मीडिया : कार बराबर हसबैंड
यह एकदम मस्त विज्ञापन है। आप देखते-सुनते हैं और देखते-सुनते रह जाते हैं। आपकी टीवी स्क्रीन पर दस-पंद्रह सेकेंड को आपस में चुहल करती दो युवतियां अपने मस्त आइडिया से आपको चकित कर देती हैं।
मीडिया : कार बराबर हसबैंड |
यह मस्त आइडिया है, अपने ‘हसबैंड’ को ‘कार’ की तरह ‘बदलने’ का। एक युवती अपने मोबाइल पर कार खरीदने बेचने और न पसंद हो तो वापस करने की गारंटी देने वाली कंपनी के विज्ञापन को देखती है, जो कहता है कि आप हमारी कंपनी से कार खरीदिए टैस्ट कीजिए। पसंद न आए तो सात दिन में वापस कर दीजिए। इसे सुन दूसरी युवती उमंग से भरकर कह उठती है, इस फीचर को तो हम अपने ‘हसबैंड’ वाले ‘ऐप’ में जरूर डालेंगे। ‘हसबैंड’ पसंद न आए तो सात दिन में वापस! इसे सुनकर दोनों एक दूसरे से ताली मारकर ठहाके लगाते हंसती हैं।
‘कार’ की श्रृंखला के दूसरे विज्ञापन में एक युवती दूसरी से कहती है कि ‘हम हसबैंड को देखेंगे कि कहीं उसके मोजों में छेद तो नहीं है’। इसके बाद वे फिर ठहाका लगाने लगती हैं। इसी क्रम के तीसरे विज्ञापन में एक युवती हसबैंड को कार की तरह खरीदने को ‘स्वयंवर’ कहती है तो दूसरी भी कह उठती है कि यह आइडिया बढ़िया है। ‘आइ लाइक स्वयंबर..’ फिर दोनों ताली मारकर हंसने लगती हैं। विज्ञापन कार बेचने-खरीदने बेचने वाली कंपनी के ब्रांड को बेचता है, लेकिन खरीदे-बेचे जाने लगते हैं ‘हसबैंड’। कार ‘हसबैंड’ बन जाती है और हसबैंड ‘कार’ बन जाते हैं यानी कार बराबर हसबैंड, हसबैंड बराबर कार। ‘कार बराबर हसबैंड’ के इस खेल पर ही दोनों युवतियां जोरदार ठहाके मारती हैं। असली चीज इन युवतियों की हंसी है, जो इस ‘रोंदू समय’ में दर्शकों को भी हंसा जाती है। कार हसबैंड बन जाती है। हसबैंड कार बन जाते हैं। कार पसंद न आए तो वापस। इसी तरह हसबैंड पसंद न आए तो वापस।
इस तरह वो ‘सप्तपदी’ वाली शादी, ‘सात वचन’ लेने देने वाली शादी, वो ‘सात जन्मों का बंधन, वो ‘जनम जनम की दासी’ जो गाती है कि ‘मेरा पति मेरा देवता है-‘इन युवतियों की यह अल्हड़ हंसी ‘शादी’ नामक उक्त संस्था और ‘हसबैंड’ के ‘देवत्व’ को ध्वस्त देती है और ‘हसबैंड’ को ‘कपड़े की तरह बदला जा सकने’ वाला बना देती है। कहने की जरूरत नहीं कि आज की पढ़ी-लिखी स्त्री की यह एक नितांत ‘नई आजादी’ है। यह एक बहुत बड़ा ‘भूमिका परिवर्तन’ (रोल रिवर्सल) है, जिसे हंसी-हंसी में संप्रेषित कर दिया जाता है। एक वक्त रहा जब हसबैंड अपनी पत्नी को जब चाहे छोड़ देता था और नई ले आता था। पत्नी त्यागना या तलाक तलाक तलाक कहना आम बात थी, लेकिन धीरे-धीरे यह दुष्कर होने लगा और इन दिनों तो और दूभर है। इस पृष्ठभूमि में आता यह विज्ञापन एकदम नये मानी बनाता है। ‘सेंकेंड हैंड’ कार की तरह ‘हसबैंड’ खरीदने का ‘आइडिया’ ‘रिवर्स सेक्सिस्ट’ हो जाता है।
यह ‘रिवर्स सेक्सिज्म’ एकदम नई चीज है, जिसे यह विज्ञापन पापूलर बनाता है और यह ‘भूमिका परिवर्तन’ हमारी हंसी जगाकर हमारी स्वीकृति ले लेता है। विज्ञापन कम में बहुत कुछ कह जाते हैं। इसीलिए इनको महत्त्वपूर्ण ‘सांस्कृतिक निर्मितियां’ माना जाता है। वे आपका ध्यान खींचने के लिए बनाए जाते हैं और उनमें कुछ ऐसा मसाला डाला जाता है कि आपको पसंद आए। कई बार विज्ञापन ‘टीजर’ की तरह के बनाए जाते हैं। वे आपको चिढ़ाते हैं और आप चिढ़ जाते हैं ज्यों ही आप उसका विरोध करते हैं वह विवाद में आ जाता है और इस तरह हिट हो जाता है। कुछ विज्ञापन सीधी भाषा में प्रोडक्ट के फायदे बखान कर चलते हैं जैसे ‘सोप’ या ‘शैंपू’ के विज्ञापन और बहुत से विज्ञापन उजड्ड किस्म की ‘सेक्सिस्ट’ भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जैसे एक खास ब्रांड की कच्छी वाला विज्ञापन, जिसमें एक कस्टम अधिकारी स्त्री एक ‘माचो हीरो’ की ‘कच्छी’ पर मरने लगती है। ऐसे विज्ञापन प्राय: ‘पुल्लिंगी सेक्सिस्ट’ भाषा बोलते हैं, लेकिन ‘कार बराबर हसबैंड’ वाला यह विज्ञापन ‘पुल्लिंगी सेक्सिस्ट’ भाषा को उलट देता है। यहां दो युवतियां ‘स्त्रीवादी सेक्सिस्ट’ भाषा बोलती हैं।
इस विज्ञापन की सबसे बड़ी ताकत युवतियों का एकदम ‘बिंदास अट्ठहास’ है, जो आज की पढ़ी-लिखी स्त्री को किसी चीज की तरह ही हसबैंड को खरीदने और पसंद न आने पर बदलने की ताकत और आनंद देता है। हसबैंड की हैसियत ‘स्टेपनी’ से भी गई-बीती हो जाती है, और पुल्लिंगी मानसिकता उपहासास्पद बन जाती है। ‘कार बराबर हसबैंड’ वाले इस विज्ञापन का हमारा उक्त ‘विखंडन’ यह बताता है कि कभी-कभी कोई विज्ञापन किसी बड़ी कहानी या उपन्यास से भी बड़ा विचार दे जाता है।
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