वैश्विकी : कोरोना और जलवायु परिवर्तन

Last Updated 24 Apr 2021 11:52:09 PM IST

कोरोना महामारी के बीच दुनिया के शीर्ष नेताओं ने आगामी दशकों में आने वाली जलवायु परिवर्तन की गंभीरता पर गहनता से विचार किया।


वैश्विकी : कोरोना और जलवायु परिवर्तन

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पहल पर बुलाए गए इस शिखर सम्मलेन में 40 विश्व नेताओं ने भाग लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व समुदाय का ध्यान कोरोना महामारी की ओर दिलाते हुए आगाह किया कि यह दुनिया को एक पूर्व चेतावनी है। आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन और इसके लिए जिम्मेदार पृत्वी के तापमान में बढ़ोतरी विश्व मानवता के अस्तित्व पर खतरा बन सकती है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में जो संकट पैदा होगा और जानमाल की जो हानि होगी उसकी तुलना में आज का कोरोना महामारी संकट एक बहुत छोटा रूप है। महामारी से निपटने में विश्व संस्थाओं और विभिन्न देशों ने जैसे नकारेपन का उदाहरण दिया है, उसकी पुनरावृत्ति जलवायु परिवर्तन के संकट में भी हो सकती है।
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का सामना कर रहे भारत में जारी त्रासदी से भी दुनिया की आंखें खुलनी चाहिए। भारत में जहां अपनी जनसंख्या के स्वास्थ्य की चिंता की वहीं उदारवादी रवैया अपनाते हुए विकासशील और अविकसित देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की। इसे लेकर घरेलू मोच्रे पर मोदी सरकार को विपक्ष की आलोचना का सामना भी करना पड़ा। हालांकि जब इस महामारी से दुनिया के संघर्ष का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें भारत की भूमिका को स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया जाएगा। भारत के रवैये के विपरीत अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने घोर स्वार्थ का परिचय दिया। अमेरिका इस समय वैक्सीन की करोड़ों खुराक दबाए बैठा है। उसने इन वैक्सीन की खेप को दुनिया के अन्य देशों तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई। इतना ही नहीं वैक्सीन निर्माण के काम में आने वाले कच्चे माल के निर्यात पर भी उसने रोक हटाने से इनकार कर दिया। भारत के सीरम इंस्टीटय़ूट के संचालक अदार पूनावाला ने अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पिछले हफ्ते एक एसओएस संदेश भेजा था। व्हाइट हाउस के अधिकारियों से जब इस संदेश पर हुई कार्रवाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस संदेश के बारे में अनभिज्ञता व्यक्त की। कोरोना महामारी से निपटने के लिए भारत की ऑक्सीजन की आवश्यकता की ओर भी दुनिया ने ध्यान नहीं दिया। यह सही है कि ऑक्सीजन के उत्पादन और उसके वितरण में केंद्र और राज्य सरकारों ने कोताही बरती लेकिन यह भी सही है कि दुनिया के किसी देश ने इस संकट से उबरने में भारत की मदद नहीं की। कई विश्व नेताओं ने भारत के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने की औपचारिकता मात्र दिखलाई। हाल के घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट हुआ है कि इंडो-पैसिफिक को लेकर उभर रहे क्वाड के अन्य नेता इस मानवीय संकट के प्रति कितने लापरवाह हैं। 12 मार्च को आयोजित क्वाड शिखर सम्मेलन में यह घोषणा की गई थी कि भारत में 1 अरब वैक्सीन का निर्माण होगा, जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया मदद करेंगे। इस घोषणा का क्रियान्वयन जमीन पर नदारद नजर आता है।

अमेरिका और पश्चिमी देशों की सरकारें भारत के संकट के प्रति जैसे उदासीन हैं वैसी ही हालत वहां की मीडिया की भी है। पश्चिमी मीडिया ने भारत के संकट की आग में घी डालने का काम किया। ब्रिटेन के अखबार ‘गार्जियन’ ने भारत को ‘कोविड नरक’ की संज्ञा दे दी। अमेरिका की अखबारें ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के साथ ही ‘बीबीसी’ और ‘सीएनएन’ ने भी ऐसे ही अमानवीय रवैये का परिचय दिया। दुर्भाग्य की बात यह है कि पश्चिमी देशों में छपे बहुत से समाचारों और लेखों में विदेशी संवाददाताओं और देश के ही कुछ मीडियाकर्मियों ने भागीदारी की।
आने वाले दशकों में यदि जलवायु परिवर्तन की कई गुना अधिक भीषण समस्या पैदा हुई तो दुनिया के विभिन्न देश कैसा आचरण करेंगे, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। संकेत यही है कि हर देश को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी। फिलहाल जलवायु शिखर सम्मेलन को एक सामयिक पहल माना जा सकता है। सम्मेलन में विभिन्न विश्व नेताओं ने भावी संकट के प्रति एक जैसी चिंता व्यक्त की है। इन देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने के लिए लक्ष्य तय किए हैं। हर देश अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी गंभीरता दिखाता है, इस पर शिखर सम्मेलन की सफलता या असफलता का आकलन किया जाएगा।

डॉ. दिलीप चौबे


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