हरियाणा में हिंसा का सच

Last Updated 08 Aug 2023 01:31:49 PM IST

नूंह मेवात की हिंसा को जो भी गहराई से देखेगा वह चिंतित और भयभीत हो जाएगा। मैं दो साथियों सामाजिक कार्यकर्ता भारत रावत एवं जमात उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना सोहेब कासमी के साथ कर्फ्यू तथा भय के बीच उन सारे स्थानों पर गया जहां हिंसा हुई थी।


हरियाणा में हिंसा का सच

क्षेत्र के लोगों से मिलने की कोशिश की, जिनसे बातचीत हो पाई उससे स्थिति को समझा। धार्मिंक यात्रा को लेकर इससे पहले इस तरह की हिंसा भारत में नहीं हुई थी। जो लोग उसे सामान्य तनाव या दो पक्षों के टकराव के रूप में देख रहे हैं, उन्हें वहां जाकर सच्चाई देखनी चाहिए। जलाभिषेक यात्रा नल्हर महादेव मंदिर से निकलकर फिरोजपुर झिरका जाने वाली थी। नल्हर महादेव मंदिर अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में है। वहां से निकलने का एक ही मार्ग है, जो नूंह शहर की ओर आती है। वहां से आगे दो तरफ रास्ते फूटते हैं जिनमें एक मेडिकल कॉलेज होते हुए नूंह शहर जाती है और दूसरा सीधे नूंह शहर से मुख्य हाइवे तक।

मंदिर से काफी दूर तक बस्ती नहीं है। यात्रा निकलने के 50 गज दूर आपको वाहनों एवं अन्य सामग्री के जलने के अवशेष दिखाई देने लगेंगे। जब वहां बस्ती है ही नहीं तो इतने वाहनों के जलाने का कारण क्या हो सकता है? पता चला कि यात्रा आगे बढ़ी, कुछ लोग आगे निकल गए,कुछ बीच में थे और बीच वाले से हमले शुरू हो गए थे। उसके बाद लोगों को जान बचाने के लिए वापस मंदिर की ओर दौड़ना पड़ा। यात्रा में महिलाएं और बच्चे भी थे। पीछे पहाड़ से भी गोलियां चलाए जाने की बात बताई जा रही है। कुछ जो आगे निकल गए उन पर भी आगे हमले हुए। जिस जगह अभिषेक को गोली मारने और उनका गला काटने का समाचार आया वह थोड़ा आगे मेडिकल कॉलेज का चौक है। वहां जाने पर समझ आ जाता है कि मंदिर में जान बचाकर छिपे लोगों को निकालने में पुलिस को बहुत ज्यादा समय क्यों लगा होगा?

मंदिर के आगे खाली जगह या उससे आगे की बस्तियों से हमले तथा पुलिस के साथ मुकाबले इतने सघन थे कि किसी को वहां से ले जाना खतरे से भरा था। पुलिस ने कुछ घंटे हिंसक तत्वों को परास्त करने की कोशिश की लेकिन देर होने पर फायरिंग कवर देते हुए थोड़ी-थोड़ी संख्या में पुलिस पहरे के बीच पुलिस वाहनों में धीरे-धीरे निकालने निकालना शुरू किया। इसमें देर रात हो गई। नूंह में 80 प्रतिशत मुस्लिम तथा 20 प्रतिशत हिंदू आबादी है। कफ़्यरू और तनाव के कारण वहां नेताओं को तलाशना और मिलना कठिन है। नूंह शहर में आम आदमी पार्टी के नेता फखरु दीन अली अपने घर में मिले। उन्होंने कहा कि इस तरह हमले की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। पुलिस के साथ जिस ढंग से मोर्चाबंदी कर रहे थे, हमले और आगजनी कर रहे थे उससे साफ लगता है कि पूरी प्लानिंग की गई थी। उनका कहना था कि प्लानिंग मेवात में न होकर शायद राजस्थान के इलाके में हुई। लोगों ने कहा कि यात्रा नूंह से निकल बड़कली पहुंच जाती तो कुछ हजार लोग मर सकते थे। ध्यान रखिए, यात्रा सौ गज भी नहीं चल पाई।

नूंह शहर में भी हिंसा करने वाला समूह अलग-अलग दिशाओं में बंट गया, इससे भी मरने और घायल होने वालों की संख्या काफी कम रही। कुछ दुकानें लूटने लगे, जलाने लगे, तो कुछ बसों को रोक लोगों को उतारकर उनमें आग लगाने लगे। नूंह साइबर थाने का दृश्य भी आपको बहुत कुछ समझा देगा। एक तोड़फोड़ किए बस को चलाते हुए साइबर थाने की दीवार तोड़ी गई, पुलिस की गाड़ियां चकनाचूर की गइर्ं। हमलावरों का लक्ष्य साइबर थाने के रिकॉर्ड को खत्म करना था। मेवात पूरे देश में साइबर अपराध का सबसे बड़ा केंद्र है। पिछले दिनों ही वहां 300 से ज्यादा छापेमारी हुई, भारी संख्या में लोग पकड़े गए तथा सामग्री बरामद हुई। दूसरी ओर के कुछ वीडियो तनाव के कारण थे या यात्रा निकालने वालों ने तनाव पैदा की तो साइबर थाने पर हमले का कोई कारण नहीं होना चाहिए। सड़क पर चलती बसों से लोगों को उतारकर उनको अपमानित करना और बसों को जलाने का भी कारण नहीं हो सकता। सदर थाना और अलग पड़े जले हुए वाहनों के अवशेष देखें तो सामान्य कारों में लोहे के अलावा कुछ नहीं बचा है। इस तरह वाहनों को जलाना बिल्कुल प्रशिक्षित व प्रोफेशनल लोगों का काम है। तात्कालिक गुस्सा और उत्तेजना में वाहनों को थोड़ी क्षति पहुंच सकती है,धू-धू कर मिनटों में खाक नहीं किया जा सकता। यह बताता है कि हिंसा की बाजाब्ता तैयारी हुई, उसका प्रशिक्षण दिया गया और उसके लिए संसाधन जुटाए गए। इतनी मात्रा में पेट्रोल मिनटों या घंटों में जमाकर वितरित नहीं किया जा सकता।

नूंह से 20 किलोमीटर दूर बड़कली की स्थिति भी भयावह थी। वहां नूंह जिला भाजपा के महासचिव की तेल मिल को पूरी तरह जला दिया गया, दो गाड़ियां भी फूंक दी गई। लोगों ने बताया कि हमले 2 बजे किए गए जबकि पुलिस 12 बजे रात के बाद  पहुंची। वहां 20-22 दुकानें जली हैं, जो एक ही समुदाय के लोगों की है। लोगों ने कहा कि हम अभी भी रात में जागकर अपनी दुकानों की रक्षा करते हैं। मुख्य चौक पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कुछ जवान हैं, लेकिन सुरक्षा के लिए पुलिस नहीं है। प्रश्न है कि उतनी दूर दुकानों को निशाना क्यों बनाया गया? उतने भीषण अग्निकांड के लिए सामग्री, उतनी संख्या में लोग अचानक नहीं आ सकते। नूंह में भी एक समुदाय की ही दुकानें लूटीं गई,जलाई गइर्ं। इस तरह आप पूरी हिंसा की एक तस्वीर बनाएं तो लंबे समय की तैयारी साफ दिखाई देगी। बिना जगह-जगह बैठकों, लोगों को तैयार किए, उनको संसाधन उपलब्ध कराए तथा प्रशिक्षित किए इस तरह की हिंसा संभव नहीं है। मेवात भय व तनाव से गुजर रहा है। पुलिस प्रशासन की विफलता स्पष्ट है। दोपहर 12 बजे के थोड़े समय बाद यात्रा पर हमला हुआ। जो थोड़े पुलिस वाले साथ थे, उन्हें जान बचानी पड़ी। लोग हमलों के बीच मंदिर की ओर भागने को विवश थे। पुलिस वहां 5 बजे के आसपास पहुंची। पूरा शहर हमलावरों के नियंत्रण में था। यह स्थिति बदलनी चाहिए। जो हमले के शिकार हुए, जिनकी संपत्तियां नष्ट की गइर्ं, उन्हें तुरंत पूरा मुआवजा मिले, उनके अंदर सुरक्षा का भाव उत्पन्न हो, हिंसा करने और करवाने वालों को महसूस हो कि उनके अपराध की सजा मिलनी निश्चित है यह सब प्रशासन और सरकार का दायित्व है। इसके साथ राजनीतिक, गैर राजनीतिक, धार्मिंक, सामाजिक समूह भी दोनों समुदायों के बीच जाएं, उनके अंदर के अविास को कम करना तथा अतिवादी विचारों की ओर जा चुके युवाओं को वापस मुख्यधारा में लाना आवश्यक है।

अवधेश कुमार


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