वैश्विकी : जी-7 की चिंता-कोविड और चीन

Last Updated 12 Jun 2021 11:59:22 PM IST

दुनिया के सात विकसित देशों की संस्था जी-7 के शीर्ष नेताओं की शिखर वार्ता कोरोना महामारी की छाया में हो रही है।


वैश्विकी : जी-7 की चिंता-कोविड और चीन

कोरोना महामारी इस शिखर वार्ता का घोषित एजेंडा है तो वायरस का उद्गम स्थल चीन इसके अघोषित एजेंडे में है। मानवता के लिए अभूतपूर्व संकट पैदा करने वाले कोरोना वायरस को कैसे पराजित किया जाए तथा आगामी वर्षो में नये वायरस को ऐसी तबाही मचाने से रोका जाए इस संबंध में जी-7 के नेताओं ने एक घोषणापत्र स्वीकार किया है तो वहीं कोरोना वायरस के उद्गम स्थल चीन के सैनिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को लोकतांत्रिक देशों के लिए खतरा बनने से कैसे रोका जाए इस संबंध में भी ये नेता एक साझा रणनीति बनाने पर विचार करेंगे।
ब्रिटेन के कार्बिस बे, कॉर्नवॉल में चल रही इस शिखर वार्ता में जो घोषणापत्र स्वीकार किया गया है, उसमें कोरोना महामारी की भविष्य में पुनरावृत्ति नहीं होने देने की बात कही गई है। इस महामारी में अब तक करीब 40 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। मरने वालों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होगी। डेढ़ साल बाद भी महामारी का प्रकोप जारी है तथा विभिन्न देशों की सरकारें अपने स्तर पर तथा संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाएं अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर पाई।
शिखर वार्ता में लिया गया यह संकल्प कि भविष्य में कोरोना महामारी जैसी आपदा कि पुनरावृत्ति नहीं होने दी जाएगी, विकसित देशों के लिए परीक्षा का विषय है। वास्तव में इन देशों की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। इन देशों ने यदि अपनी मौजूदा चिकित्सा सुविधाओं और क्षमता का पूरी तरह उपयोग किया होता तथा अन्य देशों को मदद दी होती तो दुनिया में इस बड़े पैमाने पर अफरातफरी नहीं फैली होती। भारत ने विश्व व्यापार संगठन में वैक्सीन को पेटेंट से छूट दिए जाने का प्रस्ताव पिछले वर्ष अक्टूबर में दिया था।

आठ महीने बाद यह प्रस्ताव विचार-विमर्श की प्रक्रिया में ही है। ऐसी लापरवाही और असंवेदनशीलता से मौजूदा और भविष्य में वैश्विक महामारी का मुकाबला नहीं किया जा सकता। अमेरिका के चिकित्सा वैज्ञानिकों ने कई महीने पहले ही बाइडेन प्रशासन से कहा था कि वह वैक्सीन के जखीरे की जमाखोरी करने के बजाय वैक्सीन के अनुपयोगी होने के पहले ही जरूरतमंद देशों में वितरण कर दी जाए। अब जाकर जी-7 समूह के देशों ने एक अरब वैक्सीन जरूरतमंद देशों को देने की बात कही है। इस समूह में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा शामिल हैं। इस शिखर वार्ता में भारत को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है।
ब्रिटेन ने महामारी के संबंध में प्राणी और मानव जगत के बीच संबंधों पर भी चिकित्सा नजरिये से गौर किया है। हाल के दशकों में बहुत सी बीमारियों की उत्पत्ति प्राणी जगत से हुई, जिनका संक्रमण बाद में मानव जगत में हुआ। कोरोना वायरस की उत्पत्ति भी वुहान के पशु पक्षी मांस बाजार से हुई थी। आहार संबंधी आदतों पर भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाये जाने की जरूरत है। आमतौर पर शाकाहार को किसी संस्कृति और धर्म विशेष से जोड़ा जाता है। विश्व में शाकाहार आंदोलन के विरुद्ध भी आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं। संकीर्ण वाद-विवाद से ऊपर उठकर लोगों को अपनी आहार संबंधी प्राथमिकताएं वैज्ञानिक आधार पर तय करनी चाहिए।
 जी-7 शिखर वार्ता का अघोषित एजेंडा चीन को काबू में करने के लिए साझा रणनीति बनाने का है। इस रणनीति के दो पहलू होंगे-सैनिक और राजनीतिक दृष्टि से चीन के विरुद्ध विभिन्न देशों विशेषकर एशिया के देशों का सहयोग हासिल किया जाएगा। क्वाड जैसे गठबंधनों को मजबूत और व्यापक बनाया जाएगा। आर्थिक मोच्रे पर चीन की रोड एंड बेल्ट परियोजना के समानांतर एक वृहद संपर्क परियोजना की शुरुआत की जाएगी। अमेरिकी राष्ट्रपति इसी तर्ज पर एक संपर्क परियोजना शुरू करना चाहते हैं जो चीन की परियोजना से कई गुना बड़ी होगी। जी-7 शिखर वार्ता में घोषित किए गए महत्त्वाकांक्षी तत्वों पर किस सीमा तक अमल होता है, इस पर भावी विश्व व्यवस्था का स्वरूप निर्धारित होगा। वैसे कोरोना महामारी का सबसे बड़ा सबक यह है कि दुनिया के सभी देश एक साथ मिलकर मन, वचन और कर्म से वैसी चुनौतियों का मुकाबला कर सकें।

डॉ. दिलीप चौबे


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