रेपो दर : रिजर्व बैंक से उम्मीदें
विकास की रफ्तार कायम रखने के लिए जरूरी है कि रेपो दर में और बढ़ोतरी नहीं की जाए, लेकिन विगत 4 महीनों तक खुदरा महंगाई के लगातार घटने के बाद जून, 2023 में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज उछाल के चलते जून महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) या खुदरा महंगाई दर 4.81 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई, जबकि मई में यह 4.31 प्रतिशत थी।
रेपो दर : रिजर्व बैंक से उम्मीदें |
वहीं, अप्रैल, 2023 में यह 4.7 प्रतिशत थी, जबकि मार्च में 5.66 प्रतिशत रही थी। हालांकि,जून महीने में भी खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक के सहनशीलता स्तर 6 प्रतिशत से नीचे है, लेकिन इस वर्ष कई राज्यों में तेज बारिश से खरीफ की फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है, और आगामी महीनों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है। अल नीनो का खतरा अभी बना हुआ है। ऐसे में खुदरा महंगाई भी बढ़ने के आसार हैं। उल्लेखनीय है कि सीपीआई बॉस्केट में लगभग आधी हिस्सेदारी खाद्य पदाथरे की होती है।
रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करना पिछले साल मई में शुरू किया था। हालांकि, इस साल अप्रैल-जून में लगातार दो द्विमासिक मौद्रिक समीक्षाओं में रेपो दर 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखी गई थी, जिसके कारण बैंकों ने भी कर्ज दर में बदलाव नहीं किया। उम्मीद है कि 10 अगस्त को घोषित की जाने वाली रेपो दर को भी यथावत रखा जाएगा ताकि कर्ज की लागत स्थिर बनी रहे और विकास दर की तेजी बरकरार रहे, लेकिन बताना समीचीन होगा कि अप्रैल-जून महीने की द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा के समय देश में खुदरा महंगाई की स्थिति बेकाबू नहीं थी और इसी वजह से रेपो दर को यथावत रखा गया था।
रिजर्व बैंक मुख्य तौर पर रेपो दर में बढ़ोतरी करके महंगाई से लड़ने की कोशिश करता है। जब रेपो दर अधिक होती है तो बैंकों को रिजर्व बैंक से महंगी दर पर कर्ज मिलता है, जिसके कारण बैंक भी ग्राहकों को महंगी दर पर कर्ज देते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता कम हो जाती है, और लोगों की जेब में पैसे नहीं होने से वस्तुओं की मांग में कमी आती है, और वस्तु-उत्पादों की कीमत अधिक होने के कारण इनकी बिक्री में गिरावट आती है, जिससे महंगाई दर में नरमी देखी जाती है।
इसी तरह अर्थव्यवस्था में नरमी रहने पर विकासात्मक कायरे में तेजी लाने के लिए बाजार में मुद्रा की तरलता बढ़ाने की कोशिश की जाती है, और इसके लिए रेपो दर में कटौती की जाती है, ताकि बैंकों को रिजर्व बैंक से सस्ती दर पर कर्ज मिले और सस्ती दर पर कर्ज मिलने के बाद बैंक भी ग्राहकों को सस्ती दर पर कर्ज दे सकें। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार कोरोना महामारी, भू-राजनीतिक संकट, महंगाई, वैिक अर्थव्यवस्था में नरमी के बावजूद बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (एनबीएफसी) मजबूत बने हुए हैं। बैंकिंग क्षेत्र में लगातार सुधार आ रहा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून, 2023 के दौरान 12 सरकारी बैंकों का मुनाफा बढ़कर 34,774 करोड़ रु पये पर पहुंच गया जबकि भारतीय स्टेट बैंक का मुनाफा 178.24 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 16,884.29 करोड़ रु पये रहा।
वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था, लेकिन यह 6.1 प्रतिशत रहा। 2022-23 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में सुधार दर्ज हुआ है। 2022-23 के दौरान एमपीसी ने पहले जीडीपी के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था, जो वास्तविकता में 7.2 प्रतिशत रही। अभी रिजर्व बैंक का लक्ष्य विकास और महंगाई के बीच संतुलन बनाना है, ताकि आम आदमी को परेशानी न हो और विकास की रफ्तार में भी तेजी आए। इसलिए, खुदरा महंगाई में कमी लाना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं करने से आगामी महीनों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़ सकती है।
बता दें कि महंगाई की वजह से जीडीपी वृद्धि दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अब फिर से खुदरा महंगाई उफान पर है। कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी महीनों में भारत की विकास दर नरम रह सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है। बेशक, रेपो दर यथावत रखने से कर्जदारों को राहत मिलेगी तो विकास की रफ्तार भी तेज होगी, लेकिन रिजर्व बैंक चाहता है कि खुदरा महंगाई पर पहले नियंतण्रकिया जाए क्योंकि इससे लंबे समय में अर्थव्यवस्था में मजबूती आती है। लिहाजा, अनुमान है कि रिजर्व बैंक 10 अगस्त को रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की बढोतरी कर सकता है, जिससे बैंक कर्ज दर में इजाफा करेंगे और कर्ज महंगा होने से उत्पादों की मांग में कमी आएगी, जिससे खुदरा महंगाई में कमी आएगी। इससे लोगों की खर्च करने की क्षमता भी कम होगी, जिसकी वजह से आधारभूत संरचना को मजबूत करने में निजी व्यय में कमी आएगी, जो पहले से ही कम है। विकास की गति कम होने से कर संग्रह में भी कमी आ सकती है।
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