मीडिया : छोरा-छोरी का ‘कच्छा संवाद’
टीवी चैनलों की खबरों के बीच के ‘ब्रेक’ में एक बेहद सेक्सिस्ट विज्ञापन दिखाई-सुनाई देता है। यह है एक मर्दाने कच्छे के नये ब्रांड का विज्ञापन। सीन दो घरों की छतों पर खुलता है।
मीडिया : छोरा-छोरी का ‘कच्छा संवाद’ |
छतें एक दूसरे से मिली हुई दिखती हैं जैसी कि कस्बों में होती हैं। एक छत पर एक लड़की है, और उसकी मां है। लड़की खड़ी है और मां कुर्सी या पीढ़े पर बैठी है। पास की छत पर लड़का खड़ा है और शायद नहा रहा है, या नहा चुका है, और कपड़े बदलना चाहता है कि विज्ञापन का ‘कैची’ गीत एक स्त्री की आवाज में शुरू होता है।
‘हाय मां की छोरी..हाय नॉटी छोरा..
हाय नॉटी छोरी..झटक खाय छोरा..
झटक खाए छोरी..’
गाना कुछ इसी तरह से चलता है, जिसे ‘झटक मटक’ को रेखांकित करती धुन में गाया गया है।
सारे सीन में मां और बेटी लड़के की ओर देखती रहती हैं और लड़का उनको देखता रहता है। लड़का जब एक कपड़े को निचोड़ कर झटकता है, तो कपड़ा इतनी जोर का झटका देता है कि मां के ऊपर पड़ा कपड़ा तक उड़ जाता है, तो भी मां लड़के की ओर ताकती रहती है। लड़की भी लड़के को मुग्ध भाव से ताकती रहती है। फिर लड़का अपनी कमर पर लिपटे तौलिया को झटकारता है, तो लड़की लड़के की कमर के निचले हिस्से की ओर इशारा करती है, जिसे देख लड़का अपनी कमर के नीचे की ओर देखने लगता है कि कहीं वह नंगा तो नहीं हो गया क्योंकि उसका तौलिया नीचे गिर गया होता है।
फिर लड़की एक मर्दाना कच्छा लड़के को दिखाने लगती है जैसे कहती हो कि इस ब्रांड के कच्छे को पहन लो तो लड़का लड़की को इशारे से कहता है कि उसने उसी ब्रांड का कच्छा पहना है। लड़की तुरंत लड़के की नजर को पकड़ कर उसके कच्छे पर नजर फिराकर लड़के की ओर खास सेक्सी इशारा करती है। लड़का मस्त होकर कमर मटकाने लगता है। कैमरा उसके ‘सिक्स पैक ऐब्स’ को दिखाने लगता है।
इस पूरे समय लड़की और मां, दोनों लड़के की कसी हुई बॉडी को निहारती रहती हैं। इतना ही नहीं सीन में न लड़की शर्माती है, न मां उसे हतोत्साहित करती है, या डांटती है। कहने की जरूरत नहीं कि यह एकदम सेक्सिस्ट विज्ञापन है, जो कच्छे को बेचते हुए एक किस्म के ‘लफंगेपन’ को भी पब्लिकली बेचता है। तीस-पैंतीस साल से मीडिया की सतत समीक्षा करने वाला यह लेखक अपने ‘विज्ञापन दर्शन’ के अनुभव से कह सकता है कि कच्छों के सभी ब्रांडों के विज्ञापन इसी तरह की ‘सेक्सिस्ट’ और ‘माचो’ (मर्दवादी) भाषा के जरिए अपने ब्रांड की मारकेटिंग किया करते हैं।
ऐसे विज्ञापन कच्छे को कुछ इस तरह से पेश करते हैं कि मानो वह कच्छा, कच्छा न होकर कोई आभूषण हो। कच्छे का ऐसा हर विज्ञापन मर्द के ‘माचो तत्व’ यानी ‘मर्दानगी’ और ‘मर्दवाद’ के मूल्यों को हाईलाइट करता है। हम कुछ दिनों पहले तक टीवी में दिखने वाले उस विज्ञापन को याद कर सकते हैं, जिसमें एक ऐसे ही ब्रांडेड कच्छे को पहन कर जब एक युवक एयरपोर्ट पर ‘चेक इन’ करता है, तो ‘चेक इन’ करने वाली युवती ‘डॉलर’ आदि को डिक्लेअर करने को कहती है, तो युवक अपनी कमीज और बनियान को ऊपर कर पेंट के अंदर पहने कच्छे के ब्रांड को दिखा देता है। उसे देखते ही ‘चेक इन’ करने वाली युवती उसके सेक्सिस्ट कच्छे पर मर मिटती है, और अपनी ड्यूटी वाली फॉर्मल टोपी उतार कर अपने बालों की पिन खोलकर युवक के गले से लिपटने लगती है। इसी तरह के अन्य विज्ञापनों को आसानी से याद किया जा सकता है, जिनमें चित्रित हर युवती कच्छे के दर्शन मात्र से कच्छा पहनने वाले युवक पर मोहित होकर उससे लिपटने चिपटने लगती है।
ऐसे विज्ञापनों के संदेश बड़े साफ नजर आते हैं: कहते दिखते हैं कि अगर आप इस ब्रांड का कच्छा पहनेंगे तो कोई भी लड़की आप पर मर मिटने को तैयार हो जाएगी। इस विज्ञापन के गीत में आए दो शब्द ध्यान देने योग्य हैं: एक है ‘नॉटी’ और दूसरा है ‘झटक’। नॉटी माने ‘शरारती’ यानी लड़का तो ‘शरारती’ है ही लड़की भी ‘शरारती’ हैं। दोनों एक दूसरे से सेक्सिस्ट शरारत करते दिखते हैं। यहां न लड़के को शर्म है न लड़की को। न मां को। लगता है कि एक खास ‘कच्छा’ अपनी मारकेटिंग से सारे मुहल्ले पड़ोस को लंपट बनाने पर तुला है। यह बेहद स्वैराचारी छोरा-छोरी संवाद है। नये किस्म की बेहयाई का प्रदर्शन है। विज्ञापन न केवल स्त्री मात्र की अवमानना करता है, बल्कि आपत्तिजनक भी है।
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