सामयिक : बांध, बैराज और बाढ़
भारत में बरसात और हिमपातों से मिले सालाना लगभग 400 मिलियन हेक्टर मीटर पानी में से 90 प्रतिशत से ज्यादा बिना प्रबंधित उपयोग के बह जाता है।
सामयिक : बांध, बैराज और बाढ़ |
बेकार बहता अप्रबंधित बरसाती पानी नगरों महानगरों के भीषण जलप्लावनों का कारण भी बनता है। इसलिए भी बरसाती जल का संग्रहण व नियंत्रित प्रबंधन भी जरूरी है। इन दोनो उद्देश्यों में बांध व बैराज हमारी मदद करते हैं। किंतु इस बार की पैंतालीस वर्षो के रिकार्ड को धराशायी करने वाली यमुना जी की बाढ़ जब दिल्ली में लाल किला, आगरा में ताजमहल परिसर और मथुरा के मंदिरों को छूती रही तो अधिकांश मामलों में बाढ़ का कहर और व्यापकता के लिए बैराज और बांधों के मत्थे काफी दोष मढ़ा गया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का तो आरोप यह था कि दिल्ली यमुना जल में हरियाणा के साजिश के तहत डूबी। उनका आरोप था कि हथिनीकुंड बैराज से तीन तरफ दिल्ली, ईस्ट कैनाल व वेस्ट कैनाल के लिए पानी निकल सकता है, किन्तु दिल्ली में बाढ़ की स्थिति होने पर भी हरियाणा ने हथिनीकुंड से उप्र की तरफ जाने वाली ईस्ट कैनाल में पानी न छोड़ जानबूझ कर 12 व 13 जुलाई 2023 को पानी दिल्ली की तरफ छोड़ा था। हरियाणा का जबाब था जब हथिनीकुंड बैराज से एक लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ना हो तो वह कैनालों में नहीं छोड़ा जा सकता है। भारी जलराशि रोकने से पीछे वालों को खतरा होता है इसलिए पानी सीधे यमुना में छोड़ा गया। बाढ़ से खुद हथिनीकुंड को भी नुकसान होने की खबरें भी आ रही हैं।
जब दिल्ली में यमुना ने अपने जल स्तर का 45 साल पुराना रिकार्ड तोड़ा तो केजरीवाल ने गृहमंत्री अमित शाह को भी पत्र लिख यह मांग की थी कि हथिनीकुंड बैराज से पाना छुड़वाना रोका जाए, मगर केजरीवाल जब हरियाणा को दोषी बना रहे थे तो प्रतिपक्षियों ने उनको तो बांधों और बैराज के अंतर समझने की भी सीख दी थी। संकेत था कि बैराज बांध जलाशयों की तरह न तो जल संग्रहण की क्षमता रखते हैं और न उसके लिए बनाए जाते हैं। संभवत: इस सीमा को समझते हुए उन्नीस जुलाई को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का यह बयान भी आया है कि हरियाणा सरकार सक्रियता से हथिनीकुंड बैराज के पीछे एक बांध बनाने पर विचार कर रही है। इसके लिए वह हिमाचल सरकार से भी बात करेगी। इससें हथिनीकुंड बैराज की ज्यादा पानी न रोके रख सकने की समस्या से भी बचा जा सकेगा। समस्या समाधान के लिए निगाह निर्माणाधीन लखवाड़ व्यासी व किसाऊ जैसे बांधों पर भी है। हालांकि दिल्ली तक यमुना के राह में पहले से ही आसन, डाकपत्थर, गोकुल, हथिनीकुंड, ओखला, ताजेवाला, वजीराबांद जैसे बैराज हैं व ऐसे ही कुछ बांध भी हैं। जिन-जिन नदियों में बैराज व बांधों से अवरोधक बन जाते हैं। उन नदियों में बैराजों के बाद पहुंचने वाली जलराशि बैराज नियंत्रकों के मुट्ठी में हो जाती है। बैराजों के नियंत्रक चाहें तो वो आगे की नदियों को लगभग जलविहिन कर दें या चाहें तो बाढ़ में भी उनमें पानी छोड़ उनकी घातकता बढ़ा दें।
बैराजों से आपेक्षित कार्यवाहियां मुख्यत: हम छोड़ने व आवंटन से परिभाषित कर सकते हैं। जब बैराज से बाढ़ के पानी निकालने की अफरा-तफरी होती है तो हथेली से गरम आलू की तरह पानी छोड़ा जाता है क्योंकि बांधों की तरह बैराजों में जलाशय नहीं बनाए जाते हैं। जब पानी की तंगी होती है तो पानी को अलग नहरों या राहों से आवंटित किया जाता है। उदाहरणार्थ गर्मियों में दिल्ली सरकार हरियाणा से अपने लिए बढ़ा पानी का आवंटन चाहती है व बाढ़ में वहां बैराज से कम पानी का छोड़ा जाना चाहती है । सूखे के मौसम में ताजेवाला से पानी न छोड़े जाने पर ताजेवाला और दिल्ली के बीच के कुछ कुछ हिस्सों में यमुना लगभग जलाशून्य हो जाती है। बैराजों से लिफ्ट परियोजनाओं में भी पानी पहुंचाने में सहायता मिलती है। नि:स्संदेह बांध बाढ़ के समय भी अपने जलाशयों में पानी रोक व बाद में धीरे-धीरे वापस नदी में छोड़ बाढ़ के फैलाव, उनसे होने वाली क्षति व समय को टालने में सहायक होते हैं, किन्तु अधिकांश बांध मुख्यत: ऊर्जा व कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के लक्ष्यों को लेकर बनते हैं। इन उदाहरणों की भी कमी नहीं है जब इनसे छोड़े गए पानी के कारण बाढ़ का ज्यादा कहर टूटता है। 18 जुलाई 2023 को जीवी बांध श्रीनगर गढ़वाल द्वारा पहली खेप में अलकनंदा नदी में तीन हजार क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद हरिद्वार में गंगा नदी का पानी खतरे के निशान के और नजदीक पहुंच गया था। इससे हरिद्वार में भीमगोडा बैराज का दस नंबर गेट भी क्षतिग्रस्त हो गया था।
कई बार बांध बैराज की इंजीनियरिंग सुरक्षा के लिए भी बांध बैराजों से पानी छोड़ना पड़ जाता है। 11 अगस्त 1979 को लगातार बरसात के चलते मच्छू बांध टूटने के बाद मौरवी में भयंकर बाढ़ आ गई थी। तब 1500 से 25000 तक लोगों के मरने की बात की जा रही है। पूरा मौरबी शहर ही तबाह हो गया था। अभी ही 15 जुलाई 2023 को यमुना के बाढ़ में बागपत का सुभानपुर गांव के पास का अलीपुर बांध टूट गया था। पचास घंटों के मरम्मत के काम से उसमें फिर से पानी रुकने लायक स्थिति लाई जा सकी थी।
लोगों का तर्क होता है कि मैदानों को बाढ़ से बचाने के लिए और ज्यादा बांध बनाए जाने चाहिए। संभवतया मुख्यमंत्री खट्ट की सोच में भी यह हो किंतु बांध के कारण नदियों में प्रचुर मात्रा में पानी के अभाव और अविरल प्रवाह में अवरोधों के कारण स्वत: प्रदूषण मुक्ति पाने की नदियों की ताकत में भी कमी आई है। बांध बैराजों का मसला ऐसा है कि न निगलते बने न उगलते। ऊपरी क्षेत्रों राज्यों या देशों में बांध बनने पर आरोप लगाया जाता है कि हमारा पानी रोक दिया गया है और जब वहां से पानी छोड़ दिया जाता है तो कहा जाता है कि हमारे यहां बाढ़ की स्थितियां पैदा कर दी गई हैं। यदि बंद रहे तो पीछे के क्षेत्रों में जलप्लावन की समस्या बढ़ाएं। आगे खुले तो बाढ़ खेतों बस्तियों को जलमग्न कर दे। भारत नेपाल या भारत बांग्ला देश के बीच भी ऐसे सवाल उभरते रहे हैं। इसी 15-16 जुलाई को नेपाल ने गिरजा, सरयू व शारदा बैराज से दो पालियों में पांच लाख क्यूसेक पानी छोड़ा था तो सिंचाई विभाग के अनुसार दोहरीघाट व अन्य इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा था।
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