सरोकार : महिला आविष्कारक होंगी तो महिला स्वास्थ्य सुधरेगा
विज्ञान आखिर किसका विषय है..किसी का भी- पर दुखद है कि विज्ञान के क्षेत्र पर भी पुरुषों का ही प्रभुत्व है।
सरोकार : महिला आविष्कारक होंगी तो महिला स्वास्थ्य सुधरेगा |
अमेरिका से खबर है कि वहां 2020 में भी पेटेंट प्राप्त करने वाले आविष्कारकों में सिर्फ 12.8 फीसद महिलाएं हैं। नतीजा यह हुआ है कि महिलाओं की समस्याओं पर आविष्कार किए ही नहीं जाते। पुरुष सिर्फ पुरुषों के नजरिए से सोचा करते हैं। जैसे ऐतिहासिक रूप से पुरुष अनुसंधानकर्ताओं ने एंडोमेट्रिओसिस जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को नजरंदाज किया और इस पर काम किया एक महिला वैज्ञानिक और आविष्कारक लिंडा ग्रिफिथ ने। एंडोमेट्रिओसिस में यूटेरस के बाहर ऊतक विकसित होने लगते हैं, जोकि बहुत तकलीफ देते हैं। पुरुष आविष्कारक बरसों से महिलाओं की चिकित्सकीय जरूरतों के प्रति बेपरवाह रहे हैं। हॉर्वर्ड बिजनेस स्कूल की एक स्टडी में कहा गया है कि अगर पेटेंड बायोमेडिकल आविष्कारक अगर महिलाएं होंगी तो महिलाओं के स्वास्थ्य को 35 फीसद अधिक फायदा होगा।
इस स्टडी के लिए नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मेडिकल टेक्स्ट इंडेक्सर का इस्तेमाल करते हुए चार लाख से ज्यादा मेडिकल पेटेंट्स का विश्लेषण किया गया। इससे पता चला कि पुरुषों की रिसर्च टीम्स, यानी जिनमें पुरुष ज्यादा बड़ी संख्या में थे, का काम पुरुषों की मेडिकल जरूरतों पर मुख्य रूप से केंद्रित था। इसके लिए 1976 से 2010 के बीच के अनुसंधानों का आकलन किया गया था। जैसे पुरुष प्रधान टीम्स ने पार्किन्सन और स्लीप एपनिया पर काम किया जोकि पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करते हैं। इसके विपरीत महिलाओं ने महिलाओं की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित किया। 1976 में सिर्फ 6.3 फीसद पेटेंट्स का उन टीम्स ने आविष्कार किया जिनमें पुरुष और महिलाएं एक बराबर संख्या में थे।
महिला आविष्कारकों की संख्या बढ़ेगी तो महिला स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह भी देखने को मिला है कि महिला वैज्ञानिक अपने रिसर्च आइडियाज को पुरुष वैज्ञानिकों के मुकाबले 40 फीसद कम कमर्शियलाइज करती हैं। एक वजह यह है कि प्रारंभिक चरण में ही उन्हें पूर्वाग्रहों का शिकार होना पड़ता है। ऐसे भी डेटा हैं कि 2010 में लगभग 33 फीसद वैज्ञानिक खोजों को करने वाली टीम्स में महिलाएं ज्यादा थीं। लेकिन सिर्फ 16.2 फीसद पेटेंट्स का आविष्कार करने वाली टीम्स महिला प्रधान थीं। हैरानी नहीं है कि 97% साइंस नोबेल प्राइज विनर्स पुरुष हैं। महिला वैज्ञानिकों को लगातार पूर्वाग्रहों का शिकार बनाया जाता है। अमेरिका की साइंस हिस्टोरियन मार्गेट डब्ल्यू रोसिटर ने 1993 में इसे माटिल्डा इफेक्ट कहा था। माटिल्डा इफेक्ट महिला वैज्ञानिकों के प्रति एक तरह का पूर्वाग्रह होता है जिसमें हम उनकी उनके काम का श्रेय उनके पुरुष सहकर्मिंयों को दे देते हैं। इतिहास में नेटी स्टीवेन्स, मारियन डायमंड ऐसी कई महिला वैज्ञानिक हुई हैं जिनके काम का श्रेय उनके पुरुष सहकर्मिंयों को दिया गया। स्टेमफील्ड्स यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ में औरतें इसीलिए कम हैं। आईआईटीज में लड़कियां 10 फीसद हैं। ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन 2015-2016 के डेटा के अनुसार 41.32 फीसद लड़कियां विज्ञान विषय को चुनती तो हैं लेकिन उसमें भी फैशन टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और नर्सिंग जैसे कोर्सेज पढ़ती हैं। लड़के टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग लेते हैं। जाहिर है, ये विषय मैस्कुलिन माने जाते हैं।
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