदिरा गांधी ने 1970 में ही इलाहाबाद में अपनी पैतृक संपत्ति जवाहरलाल नेहरू स्मृति फंड को दे दी थी।
संपत्ति कर दुनिया के कई देशों में लगाया जाता है। अमेरिका के 6 राज्यों में संपत्ति कर लागू है, सामान्यत: यह उन लोगों को प्रभावित करता है जिनकी संपत्ति 10 लाख डॉलर से अधिक है। संपत्ति की मार्केट में जो कीमत होती है उसके ऊपर टैक्स लगता है जो 50- 55 प्रतिशत है। फ्रांस में संपत्ति कर दर 50-60 प्रतिशत है। इंग्लैंड में डोमिसाइल के आधार पर संपत्ति कर निर्धारित किया जाता है। जापान में 10-70 प्रतिशत तक संपत्ति कर की व्यवस्था है। बेल्जियम में यह 80% तक जा सकता है, साउथ कोरिया में 50% और स्पेन में 7.65-34 प्रतिशत तक संपत्ति कर लगाया जाता है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चीन में संपत्ति कर का कोई प्रावधान नहीं है।
भारत में संपत्ति कर दोबारा लगाया जाए या नहीं, यह विचार का विषय है। आर्थिक विषमता दुनिया के सभी देशों, चाहे वह पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत हों या किसी और व्यवस्था में हों, में मौजूद है। समाज में असमानता सदियों से चली आ रही सामाजिक, राजनीतिक प्रशासनिक और आर्थिक व्यवस्था के कारण होती है, उसे पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं है। मार्क्सवादी, माओवादी और नक्सलवादी व्यवस्थाओं में भी यह समाप्त नहीं की जा सकी। भारत जैसे विकासशील जनतांत्रिक देश में असमानता कम करने के लिए संवैधानिक तरीकों से ही आगे बढ़ा जा सकता है। तेजी से आर्थिक विकास और प्रशासनिक व्यवस्था, जिसमें संपत्ति का केंद्रीयकरण कम किया जा सके, लक्ष्य की प्राप्ति के साधक हो सकते हैं।
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