NATO Summit : नाटो शिखर वार्ता और एशिया
अमेरिका (America) के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो के शिखर सम्मेलन (NATO Summit) में क्या तीसरे विश्व युद्ध की इबारत लिखी जाएगी अथवा यूरोप को परमाणु युद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए कोई बुद्धिमतापूर्ण पहल होगी? ये दोनों सवाल दुनिया के सामने हैं।
![]() नाटो शिखर वार्ता और एशिया |
रूस के सहयोगी देश बेलारूस की सीमा से कुछ ही दूर लिथुआनिया की राजधानी विनियम में 11-12 जुलाई को नाटो की शिखर वार्ता आयोजित है जिसमें 31 सदस्य देशों के साथ ही जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भी आमंत्रित किया गया है। एशिया और इंडो-पेसिफिक के इन चार देशों का शिखर वार्ता में शामिल होना, भारतीय विदेश नीति के लिए एक विचारणीय मुद्दा है। जापान और ऑस्ट्रेलिया क्वाड में भारत के सहयोगी देश हैं। इनका नाटो शिखर वार्ता में शामिल होना एशिया में तनाव का नया कारण बन सकता है। वास्तव में नाटो ने जापान में अपना संपर्क कार्यालय खोलने की पहल की है, जो फ्रांस की आपत्ति के कारण फिलहाल अमल में नहीं आ पाई है।
शिखर वार्ता के ठीक पहले लिथुआनिया ने अपनी इंडो-पेसिफिक नीति का खुलासा किया। पच्चीस लाख की आबादी वाले और इंडो-पेसिफिक से हजारों मील दूर स्थित इस बाल्टिक देश कीइस घोषणा का दुनिया भर में उपहास हो रहा है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि जहां एक ओर जापान स्वयं को यूक्रेन संघर्ष के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है, वहीं लिथुआनिया जैसा छोटा देश इंडो-पेसिफिक में दखल की हिमाकत कर रहा है। शिखर सम्मेलन के आयोजन स्थल विनियस को अभेद्य किले में बदल दिया गया है। नाटो देशों की वायुसेना के युद्धक विमानों और वायु प्रतिरक्षा पण्राली के जरिये सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। शिखर वार्ता का एजेंडा वास्तव में रूस के खिलाफ यूक्रेन को सैन्य रूप से और सक्षम बनाना है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की इस दो दिवसीय शिखर वार्ता में भाग लेंगे लेकिन इसकी संभावना नहीं है कि उनके देश को नाटो में शामिल किया जाएगा। इतना जरूर है कि इस्रइल की तरह यूक्रेन को भी सुरक्षा गारंटी देने पर फैसला हो सकता है।
यूक्रेन को मिलेंगे क्लस्टर बम
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शिखर वार्ता के लिए रवाना होने के पूर्व यूक्रेन को क्लस्टर बम (छोटे-छोटे बमों का गुच्छा) मुहैया कराने का ऐलान किया है। इसे दुनिया के अधिकतर देशों ने प्रतिबंधित किया हुआ है। इसलिए कि बिना विस्फोट वाले ये छोटे-छोटे बम दशकों तक इलाकों में फैले रहते हैं, जिनसे नागरिकों के जानमाल पर खतरा रहता है। रूस के खिलाफ यूक्रेन के जवाबी हमले में कोई सफलता नहीं मिल पाने से नाटो देशों में हताशा है। वे यूक्रेन के सैन्य अभियान को हर हालत में सफल होते देखना चाहते हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि यूक्रेन जितने घातक हथियारों का इस्तेमाल करेगा, उसके जवाब में रूस उससे भी अधिक घातक हथियारों का सहारा लेगा। जिस समय नाटो देशों के नेता शिखर वार्ता में भाग ले रहे हैं, उसी समय रूस अपने पूर्व घोषित फैसले के अनुरूप बेलारूस में परमाणु हथियारों (सीमित क्षमतावाले टैक्टिकल परमाणु बम) की तैनाती कर रहा है। नाटो नेता परमाणु युद्ध के खतरे को नजरअंदाज कर यूक्रेन-युद्ध की आग में घी डालने पर आमादा हैं।
भारत एशिया में नाटो के प्रसार पर क्या रवैया अपनाता है, इसका क्षेत्रीय और विश्व स्तर पर बड़ा असर होगा। वास्तव में अमेरिका ने भारत को नाटो के सहयोगी देश के रूप में शामिल करने की पेशकश की थी, जिसे भारत ने खारिज कर दिया था। भारत यह भी नहीं चाहेगा कि क्वाड में उसके सहयोगी देश जापान और आस्ट्रेलिया एशिया में नाटो के प्रसार का जरिया बने। क्या भारत क्वाड में अपनी भूमिका की पुनर्समीक्षा करेगा? भारत की तटस्थ और स्वतंत्र विदेश नीति का तकाजा यह है कि वह एशिया में यूक्रेन जैसी परिस्थिति पैदा न होने दे। इसके लिए वह जापान और आस्ट्रेलिया के नेताओं को सुझाव दे सकता है। भारत के लिए चिंता का एक नया मुद्दा इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में रूस की नौसेना की सक्रियता भी है। क्वाड देशों की नौ-सेनाओं के संयुक्त अभ्यास के दौरान रूसी युद्ध-पोतों से आमना-सामना हो सकता है। भारत ऐसा कभी नहीं चाहेगा। तो इस नाटो शिखर वार्ता की काली छाया आगामी ब्रिक्स शिखर वार्ता (अगस्त में संभावित) और जी-20 शिखर वार्ता पर भी पड़ सकती है।
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