लोकायुक्त : आखिर डरते क्यों हैं राज्य

Last Updated 08 Aug 2023 01:25:34 PM IST

अन्ना हजारे (Anna Hazare) के आंदोलन के फलस्वरूप 1 जनवरी 2014 को अस्तित्व में आए भारत के लोकपाल (Lokpal) एवं लोकायुक्त(Lokayukta) अधिनियम की धारा 63 में कहा गया था कि संसद द्वारा पारित इस अधिनियम के लागू होने के एक साल के अंदर सभी राज्यों की विधानसभाएं इस एक्ट के अनुरूप लोकायुक्त कानून बनाएंगी और उस कानून के आधार पर राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा, लेकिन 9 साल गुजर गए और देश के 28 राज्यों में से उत्तराखंड सहित 8 राज्यों ने लोकायुक्त का गठन नहीं किया।


लोकायुक्त : आखिर डरते क्यों हैं राज्य

कुछ राज्यों में लोकायुक्त संगठन में न्यायिक सदस्यों के पद खाली हैं। कुछ राज्यों ने अब तक कानून तक नहीं बनाए, जबकि सर्वोच्च न्यायालय इसके लिए राज्यों को फटकार लगा चुका है।
भ्रष्टाचार देश के सामने एक गंभीर चुनौती बन कर खड़ा है। सर्वोच्च अदालत भी कह चुका है कि भ्रष्टाचार नागरिकों के समानता और जीवन के अधिकार संबंधी संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। वास्तव में  भ्रष्टाचार निष्पक्षता, समानता और पारदर्शिता के सिद्धांतों को कमजोर करता है, जो नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। भ्रष्टाचार अक्सर सार्वजनिक संसाधनों के दुरु पयोग, रितखोरी, गबन और सत्ता के दुरुपयोग के साथ-साथ अन्य प्रकार के कदाचार को जन्म देता है।

अभी भ्रष्टाचार के मामलों में जांच कराना या न कराना शासन-प्रशासन के हाथ में है, लेकिन लोकायुक्त व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति सीधे लोकायुक्त से किसी के भी खिलाफ जांच की मांग कर सकता है। लोकपाल का डर ही था कि 1968 से लेकर 2013 तक संसद लोकपाल का कानून पास नहीं कर सकी। लोकपाल कानून बनने के 5 साल बाद केंद्र में पिनाकी चंद्र घोष को लोकपाल के तौर पर नियुक्ति हो सकी मगर उनका कार्यकाल 27 मई 2022 को पूर्ण होने के बाद भी नए लोकपाल की नियुक्ति के बिना केंद्र में प्रभारी लोकपाल से काम चलाया जा रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल इंडिया की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार लोकपाल-लोकायुक्त कानून के अस्तित्व में आने के बाद भी 28 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में से 9 ने अभी तक केंद्रीय कानून के अनुरूप या समरूप अपने लोकायुक्त कानून में संशोधन नहीं किया। देश के 28 राज्यों के साथ ही 3 केन्द्र शासित प्रदेशों से जुटाये गये इन आंकड़ों के अनुसार 8 ने लोकायुक्त का गठन नहीं किया। इन राज्यों में उत्तराखण्ड, असम, गोवा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पुडुचेरी हैं। जम्मू-कश्मीर में जो संस्था थी वह भंग है।

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के हस्तक्षेप के बाद भी उत्तराखण्ड जैसे कुछ राज्यों ने लोकायुक्त के गठन की पहल नहीं की। सन 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने 12 राज्यों  के मुख्य सचिवों कोअपने यहां यथाशीघ्र लोकायुक्तों के गठन के निर्देश दिये थे। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल की रिपोर्ट के अनुसार 22 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में सभी आवश्यक उपलोकायुक्तों (सदस्य) की नियुक्ति नहीं हुई। आज एक देश एक कानून की बात तो होती है मगर लोकायुक्त कानूनों में एकरूपता नहीं है। हिमाचल प्रदेश में जहां शिकायत दर्ज करने का शुल्क मात्र 3 रुपये है, वहीं गुजरात और उत्तर प्रदेश में यह शुल्क 2000 रुपये रखा गया है। कुछ राज्यों ने संसद द्वारा पारित लोकायुक्त कानून के मजमून को अपनाने की बजाय अपनी सुविधानुसार कानून बना दिए।

उत्तराखण्ड अपना अलग कानून बनाने का तर्क देकर मौजूदा कानून के अनुसार लोकायुक्त का गठन नहीं कर रहा है। न्यायालयों के निर्देश के बावजूद लोकायुक्त का गठन करने की बजाय राज्य सरकार समान नागरिक संहिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है जबकि केन्द्र सरकार स्वयं समान नागरिक संहिता बनाने जा रही है। अगर केन्द्र का कानून बनता है तो अनुच्छेद 254-क के अनुसार उत्तराखण्ड के कानून का अस्तित्व नहीं रह जाता है। शासन प्रशासन में शुचिता और सुशासन के लिए एक सशक्त भ्रष्टाचार विरोधी संस्था की वकालत सन्1960 के दशक से शुरू हो गयी थी। इस तरह की एक संस्था की परिकल्पना सबसे पहले 1963 में विख्यात न्यायविद् डा एल.एम.सिंघवी ने की थी।

कई चरणों के बाद 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई। केन्द्र में लोकपाल-लोकायुक्त कानून आने के बाद ओडिशा पहला राज्य था जहां 14 फरवरी 2014 को संसद द्वारा पारित कानून के मुताबिक लोकायुक्त कानून बना था और उसके बाद उत्तराखण्ड दूसरा राज्य था, जिसका लोकायुक्त कानून 26 फरवरी 2014 को अस्तित्व में आया था। लेकिन इतने साल बाद भी उस कानून के अनुसार उत्तराखण्ड को एक अदद लोकायुक्त नहीं मिल सका। 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद मौजूदा कानून को नकार कर 100 दिन के अंदर एक नया मजबूत लोकायुक्त कानून लाने के साथ ही लोकायुक्त के गठन का वायदा किया गया था लेकिन न तो नया कानून आया और न ही सौ दिन की बजाय 6 साल गुजरने पर भी नया लोकायुक्त अस्तित्व में आया। ऐसी ही मिलती जुलती कथा अन्य उन राज्यों की भी है जो लोकायुक्त से वंचित हैं।

जयसिंह रावत


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