भारतीय महिला वैज्ञानिकों से रोशन हुआ चांद

Last Updated 16 Jul 2023 01:06:14 PM IST

हाल में चंद्रयान तीन (Chandrayaan 3) ने चांद की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी है। अलग-अलग कक्षाओं में चक्कर लगाते हुए यह सौ किलोमीटर की निकटतम कक्षा तक पहुंचेगा और जल्द ही चांद की धरती पर उतरेगा। भारत के सभी महत्त्वाकांक्षी मिशन में पुरुष वैज्ञानिकों के योगदान के साथ महिला वैज्ञानिकों की महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।


सरोकार : भारतीय महिला वैज्ञानिकों से रोशन हुआ चांद

हाल के दिनों में सफल वैज्ञानिक के तौर पर उनकी सशक्त भूमिका ने देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर सहज रूप से आकृष्ट किया है। इसकी ताजा बानगी है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) जहां महिलाएं न केवल सफल अंतरिक्ष मिशन की हिस्सा बन रही हैं, बल्कि बहुआयामी नेतृत्वकर्ता की भूमिका में भी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहीं। सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज वे अपनी उच्च बौद्धिक क्षमता के चलते ISRO के कई मिशनों का हिस्सा बनीं।

साठ से 90 के दौर में अधिकांशत: वे प्रयोगशाला की दीवारों तक ही सिमटी रहीं लेकिन मौजूदा दौर में उनके अभूतपूर्व योगदान और उपलब्धियों ने उन्हें मुख्यधारा के वैज्ञानिकों में ला खड़ा किया। अकेले इसरों में 16 हजार से ज्यादा महिला वैज्ञानिक की अपनी छोटी-बड़ी भूमिका में कुशलतापूर्वक काम कर रही हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसरो जैसे वैज्ञानिक महत्त्व के संस्थानों में पुरुषकर्मिंयों का वर्चस्व रहा है लेकिन सच यह भी है कि हजारों महिला वैज्ञानिक पुरुषों के साथ कदमताल करते हुए शोध, अनुसंधान व निर्माण में लगातार अपना योगदान दे रही हैं।

इस योगदान की फेहरिस्त लंबी है। टेसी थॉमस (Tessy Thomas),  जिन्होंने अग्नि 4 और अग्नि 5 (Agni-4 and Agni-5) (Missile) मिशन में उल्लेखनीय योगदान दिया।

इसरों की डिप्टी डायरेक्टर नंदिनी हरिनाथ (ISRO Deputy Director Nandini Harinath) उन महिलाओं में से एक हैं, जो 20 सालों से निरंतर कार्य करते हुए मंगलयान मिशन योजना (Mars Orbiter Mission Plan) तक में योगदान दे चुकी हैं।

एन. वलारमथी (N. valaramathi) ने भारत के पहले देशज रडार इमेजिन उपग्रह, रिसेट वन की लॉन्चिंग का प्रतिनिधित्व किया है। टीके अनुराधा (TK Anuradha) के बाद वे इसरो के उपग्रह मिशन की प्रमुख के तौर पर दूसरी महिला अधिकारी हैं। वे पहली ऐसी महिला हैं जो रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट (Remote Sensing Satellite) में प्रयुक्त मिशन की प्रमुख हैं।  मीनल संपथ (Minal Sampath) का काम कैसे भूला जा सकता है। वे लगातार 18 घंटे काम कर इसरो की सिस्टम इंजीनियर के तौर पर 500 वैज्ञानिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं।   ऐसा नहीं की ये उपलब्धियां उन्हें रातों-रात हासिल हो गई हैं। इसके पीछे उनकी वर्षो की मेहनत और कड़ी तपस्या शमिल है। साठ और सत्तर के दशक में विज्ञान के क्षेत्र में बढ़ती उनकी सक्रियता ने साबित कर दिया था कि वे आने वाले समय में विज्ञान को प्रगति की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाली हैं।

महिला वैज्ञानिक ज्यादा सक्रिय, तर्कशील और उचित निर्णय लेने में सक्षम हैं, और अनथक घंटों प्रयोगशालाओं में एकाग्रता से काम करने में क्षमता से लैस हैं। नेतृत्व कला की अदभूत क्षमता उन्हें भीड़ में सबसे अलग बनाती है। इसी काबिलियत के चलते आज डीआरडीओ से लेकर कई महत्त्वपूर्ण संस्थानों में महिलाएं 2000 से भी ज्यादा जूनियर वैज्ञानिकों का सफल नेतृत्व कर देश को सफलता के मार्ग पर अग्रसित कर रही हैं। किसी भी परिस्थिति में खुद को समायोजित कर बेहतर कौशल और क्षमता का परिचय देने में माहिर ये महिलाएं तमाम असमानताओं, आशंकाओं और पूर्वाग्रहों पर पूर्णविराम लगा कर आगे बढ़ रही हैं। समय आ गया है कि उनकी उपलब्धियों और योगदान को स्वीकृति और सराहना मिले। आखिर, चांद की चांदनी भी तो इन्हीं वीरांगनाओं से रोशन है।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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